[तब्लीगी जमात] उन्होंने ऐसी कोई लापरवाही नहीं की, जिससे COVID फैलता, सरकार के आदेश का पालन भी कियाः बॉम्बे हाईकोर्ट ने 12 विदेशी नागरिकों को रिहा किया
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट (12 वीं कोर्ट, बांद्रा, मुंबई) ने बुधवार (29 सितंबर) को 12 इंडोनेशियाई नागरिकों को सभी आरोपों से बरी कर दिया। ये विदेशी नगारिक भी तब्लीगी जमात का हिस्सा थे।
उल्लेखनीय है कि मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट जयदेव वाई घुले का यह आदेश बांद्रा पुलिस द्वारा 12 इंडोनेशियाई नागरिकों के खिलाफ हत्या का प्रयास, सदोष हत्या, जिसमें हत्या न हुई हो, के आरोपों को खारिज करने के एक महीने बाद आया है।
वकील इशरत खान ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत के समक्ष रिहाई याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि - "आवेदकों को केवल इस आधार पर फंसाने का प्रयास किया गया कि वे विदेशी हैं और कोविड 19 के प्रकोप के कारण घोषित किए गए लॉकडाउन के दौरान मौजूद थे।"
वकील इशरत खान ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए इसी तरह के आदेशों और साथ ही स्थानीय न्यायालयों द्वारा विदेशी नागरिकों, जो कि तब्लीगी जमात का हिस्सा थे, को रिहा किए जाने के फैसलों पर भरोसा किया।
मामले के तथ्य
आरोपियों को अपराध संख्या 280/2020 में अभियुक्त बनाया गया था, जिन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188, 269, 270, महामारी रोग अधिनियम 1897 की धारा 3 और 4 के साथ पढ़ें, फारेनर्स एक्ट की धारा धारा 14 (बी) के साथ पढ़ें और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 के साथ पढ़ें, के तहत अपराध दर्ज किया गया था।
वकील ने यह स्पष्ट किया गया कि अभियुक्त 29-02-2020, 02-03-2020 और 06-03-2020 (विभिन्न बैचों में) दिल्ली आए थे। इसके बाद, सभी 07-03-2020 को ट्रेन से मुंबई पहुंचे। उसी समय केंद्र और राज्य सरकार ने COVID-19 के कारण लॉकडाउन की घोषणा की।
यह प्रस्तुत किया गया कि, इसीलिए वे आवागमन और देश छोड़ने में असमर्थ थे। उसी समय केंद्र और राज्य सरकार के निर्देशों के अनुसार, आवेदकों ने अपना COVID-19 परीक्षण करवाया।
उस परीक्षण में, आरोपी नंबर 1 से 10, नेगेटिव पाए गए और आरोपी 11 और 12 ने पॉजिटिव पाए गए, और बाद में ये दोनों अभियुक्त भी नेगेटिव पाए गए।
यह कहा गया कि अभियुक्तों को इस अपराध में झूठा फंसाया गया है। वे सभी इस अपराध से चिंतित थे और वे COVID-19 के वाहक नहीं थे।
अभियुक्त के वकील ने यह भी कहा कि शुरू में, पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 307 और 304 (2) के तहत अपराध दर्ज किया था। हालांकि, जब पुलिस को उक्त आरोपों को जारी रखने के पर्याप्त कारण नहीं मिले, तो उन्होंने गहन जांच के बाद उन धाराओं को हटा दिया।
यह प्रस्तुत किया गया था कि फॉरेनर्स एक्ट [धारा 14 (बी)] के प्रावधानों के अनुसार, सभी अभियुक्तों के पास पर्यटक वीजा था।
अपराध के पंजीकरण के समय, सभी आरोपियों के वीजा वैध थे, इसलिए, सवाल विदेशी अधिनियम की धारा 14 (बी) के उल्लंघन से संबंधित नहीं है।
न्यायालय के समक्ष यह कहा गया कि जांच पत्रों में यह भी सामने आया है कि आरोपी COVID के प्रसार के लिए उत्तरदायी नहीं हैं और इसलिए, अभियुक्त आईपीसी की धारा 188, 269 और विदेशी अधिनियम की धारा 14 (बी) के तहत उत्तरदायी नहीं हैं। अभियुक्त राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम के लिए भी उत्तरदायी नहीं हैं। इसलिए, यह प्रार्थना की गई कि उन्हें सभी अपराधों से बरी किया जाए।
