"यह एक मिथक है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है": कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस पी कृष्णा भट ने अपने विदाई भाषण में कहा
कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस पी कृष्णा भट ने गुरुवार को कहा कि 'न्यायपालिका की स्वतंत्रता' के लिए खतरा एक मिथक है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक न्यायाधीश द्वारा स्वतंत्र रहकर महसूस की जाती है।
हाईकोर्ट द्वारा आयोजित विदाई समारोह में उन्होंने कहा,
"न्यायपालिका की स्वतंत्रता' और उसके लिए खतरा चर्चा में है। मेरा मानना है कि 'न्यायपालिका की स्वतंत्रता' के लिए खतरा एक मिथक है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक न्यायाधीश स्वतंत्र रहकर महसूस करता है। यह कैसे प्राप्त होती है? यह जजों द्वारा केवल कुछ मूल्यों और गुणों को आत्मसात करने पर होती है। वह जज जो एक 'वैरागी' है (भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ईएस वेंकटरमैया के शब्दों में), वही स्वतंत्र न्यायपालिका बनाता है"।
उन्होंने कहा, "न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए कोई खतरा नहीं हो सकता है। एक अस्पष्ट और मंडराता हुआ विचार है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए लिखित या मौखिक रूप से बाहर से कम खतरा है, जितना कि भीतर से है; जिस तरह से याचिकाएं, शिकायतें, कैलकुलेटड ब्रांडिंग को आंतरिक रूप से संभाला जाता है।"
बार-बार सुनी जाने वाली शिकायतें कि करियर में महत्वपूर्ण चरणों जैसे प्रोबेशन में, पदोन्नति आदि पर न्यायिक अधिकारियों को कुछ आदेश पारित करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें ऐसे "बताया" गया था, इस पर टिप्पणी करते हुए भट ने कहा, "यदि ऐसा आरोप स्थापित होता है या ऐसी धारणा प्रचलित होती है तो जज स्वतंत्र नहीं है और विश्वसनीयता स्थायी रूप से प्रभावित होती है।"
उन्होंने कहा, "तो उपाय क्या है? पहली बार में, यह बेतुका और कठोर लग सकता है। जजों, न्यायिक अधिकारियों और लोकायुक्त/उप लोकायुक्त आदि जैसे अन्य उच्च पदाधिकारियों को खुद को नार्को-एनालिसिस टेस्ट के लिए पेश करना चाहिए, साथ ही उसी दायित्व के साथ संबंधित पदाधिकारी द्वारा नामित व्यक्तियों का भी ऐसा ही परीक्षण किया जाना चाहिए, यदि पदाधिकारी को लगता है कि शिकायत झूठी और प्रेरित है। ऐसी स्थितियों ने विशेष रूप से कार्यकर्ता और संस्था की विश्वसनीयता को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है।"
न्यायिक अधिकारी के रूप में अपनी यात्रा के बारे में याद करते हुए, जस्टिस भट ने कहा, "मैंने लगभग एक चौथाई सदी पहले न्यायपालिका में प्रवेश किया था। अब मेरे जाने का समय आ गया है; अपना ज्यूडिशियल गाउन टांगने का समय आ गया है। मैं बहुत संतुष्टि के साथ ऐसा कर रहा हूं। संतुष्टि इसलिए है क्योंकि मैंने अपना न्यायिक जीवन अपनी शर्तों पर बिताया है...।"
अंत में उन्होंने ट्रायल जजों को सलाह दी कि "आप तब तक स्वतंत्र रहेंगे जब तक आप प्रोटोकॉल के नाम पर ज्यादती करने से बचेंगे । आप स्वतंत्र होंगे यदि आप संभावित 'फोन कॉल्स की परवाह किए बिना निडर और स्वतंत्र तरीके से भर्ती प्रक्रियाओं सहित न्यायिक प्रशासन संभालेंगे।"
जस्टिस भट का जन्म एक कृषि प्रधान परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव से की और विट्टल में हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने करकला में श्री भुवनेंद्र कॉलेज में पीयूसी का अध्ययन किया। उन्होंने बीएससी, सेंट अलॉयसियस कॉलेज, मैंगलोर से किया। उन्होंने लॉ स्कूल, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी से कानून का अध्ययन किया।
वह शुरू में मैंगलोर के जिला न्यायालय में प्रैक्टिस हुए और जुलाई 1989 में उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट बैंगलोर में प्रैक्टिस शुरू किया। 1998 में उन्हें जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने बीदर, तुमकुर, रायचूर, बेलगाम और बैंगलोर ग्रामीण जिलों में प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
वह कर्नाटक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और कर्नाटक न्यायिक अकादमी, बैंगलोर के निदेशक भी थे। 21.05.2020 को कर्नाटक हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए और 25.09.2021 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
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