सस्पेंशन कोई सजा नहीं, सिर्फ नियोक्ता-कर्मचारी के संबंध में आया ठहराव हैः तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा,''आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे कर्मचारी को नियोक्ता पर थोपा नहीं जा सकता''
यह देखते हुए कि ''निलंबन कोई सजा नहीं है'' और यह ''सिर्फ नियोक्ता और एक कर्मचारी के बीच संबंध को निलंबित करता है'', तेलंगाना हाईकोर्ट ने बुधवार को दोहराया है कि सिविल सेवा नियमों के तहत अगर किसी कर्मचारी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला लंबित है या विभागीय जांच चल रही है तो उस कर्मचारी को निलंबित किया जा सकता।
अदालत एक डिप्टी तहसीलदार की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी,उसने अपने निलंबन के आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता के खिलाफ 24 जुलाई 2020 को आईपीसी की धारा 420, 468, 471, 506 रिड विद 34 के तहत किए गए अपराध के संबंध में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। जिसके बाद उसे 31 जुलाई 2020 को उसे निलंबित कर दिया गया था। अपीलकर्ता ने 17 अगस्त 2020 एकल पीठ द्वारा पारित आदेश की वैधता को चुनौती दी थी। एकल पीठ ने याचिकाकर्ता की तरफ से उसके निलंबन के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था।
मुख्य न्यायाधीश राघवेन्द्र सिंह चौहान और जस्टिस टी विनोद कुमार की पीठ ने कहा कि,
''चूंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ क्रिमिनल ट्रायल और डिपार्टमेंटल इंक्वायरी,दोनों ही लंबित है, इसलिए नियोक्ता को इस तरह के कर्मचारी के साथ काम करने को मजबूर नहीं किया जा सकता है या ऐसे कर्मचारी को नियोक्ता पर लादा नहीं जा सकता है।'' इसलिए याचिकाकर्ता को निलंबन करने का आदेश न्यायोचित है।
पीठ ने कहा कि तेलंगाना सिविल सर्विस (क्लासीफिकेशन,कंट्रोल और अपील) रूल्स, 1991 के नियम 8 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एक कर्मचारी को निलंबित किया जा सकता है यदि कोई आपराधिक मामला लंबित है, या विभागीय जांच पर विचार किया जा रहा है।
पीठ ने यह भी कहा कि
''वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता को 31 जुलाई 2020 को उसके आरोप बता दिए गए थे। इस प्रकार, जाहिर तौर पर एक विभागीय जांच शुरू हो गई थी। इसके अलावा, निस्संदेह, याचिकाकर्ता के खिलाफ 24 जुलाई 2020 को पुलिस स्टेशन,करीमनगर रूरल में आईपीसी की धारा 420,468,471,506 रिड विद 34 के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई है।'' ऐसे में नियम 8 के तहत बताई गई दोनों शर्तें इस मामले में पूरी होती हैं।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता लगभग अपने सेवा करियर के अंत में है, क्योंकि वह एक वर्ष की अवधि के भीतर सेवानिवृत्त होने वाला है। दूसरा, उन पर लगाए गए आरोपों का संबंध वर्ष 2005-2006 से है। इसलिए, याचिकाकर्ता को लगभग 14 वर्ष बाद निलंबित करने से कोई भी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। तीसरा, याचिकाकर्ता के खिलाफ जिस शिकायत के आधार पर आपराधिक मामला दर्ज किया गया है,वह शिकायत भी वर्ष 2005- 2006 की अवधि से संबंधित है। वहीं शिकायतकर्ता पहले ही राजस्व अधिकारियों के समक्ष अपने मामले को हार चुका है। यह भी दलील दी गई थी कि इस मामले में दर्ज एफ.आई.आर. झूठी व फर्जी है और केवल याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए दर्ज की गई है। इस प्रकार, यह प्रार्थना की गई थी कि उपरोक्त आदेश को इस न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि इस मामले में दर्ज एफ.आई.आर. झूठी व फर्जी है या नहीं,इस बात का निर्णय हाईकोर्ट द्वारा नहीं किया जा सकता है। प्राथमिकी की सत्यता व प्रामाणिकता के बारे में निर्णय ट्रायल कोर्ट द्वारा किया जाएगा। इसलिए याचिकाकर्ता के वकील की यह दलील कि मामले में दर्ज प्राथमिकी फर्जी व झूठी है,एक अरक्षणीय दलील है। इसी के साथ पीठ ने अपील को खारिज कर दिया।