'ऐसे पुराने दावे को पुनर्जीवित नहीं किया जाना चाहिए': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 20 साल बाद दायर आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की मांग को लेकर दायर आवेदन खारिज किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 2016 की धारा 11(4) के तहत आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के लिए दायर आवेदन खारिज कर दिया। कोर्ट ने आवेदन खारिज करते हुए कहा कि विवाद होने के 20 साल बाद दायर किया जाने वाला ऐसा आवेदन देरी और देरी से भरा होता है।
जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा ने यह देखते हुए कि पक्षकारों के बीच समझौते में आर्बिट्रेशन क्लॉज मौजूद है, कहा,
“हालांकि, जो बात रिकॉर्ड में स्वीकार की गई, वह यह है कि वर्ष 2000 में पक्षकारों के बीच विवाद हुआ। आवेदक को आर्बिट्रेशन क्लॉज के बारे में पता था। हालांकि, आवेदक ने आर्बिट्रेशन क्लॉज को लागू नहीं करने का विकल्प चुना और मुकदमे में अपना दावा पेश किया, जिसे बाद में वापस ले लिया गया। इस न्यायालय को प्रतिवादी की आपत्ति में दम नजर आता है कि इतने लंबे समय के अंतराल के बाद ऐसे पुराने दावे को पुनर्जीवित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। तीन साल की सीमा वर्ष 2003 में समाप्त हो गई। 20 साल के बाद इस याचिका दाखिल करना देरी के कारण पूरी तरह से वर्जित है।''
3 अगस्त, 1985 को आवेदक और प्रतिवादी के बीच पार्टनरशिल डीड निष्पादित की गई, जिसमें आर्बिट्रेशन क्लॉज शामिल था। इसके बाद जब पक्षकारों के बीच विवाद पैदा हुआ और आवेदक ने अगस्त 2000 में मूल मुकदमा दायर करके सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसे 2019 में वापस ले लिया गया। इसके बाद आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के लिए आवेदन दायर किया गया।
प्रतिवादी ने कार्रवाई के कारण की तारीख से 20 साल से अधिक समय के बाद ऐसे आवेदन की सुनवाई योग्यता पर आपत्ति उठाई। यह तर्क दिया गया कि दावा परिसीमा अधिनियम की अनुसूची के क्लॉज 132 द्वारा वर्जित है, जिसमें आर्बिट्रेशन क्लॉज को लागू करने के लिए तीन साल की अवधि निर्धारित है।
न्यायालय ने आर्बिट्रेशन आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि 20 साल पहले के पुराने दावे को पुनर्जीवित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
केस टाइटल: गुरुचरण दास बनाम त्रिभुवन पाल और 2 अन्य [एआरसीओ नंबर 69/2020]
आवेदक के वकील:- सत्य प्रकाश गुप्ता, जय प्रकाश गुप्ता
विपक्षी के वकील :- अजय कुमार सिंह, आशीष कुमार सिंह,सौरभ कुमार
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