शराब पीकर ड्राइविंग करने के मामले में मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185 (A) के तहत आरोपी का ब्रेथ एनालाइजर या ब्लड टेस्ट होना अनिर्वाय: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि मोटर व्हीकल (एमवी) एक्ट की धारा 185 (A) के तहत शराब पीकर ड्राइविंग करने के आरोप के मामले में, आरोपी को ब्रेथ एनालाइजर या किसी अन्य उपकरण से परीक्षण किया जाना चाहिए। इसके साथ ही प्रयोगशाला परीक्षण किया जाना चाहिए और अपराध के लिए आरोपी के प्रति 100 मिलीलीटर रक्त में शराब की मात्रा 30 मिलीग्राम से अधिक होनी चाहिए।
अभियोजन का मामला यह था कि अभियुक्त ने मानवीय जीवन को खतरे में डालते हुए लापरवाही से कार चलाया। इसके साथ ही उसने दूसरी कार को टक्कर मारी, जिससे उसमें बैठे यात्रियों को चोट आई। इसके बाद, आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे मेडिकल जांच लिए भेजा गया।
मेडिकल रिपोर्ट के आधार कोर्ट ने कहा कि,
"डॉक्टर ने कहा कि याचिकाकर्ता के मुंह से शराब से बदबू आ रही थी।"
मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर, आरोपी के खिलाफ मोटर व्हीकल अधिनियम की धारा 185 के तहत मुकदमा चलाया गया। इसके खिलाफ अभियुक्त ने चुनौती दी। अभियुक्त की चुनौती यह थी कि धारा 185 के तहत तभी मुकदमा चलाया जा सकता है, जब ब्रेथ एनालाइजर के माध्यम से शराब की मात्रा का पता लगाया जाएगा।
मोटर व्हीकल अधिनियम की धारा 185 का मामला-
ड्राइविंग करते समय, या वाहन चलाने का प्रयास करते समय;
(A) आरोपी के प्रति 100 मिलीलीटर रक्त में शराब की मात्रा 30 मिलीग्राम से अधिक होनी चाहिए और इसका परीक्षण ब्लड टेस्ट द्वारा किया जाना चाहिए, (या प्रयोगशाला परीक्षण सहित किसी अन्य परीक्षण में)।
(B) ड्रग लेने से वह शारीरिक रूप और मानसिक रूप से इस तरह असक्षम हो जाता है कि वाहन पर उचित नियंत्रण रखने में असमर्थ हो जाता है।
इस तरह के पहले अपराध के लिए अपराधी को छह महीने तक की जेल हो सकती है या दस हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकता है। यही अपराध वापस यानी दूसरी बार करने पर दो साल तक की हो सकती है, या पंद्रह हजार रुपये जुर्माना या दोनों के साथ हो सकता है।
[स्पष्टीकरण : इस धारा के प्रयोजनों के लिए ड्रग का मतलब है कि शराब के अलावा कोई भी नशीले पदार्थ, प्राकृतिक या सिंथेटिक या किसी भी प्राकृतिक सामग्री या किसी भी नमक, या ऐसे पदार्थ या सामग्री की तैयारी, जिसे केंद्र सरकार इस अधिनियम के तहत अधिसूचित किया जा सकता है। इस अधिनियम में मादक पदार्थ और साइकोट्रॉपिक पदार्थ शामिल है जैसा कि नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 2 (1985 का 61) के खंड (xiv) और खंड (xxiii) में परिभाषित किया गया है।]
कोर्ट ने सगीमॉन बनाम केरल राज्य (2014 (3) KLT 782) मामले में केरल हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा जताते हुए कोर्ट ने कहा कि,
"साल 2019 में अधिनियम में हुए संशोधन से पहले, ब्रेथ एनालाइजर के माध्यम से रक्त में अल्कोहल की मात्रा निर्धारित करना अनिवार्य था। संशोधन के बाद, कानून ब्रेथ एनालाइजर या किसी अन्य प्रयोगशाला परीक्षण का संचालन करने की अनुमति देता है। इस तात्कालिक मामले में, एमवी एक्ट की धारा 185 के तहत कार्यवाई किसी भी डॉक्टर की राय के आधार पर बिना किसी ब्रेथ एनालाइजर / प्रयोगशाला परीक्षणों के रक्त में अल्कोहल का पता लगाए बिना नहीं की जा सकती है।"
कोर्ट ने कार्यवाही को समाप्त करते हुए कहा कि एमवी अधिनियम की धारा 185 के संबंध में, निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना जरूरी : -
"दोनों निर्णयों को, अधिनियम की धारा 185 (A) के संशोधन से पहले की व्याख्या पर प्रस्तुत किया गया था, जिसमें ब्रेथ एनालाइजर के माध्यम से रक्त में शराब की मात्रा का पता लगाना अनिवार्य था। संशोधन के बाद, रक्त में अल्कोहल की मात्रा निर्धारित करने के लिए प्रयोगशाला परीक्षण सहित अन्य परीक्षणों का सहारा लिया जा सकता है। लेकिन, जहां तक तात्कालिक मामले का सवाल है, तो ऐसा कोई परीक्षण नहीं हुआ है। इसलिए, याचिकाकर्ता पर मोटर व्हीकल अधिनियम की धारा 185 के तहत अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। इसके भले ही प्रार्थना आगे की कार्यवाही को पूरी तरह से खत्म करने के लिए है, लेकिन मुझे ऐसा करने के लिए कोई स्थायी आधार नहीं मिल रहा है।"
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