वकील ने कोनान कोडीओ गैंस्टोन और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य [आपराधिक रिट याचिका संख्या 548/2020] के फैसले पर भरोसा किया और प्रस्तुत किया कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने विस्तृत कारणों के बाद, ऐसी मामले और ऐसे ही अपराध में अभियुक्त को रिहा कर दिया।
विशेष रूप से, इस मामले में, एक फैसले में 21 अगस्त को बॉम्बे हाईकोर्ट ने कुल 29 विदेशी नागरिकों के खिलाफ दायर एफआईआर को रद्द कर दिया था, जिन्हें भारतीय अपराध संहिता, महामारी रोग अधिनियम, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, सहित आपदा के विभिन्न प्रावधानों के तहत अभियुक्त बनाया गया था। इसलिए, वर्तमान मामले में, यह प्रस्तुत किया गया कि अभियुक्तों को कथित अपराधों से मुक्त किया जाएगा।
कोर्ट का विश्लेषण (चार्जशीट और अन्य रिकॉर्ड के आधार पर)
पार्टियों द्वारा प्रस्तुत आवेदन और पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट का अवलोकन करने के बाद, न्यायालय ने पाया कि अपराध संख्या 280/2020 आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 और 304 (2), आपदा प्रबंधन अधिनियम और महामारी रोग अधिनियम के तहत दर्ज किया गया है।
कोर्ट ने यह भी पाया कि पुलिस ने पंचनामा तैयार करके सभी आरोपियों का वीजा जब्त कर लिया; पंचनामा से पता चला है कि अपराध के पंजीकरण के समय, सभी अभियुक्तों के वीजा वैध थे और वे टूरिस्ट वीजा पर भारत आए थे।
अदालत ने कहा, जांच अधिकारी ने प्रस्तुत किया कि अभियुक्त COVID-19 संक्रमण फैलाने के लिए उत्तरदायी थे और उन्होंने आपदा प्रबंधन अधिनियम और महामारी रोग अधिनियम का पालन नहीं किया और इसलिए, उनके खिलाफ अपराध दर्ज किए गए।
जांच अधिकारी द्वारा दायर आरोप पत्र का अवलोकन करते हुए, अदालत ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि सबसे पहले, आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 और 304 (2) के तहत अपराध दर्ज किया गया और उसके बाद जांच अधिकारी ने उसे हटा दिया।
आईपीसी की उक्त धाराओं को हटाने के समय, जांच अधिकारी ने कहा कि अभियुक्त बड़े पैमाने पर COVID-19 फैलाने के लिए उत्तरदायी नहीं थे और इसलिए, उन्होंने आईपीसी की धारा 307 और 304 (2) को हटा दिया।
अदालत ने आगे कहा कि जांच के दौरान, यह पता नहीं चला कि अभियुक्तों के कारण COVID फैला था।
जांच से यह भी पता चला कि आरोपी इंडोनेशिया से पर्यटक वीजा पर आए थे। उन्होंने मुंबई और दिल्ली में विभिन्न मस्जिदों का दौरा किया। वे मस्जिद के साथ-साथ कुछ लोगों के घर पर भी रहे।
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने टिप्पणी की, "बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से गुजरने के बाद, यह पता नहीं चलता है कि अभियुक्तों ने जानबूझकर प्रशासन द्वारा घोषित आदेश की अवज्ञा की थी और साथ ही लापरवाही से काम कर रहे थे.."
रिकॉर्ड ने यह भी खुलासा किया कि विदेशी अधिनियम धारा 14 (बी) के अनुसार, अभियुक्त ने वीजा की शर्त का उल्लंघन नहीं किया। इसलिए, अदालत ने कहा कि आरोपों और रिकॉर्ड पर मौजूदा सबूतों से, यह प्रकट नहीं होता है कि अभियुक्त ने सरकार के आदेश की अवज्ञा की और लापरवाही से काम किया और COVID -19 के संक्रमण को फैलाने के लिए उत्तरदायी थे।
इसलिए, न्यायालय ने निम्नलिखित आदेश जारी किए: -
a. अभियुक्त को आरोपों से मुक्त किया गया
b. जब्त किए गए पासपोर्टों को उचित पहचान के साथ अभियुक्त को लौटाया जाए
C. अभियुक्तों की जमानत बांड रद्द कर दिया गया।
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