ट्रेडमार्क उल्लंघन: पटना हाईकोर्ट ने जिला अदालत से 2014 में हीरो इकोटेक के खिलाफ हीरो साइकिल के मुकदमे की सुनवाई में तेजी लाने को कहा

Update: 2023-06-23 06:17 GMT

पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने 2014 के ट्रेडमार्क उल्लंघन के मुकदमे में प्रतिवादियों को लिखित बयान दाखिल करने से रोकने के अपने आदेश को वापस लेने के पटना कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब स्थित हीरो साइकिल लिमिटेड की याचिका खारिज कर दी है।

जस्टिस सुनील दत्त मिश्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में हीरो साइकिल के पक्ष में दिए गए निषेधाज्ञा को बहाल करते हुए ट्रायल कोर्ट से मुकदमे में तेजी लाने और इसे जल्द से जल्द पूरा करने का अनुरोध किया था।

अदालत ने कहा,

"उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर, विद्वान ट्रायल कोर्ट से अनुरोध किया जाता है कि वह मुकदमे में तेजी लाए और अनावश्यक स्थगन दिए बिना इसे जल्द से जल्द पूरा करे और दोनों पक्षों को टाइटल सूट के शीघ्र निपटान में ट्रायल कोर्ट का सहयोग करने का निर्देश दिया जाता है।“

हीरो साइकिल ने 2014 में साइकिल और साइकिल पार्ट्स के संबंध में अपने पंजीकृत ट्रेडमार्क 'हीरो' के उल्लंघन के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया। हीरो इकोटेक लिमिटेड, इसके निदेशक विजय मुंजाल और कुमार साइकिल स्टोर पटना कोर्ट में लंबित मुकदमे में प्रतिवादी हैं।

ट्रायल कोर्ट ने शुरुआत में देरी के कारण हीरो इकोटेक और उसके निदेशक को लिखित बयान दाखिल करने से रोक दिया था, लेकिन बाद में सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के तहत प्रतिवादियों द्वारा दायर एक आवेदन के आधार पर अपना आदेश वापस ले लिया। लिखित बयान को 5,000 रुपये की जुर्माने के अधीन स्वीकार करने की अनुमति दी गई थी।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि रिकॉल आदेश सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VIII नियम 1 के प्रावधानों का खंडन करता है। यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादियों का लिखित बयान वैधानिक अवधि के भीतर दाखिल नहीं किया गया था, और देरी की माफी के लिए कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया था।

वकील ने आगे कहा कि अदालत निर्धारित समय के बाद लिखित बयान को स्वीकार करने के लिए एक वैध कारण प्रदान करने में विफल रही, और इस प्रकार, विवादित आदेश को रद्द कर दिया जाना चाहिए।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर वकील ने कहा कि प्रतिवादियों ने ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित समय के भीतर अपना लिखित बयान दायर किया था। इसके अतिरिक्त, उन्होंने तर्क दिया कि वादी ने विस्तार देने के आदेश पर कोई आपत्ति नहीं जताई, जिसे बाद में अंतिम रूप दिया गया। इसलिए, उन्होंने एक ही कार्यवाही के विभिन्न चरणों में लागू न्यायिक सिद्धांत का हवाला देते हुए तर्क दिया कि वादी इस मुद्दे को एक ही कार्यवाही के एक अलग चरण में नहीं उठा सकते हैं।

याचिका खारिज करते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपने पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार में अदालत द्वारा हस्तक्षेप के लिए कोई अवैधता या ठोस प्रक्रियात्मक अनियमितता नहीं है।

केस टाइटल: हीरो साइकिल लिमिटेड और अन्य बनाम हीरो इकोटेक लिमिटेड और अन्य सिविल विविध क्षेत्राधिकार संख्या 1036 2018

याचिकाकर्ता/ओं के लिए:

जितेंद्र किशोर वर्मा, अधिवक्ता, अंजनी कुमार झा, अधिवक्ता, करण वर्मा, अधिवक्ता, श्रेयश गोयल, अधिवक्ता, अभय नाथ, अधिवक्ता, रवि राज, अधिवक्ता, पूजा कुमारी, अधिवक्ता , श्वेता राज, अधिवक्ता, शताक्षी सहाय, अधिवक्ता

प्रतिवादी के लिए:

वाई.वी. गिरि, वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ सूरज समदर्शी, अधिवक्ता, विजय शंकर तिवारी, अधिवक्ता

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