भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के तहत उत्तराधिकार प्रमाण पत्र किसी तरह का कोई स्वामित्व नहीं देते : जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया

Update: 2023-04-11 12:15 GMT

The Jammu and Kashmir and Ladakh High Court

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के तहत उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रदान करने की कार्यवाही संक्षिप्त प्रकृति की है और प्रमाण पत्र धारक के पक्ष में राशि के लिए कोई टाइटल/स्वामित्व प्रदान नहीं करती है।

जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 384 के संदर्भ में दायर एक अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है। यह अपील जिला न्यायाधीश, श्रीनगर की अदालत द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ की गई थी, जिसके तहत कोर्ट ने प्रतिवादी/आवेदकों के पक्ष में और साथ ही अपीलकर्ताओं/गैर-आवेदकों के पक्ष में मृतक की छह लाख रुपये की राशि का बंटवारा करते हुए उत्तराधिकार प्रमाणपत्र जारी किया था।

अपील के अपने ज्ञापन में अपीलकर्ताओं (मृतक के माता-पिता) ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा था कि प्रतिवादी को उसके दिवंगत पति द्वारा तलाक दिया गया था या नहीं, इस संबंध में तथ्यात्मक स्थिति केवल एक सिविल कोर्ट द्वारा स्थापित की जा सकती है। उन्होंने दलील दी कि सही तरीके से इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद, यह समझना मुश्किल है कि ट्रायल कोर्ट ने यह कैसे कहा कि प्रतिवादी मृतक की विधवा है और तलाकशुदा नहीं है।

इस मामले पर निर्णय देते हुए जस्टिस वानी ने कहा कि अधिनियम 1925 के तहत उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रदान करने की कार्यवाही संक्षिप्त प्रकृति की है और प्रमाण पत्र धारक के पक्ष में राशि का कोई टाइटल प्रदान नहीं करती है। पीठ ने रेखांकित किया कि अधिनियम के तहत अदालत को खुद को पूरी तरह से प्रमाण पत्र के अधिकार के सवाल तक ही सीमित रखना है और दावे के टाइटल, वास्तविकता या चरित्र पर फैसला नहीं करना है।

इस विषय पर कानून की व्याख्या करने के लिए बेंच ने सी. के. प्रहलाद व अन्य बनाम कर्नाटक राज्य व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को दर्ज करना उचित समझा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि,

‘‘एक उत्तराधिकार प्रमाणपत्र एक सीमित उद्देश्य के लिए दिया जाता है। उत्तराधिकार प्रमाणपत्र देने वाली अदालत टाइटल के सवाल का फैसला नहीं करती है। एक नामित व्यक्ति या उत्तराधिकार प्रमाणपत्र धारक का कर्तव्य है कि वह संपत्ति को उस व्यक्ति को सौंप दे, जिसके पास लीगल टाइटल है। केवल उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करने से कोई व्यक्ति संपत्ति का मालिक नहीं बन जाता है।”

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 373 और 387 पर विचार करते हुए जस्टिस वानी ने स्पष्ट किया कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रदान करने की प्रक्रिया संक्षेप में होती है और इस तरह की कार्यवाही में कोई अधिकार अंतिम रूप से तय नहीं किया जाता है।

पीठ ने कहा इसके अलावा धारा 387 स्पष्ट रूप से प्रदान करता है कि पक्षकारों के बीच अधिकार के किसी भी प्रश्न पर पार्ट एक्स के तहत कोई भी निर्णय किसी भी मुकदमे या अन्य कार्यवाही में समान पक्षकारों के बीच इसी प्रश्न के ट्रायल पर रोक नहीं माना जाएगा और इस प्रकार धारा 387 एक सूट या अन्य कार्यवाही दाखिल करने की अनुमति देती है भले ही एक उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रदान किया गया हो।

अदालत ने इंगित किया कि तलाकशुदा के बजाय विधवा के रूप में प्रतिवादी की स्थिति के बारे में निचली अदालत का अवलोकन उसके टाइटल का निर्धारण नहीं कहा जा सकता है।

पीठ ने यह भी कहा,‘‘हालांकि, उक्त अवलोकन भले ही प्रतिवादी 1 की स्थिति को तलाकशुदा के बजाय विधवा के रूप में निर्धारित करने के लिए माना जाता है, तो भी यह धारा 387 के प्रावधानों के तहत दीवानी अदालत के निर्धारण और अधिनिर्णय के अधीन होगा।’’

उक्त कानूनी स्थिति को देखते हुए पीठ ने हस्तक्षेप से इंकार कर दिया और अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल- शेख मोहम्मद अमीन व अन्य बनाम यासिर फारूक व अन्य

साइटेशन- 2023 लाइवलॉ (जेकेएल) 80

कोरम- जस्टिस जावेद इकबाल वानी

याचिकाकर्ता के वकील- श्री एस.आर. हुसैन

प्रतिवादी के वकील- एडवोकेट सुश्री एम.एस. लतीफ, श्री जाहिद, श्री आसिफ वानी व सीनियर एडवोकेट श्री अल्ताफ हकानी

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