सुप्रीम कोर्ट ने एनसीएलटी से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने के लिए कहने के लिए वकील को अवमानना ​​​​के लिए नोटिस जारी किया

Update: 2023-03-15 15:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक वकील को "अदालत की अवमानना" के लिए नोटिस जारी किया। इस वकील ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को अनदेखा करने के लिए कहा था।

एनसीएलटी में दायर अपने आवेदन में वकील ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का 23.09.2022 का आदेश शून्य (nullity) है क्योंकि उस बेंच के सदस्यों में से एक जिसने आदेश पारित किया था, वह दूसरे पक्ष से संबंधित था। इस प्रकरण में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि न्यायाधीश, जो कथित रूप से पार्टी से संबंधित थे, उस पीठ के सदस्य ही नहीं थे, जिसने दिनांक 23.09.2022 को आदेश पारित किया था।

वकील, एडवोकेट दीपक खोसला पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना ​​​​कार्यवाही का सामना कर रहे हैं। उस अवमानना ​​​​कार्यवाही में खोसला के आवेदन को जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की पीठ के ध्यान में लाया गया था ।

जब खंडपीठ ने सवाल किया तो खोसला के वकील सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने स्वीकार किया कि आवेदन वास्तव में उनके द्वारा दायर किया गया था। पीठ ने आगे पूछा कि आवेदन में जिनका जिक्र है वह कौन जज हैं (आवेदन में जज का नाम नहीं था)।

इस मौके पर कोर्ट में मौजूद खोसला ने जस्टिस पीएस नरसिम्हा के नाम का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आवेदन अनजाने में दायर किया गया था, क्योंकि वह जस्टिस नरसिम्हा (एससी जज के रूप में उनकी पदोन्नति से पहले) के नाम से भ्रमित हो गए थे, क्योंकि उन्हें विपरीत पक्ष द्वारा मध्यस्थ के रूप में नामित किया गया था।

बेंच इस बचाव को मानने को तैयार नहीं हुई। पीठ ने कहा कि जस्टिस नरसिम्हा उस पीठ का हिस्सा नहीं थे जिसने 23.09.2022 को आदेश पारित किया था और इसे जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने पारित किया था। पीठ द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या उन न्यायाधीशों के विपरीत पक्ष के साथ कोई संबंध थे, खोसला ने नहीं में उत्तर दिया।

इस पर पीठ ने वकील को फटकार लगाते हुए लिखा,

दीपक खोसला कोई साधारण वादी नहीं हैं। उनके पास इस न्यायालय, हाईकोर्ट और विभिन्न अन्य न्यायालयों के समक्ष मुकदमेबाजी लड़ने का समृद्ध अनुभव है, हालांकि शायद सीमित मामलों में। हम समझ सकते हैं कि एक आम आदमी अनजाने में पीठ के सदस्यों को लेकर भ्रमित हो सकता है, जो आदेश के पक्षकार थे। लेकिन एक वकील और एक पार्टी-इन-पर्सन, जो विभिन्न अदालतों के समक्ष दिन-ब-दिन पेश होता है, उसे अज्ञानता का लाभ नहीं दिया जा सकता। विशेष रूप से जब वह पहले से ही कई अवमानना ​​​​कार्यवाहियों का सामना कर रहा है तो यह विश्वास करना मुश्किल है कि उक्त बयान अनजाने में दिया गया था।”

पीठ ने आगे कहा कि प्रत्येक वादी, विशेष रूप से वे जो पेशे से वकील हैं, उन्हें अपनी दलीलों में कोई भी तर्क देते समय सतर्क रहना चाहिए। एमवाई शरीफ बनाम माननीय न्यायाधीश, नागपुर उच्च न्यायालय [1955 एआईआर एससी 19] का हवाला दिया गया जिसमें यह कहा गया कि एक वकील भी जो अपमानजनक बयानों पर हस्ताक्षर करता है, अवमानना ​​​​का दोषी होगा। पीठ ने कहा कि खोसला द्वारा दायर आवेदन सुप्रीम कोर्ट के सम्मान को कम करने और एनसीएलटी को धमकाने का एक प्रयास था।

बेंच ने कहा,

"जब इस अदालत द्वारा एनसीएलटी, नई दिल्ली के समक्ष आवेदन करते हुए इस आदेश पर रोक लगाते हुए एक आदेश पारित किया जाता है कि कोर्ट द्वारा यथा स्थिति बनाए रखने के आदेश के बावजूद न्यायाधिकरण को इस मामले की सुनवाई के साथ आगे बढ़ना चाहिए तो यह और कुछ नहीं बल्कि देश के सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को कम करने और उसके सम्मान में कमी लाने का प्रयास कर रहा है। यह ट्रिब्यूनल के सदस्यों को धमकाने की कोशिश है। हमारे विचार में पार्टी द्वारा ऐसा आचरण, जो पहले से ही कई अवमानना ​​​​कार्यवाहियों का सामना कर रहा है, और कुछ नहीं बल्कि एक गंभीर अवमानना ​​है।

पीठ ने वकील को नोटिस जारी करने का निर्देश देते हुए निष्कर्ष निकाला, "उन्हें कारण बताने के लिए कहा कि अदालत की अवमानना ​​करने के लिए उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए।"

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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