तलाक/द्व‌िव‌िवाह| पार्टियों को पर्सनल लॉ में उपलब्ध उपचारों का उपयोग करने से रोकने में कोर्ट की कोई भूमिका नहीं: केरल हाईकोर्ट

Update: 2022-08-25 07:55 GMT

केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दो आदेशों को रद्द करते हुए, जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति को अपरिवर्तनीय तलाक का प्रयोग करने और दूसरी शादी करने से रोक दिया गया था, कहा कि अदालतें पार्टियों को व्यक्तिगत कानूनों में उपलब्ध उपचारों का उपयोग करने से रोक नहीं सकती हैं, यह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत उपलब्ध अधिकारों का उल्‍लंघन होगा।

जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने कहा,

"व्यक्तिगत कानून में उपलब्ध उपायों का उपयोग करने से पार्टियों को रोकने में न्यायालय की कोई भूमिका नहीं है। न्यायालय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के मैंडेट को नहीं भूलना चाहिए। यह न केवल किसी को अपने धर्म को मानने बल्‍कि अभ्यास करने की अनुमति देता है। संक्षेप में, यदि किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत विश्वास और व्यवहार के अनुसार कार्य करने से रोकने के लिए कोई आदेश पारित किया जाता है, तो यह उसके संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों का अतिक्रमण होगा।

अदालत ने हालांकि स्पष्ट किया कि एक पीड़ित व्यक्ति विश्वास और प्रथा के अभ्यास से उत्पन्न कार्रवाई को चुनौती दे सकता है; यदि यह व्यक्तिगत कानून, विश्वास और व्यवहार के अनुसार नहीं किया गया है, हालांकि वह चरण किसी कृत्य के बाद ही उत्पन्न होगा और इन मामलों में न्यायालय का अधिकार क्षेत्र सीमित है।

इस मामले में, याचिकाकर्ता-पति, जिसने तलाक देने की प्रकिया शुरु की थी, उसे पत्नी के कहने पर फैमिली कोर्ट द्वारा अस्थायी निषेधाज्ञा के आदेश से रोक दिया गया।

पत्नी ने दूसरी शादी करने से रोकने के लिए एक अर्जी भी दाखिल की। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट मजीदा एस और अजिखान एम पेश हुए और प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व एडवोकेट सुरेश कुमार एमटी, आर रंजीत, स्मिता फिलोपोज, मंजूषा के और श्रीलक्ष्मी साबू ने किया।

पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर मूल याचिका में हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

जब मामला हाईकोर्ट के सामने आया तो न्यायालय ने कहा कि परिवार न्यायालय किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत कानून के अनुसार अपना कार्य करने से नहीं रोक सकता है, और केवल तलाक की प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ही यह निर्धारित किया जा सकता है कि क्या यह व्यक्तिगत कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार है या नहीं।

डिवीजन बेंच ने टिप्पणी की कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उस व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत विश्वास और व्यवहार के अनुसार कार्य करने से रोका गया।

इसके अलावा, चूंकि एक समय में एक से अधिक व्यक्तियों से विवाह करने का अधिकार पर्सनल लॉ के तहत निर्धारित है, कोर्ट ने कहा कि यदि कानून ऐसी सुरक्षा सुनिश्चित करता है, तो यह न्यायालय को तय नहीं करना है कि कि एक व्यक्ति को अपनी धार्मिक प्रथाओं, विवेक और विश्वास के अनुसार कार्य करना चाहिए या नहीं।

पर्सनल लॉ के तहत एक समय में एक से अधिक लोगों से शादी करने का अधिकार निर्धारित है। गारंटीकृत व्यक्तिगत कानून के अनुसार किसी के व्यवहार या निर्णय को रोकने या विनियमित करने में न्यायालय की कोई भूमिका नहीं है।

कोर्ट ने इस तरह फैमिली कोर्ट के आक्षेपित आदेशों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह बिना किसी औचित्य और अधिकार क्षेत्र के था।

हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उचित समय पर, यदि कानून के अनुसार तलाक का प्रयोग नहीं किया जाता है तो प्रतिवादी-पत्नी अपनी शिकायतों के निवारण के लिए सक्षम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती हैं।

केस टाइटल: अनुवारुदीन बनाम सबीना

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केर) 452

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News