नुक्कड़ों पर विवाद निपटारे की प्रवृत्ति 'कानून के शासन' के विरुद्ध : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2020-07-08 06:49 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में कहा है कि विवादों का निपटारा खुद ही गली-चौराहों पर कर लेने की प्रवृत्ति 'कानून का शासन' स्थापित करने का लक्ष्य हासिल करने तथा सभ्य समाज के निर्माण के उद्देश्यों की पूर्त्ति के विरुद्ध है।

न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने यह टिप्पणी उन आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर विचार करते हुए की, जिन्होंने कथित रूप से बीच सड़क पर लड़ाई की थी, जिसके कारण शिकायतकर्ताओं को गम्भीर चोट पहुंची थी। आरोपियों के खिलाफ कुछ शिकायतें दर्ज करायी गयी थीं। राज्य सरकार ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया था कि इस तरह की घटना के साम्प्रदायिक मुद्दे के तौर पर फैलने की आशंका है।

रिकार्ड में लाये गये सीसीटीवी फुटेज का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि यह घटना दिनदहाड़े हुई थी, जहां दो व्यक्तियों को भीड़ की मौजूदगी में बेतरतीब पीटा गया था। हमलावरों ने मोबाइल के जरिये कॉल करके अपने सहयोगियों को बुलाया था। कोर्ट ने कहा कि वहां इकट्ठा भीड़ में शामिल कुछ लोगों ने मारपीट में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया, जबकि कुछ व्यक्ति या तो मूक दर्शक बनकर नजारा देख रहे थे या समर्थन कर रहे थे। जो लोग पीड़ितों को बचाने के लिए सामने आये, उनकी भी घटनास्थल पर ही पिटाई कर दी गयी थी। जो पीड़ित भागने लगे उन्हें खदेड़ा भी गया और उन्हें बचाने आये लोगों के साथ खदेड़कर पीटा भी गया।

कोर्ट ने कहा :

" इस तरह की घटनाएं सभ्य समाज के माथे पर धब्बा है। भले ही पीड़ितों के प्रति दुश्मनी और शिकवे-शिकायत रहे हों, लेकिन हमलावरों को कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए था। उन्हें सक्षम अधिकारी के समक्ष या अपने बड़े-बुजुर्गों के समक्ष ले जाकर सुलझाने का प्रयास करना चाहिए था। नुक्कड़ों और चौराहों पर विवाद निपटाने की प्रवृत्ति कानून का शासन स्थापित करने तथा सभ्य समाज के निर्माण के उद्देश्यों की पूर्त्ति के विरुद्ध है। मौजूदा मामले में विवाद निपटाने के तौर-तरीके निश्चित तौर पर बहुत ही निंदनीय हैं।" 

कोर्ट ने कहा कि खालिद नामक आरोपी को छोड़कर कोई अन्य अभियुक्त अग्रिम जमानत हासिल करने का हकदार नहीं है। 

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