'राजा' जैसे शीर्षक न्यायालयों, सार्वजनिक कार्यालयों आदि में इस्तेमाल नहीं किए जा सकते क्योंकि वे संविधान के अनुच्छेद 14, 18 और 363A के तहत निषिद्ध हैं: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2022-03-03 10:55 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने माना है कि संवैधानिक न्यायालयों, अन्य सभी न्यायालयों, न्यायाधिकरणों, राज्य के सार्वजनिक कार्यालयों आदि में 'राजा', 'नवाब' और 'राजकुमार' जैसे अभिवादन और उपाधियों का उपयोग संविधान के अनुच्छेद 14, 18 और 363A के संदर्भ में प्रतिबंधित है।

अदालत ने आदेश दिया कि उक्त प्रतिबंध सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ सार्वजनिक दस्तावेजों और सार्वजनिक कार्यालयों में भी लागू होगा।

जस्टिस समीर जैन ने कहा,

'उपरोक्त के आलोक में, यह न्यायालय मानता है कि संवैधानिक न्यायालयों, अन्य सभी न्यायालयों, न्यायाधिकरणों, राज्य के सार्वजनिक कार्यालयों आदि में, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 18 और 363A के संदर्भ में अभिवादन और उपाधियों का उपयोग निषिद्ध है। उक्त प्रतिबंध सार्वजनिक डोमेन के साथ-साथ सार्वजनिक दस्तावेजों और सार्वजनिक कार्यालयों में भी लागू होगा।'

कोर्ट ने यह देखते हुए इस मुद्दे को उठाया कि एक याचिका के कारण-शीर्षक में एक प्रतिवादी को 'राजा लक्ष्मण सिंह' के रूप में संबोधित किया गया था।

न्यायालय ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 18 और 363ए का अवलोकन किया और कहा कि किसी विदेशी राज्य द्वारा भारत के नागरिक को प्रदान की गई किसी भी उपाधि को स्वीकार नहीं किया जा सकता है और न ही इसका उपयोग किया जा सकता है और सैन्य या शैक्षणिक विशिष्टताओं के अलावा ऐसी कोई उपाधि राज्य के अलावा किसी अन्य द्वारा प्रदान नहीं की जा सकती है।

न्यायालय ने यह भी देखा कि अनुच्छेद 363ए के संदर्भ में, समानता के सिद्धांतों के विपरीत और अनुच्छेद 14 के विपरीत होने के कारण कुलीनता की आनुवंशिक उपाधि का उपयोग उपसर्ग या प्रत्यय के रूप में नहीं किया जा सकता है।

इस संबंध में अदालत ने रघुनाथराव गणपतराव बनाम यूनियन ऑफ इं‌डिया: 1994 [(Suppl) 1 SCC 191] और बालाजी राघवन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [AIR 1996 SC 770] पर भरोसा किया।

इसके अलावा, न्यायालय ने रजिस्ट्री को इस आदेश की प्रति महाधिवक्ता, राजस्थान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल, यूनियन ऑफ इं‌डिया; रजिस्ट्रार जनरल, हाईकोर्ट, मुख्य सचिव, राजस्‍थान सरकार, सचिवालय, जयपुर के कार्यालयों को आवश्यक क्रियान्वयन, परिचालन एवं आवश्यक दिशा निर्देश जारी करने के लिए भेजने का निर्देश दिया।

न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र, सार्वजनिक कार्यालयों, संवैधानिक न्यायालयों या सार्वजनिक रूप से शीर्षकों के निषेध पर याचिकाकर्ताओं, प्रतिवादियों या किसी अन्य व्यक्ति ने आपत्ति नहीं की थी। अदालत ने बताया कि एएसजी ने इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 18 और 363 ए के प्रावधानों के साथ-साथ असंवैधानिक शीर्षकों के उपयोग पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की है।

इसके अलावा, अदालत ने याचिकाकर्ताओं को सभी संबंधित स्थानों पर संशोधित कारण शीर्षक दाखिल करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल: भगवती सिंह (बाद से मृतक) पुत्र (स्वर्गीय) श्री राजा मानसिंह बनाम राजा लक्ष्मण सिंह पुत्र (स्वर्गीय) श्री राजा मानसिंह और संबंधित मामला

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (राज) 84

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