'कानून की नजर में सहानुभूति का कोई स्थान नहीं': झारखंड हाईकोर्ट ने ओएमआर शीट में गलत रोल नंबर लिखने वाले उम्मीदवार को राहत देने से इनकार किया
झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने हाल ही में ओएमआर शीट (OMR Sheet) के पुनर्मूल्यांकन के लिए एक उम्मीदवार के अनुरोध को यह कहते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया कि इससे 'हेरफेर' होगा।
दरअसल, परीक्षार्थी ने अपना रोल-नंबर भरते समय '8' के स्थान पर '6' का गलत गोल घेरा बना लिया था, जिसके कारण झारखंड संयुक्त सिविल सेवा प्रतियोगी परीक्षा में पेपर 2 का मूल्यांकन नहीं हो पाया।
न्यायमूर्ति एस.एन. पाठक ने कहा,
"अगर ओएमआर शीट के पुनर्मूल्यांकन के संबंध में विवाद को स्वीकार किया जाता है, तो यह फ्लड गेट खोलने के समान होगा। भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत यह अदालत ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।"
पृष्ठभूमि
वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव शर्मा और अधिवक्ता ऐश्वर्या प्रकाश के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि रोल नंबर 52278958 वाला याचिकाकर्ता झारखंड संयुक्त सिविल सेवा प्रतियोगी परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा के लिए उपस्थित हुआ। रिजल्ट आने पर याचिकाकर्ता सफल नहीं पाया गया। पूछताछ करने पर पता चला कि पेपर- I और II में उसने 240 अंक प्राप्त किए, जबकि 230 अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए कट-ऑफ था। पुनर्मूल्यांकन की मांग पर जेपीएससी द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया।
जेपीएससी की ओर से पेश एडवोकेट संजय पिपरवाल ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता द्वारा भरे गए रोल नंबर को गलत तरीके से काला करने या छायांकन करने के कारण ओएमआर स्कैनिंग मशीन द्वारा सामान्य अध्ययन पेपर- II की ओएमआर उत्तर पुस्तिका को खारिज कर दिया गया था। इसलिए, उसके पेपर- I के स्कोर को केवल उसके कुल अंक के रूप में माना गया।
यह भी तर्क दिया गया कि ओएमआर शीट में रोल नंबर या नाम आदि से संबंधित किसी भी सुधार से उम्मीदवार की ओएमआर शीट में हेरफेर होगा।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए इस बात पर जोर दिया कि यह एक स्वीकृत तथ्य है कि याचिकाकर्ता ने अपने रोल नंबर के अंतिम अंक को '8' के बजाय '6' के रूप में गलत तरीके से काला कर दिया है। यह देखा गया कि जेपीएससी उम्मीदवार की ओर से की गई गलती को सुधार नहीं सका।
इसलिए, अकेले पेपर- I के लिए उसके अंकों को अंतिम माना जाएगा और गलत रोल नंबर दर्ज करने के लिए पेपर- II का मूल्यांकन नहीं किया जाएगा।
आगे कहा,
"हो सकता है कि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर 8 के बजाय अंक 6 को काला नहीं किया हो, लेकिन कानून की नजर में सहानुभूति का कोई स्थान नहीं है। विज्ञापन, प्रवेश पत्र और जेपीएससी द्वारा उल्लिखित नियमों और शर्तों के मद्देनजर कानून लागू होगा।"
कोर्ट ने राम विजय सिंह एंड अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एंड अन्य, (2018) 2 एससीसी 357 के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का भी उल्लेख किया। इसमें कहा गया था कि संदेह की स्थिति में, लाभ उम्मीदवार के बजाय परीक्षा प्राधिकरण को जाना चाहिए।
केस का शीर्षक: आदित्य ईशा प्राची तिर्की बनाम झारखंड लोक सेवा आयोग एंड अन्य।
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