किसी आपराधिक मुकदमे में लागू साक्ष्य के सख्त नियम, मोटर दुर्घटना मुआवजा मामलों में लागू नहीं होते हैं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-12-10 07:38 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि किसी आपराधिक मुकदमे में लागू साक्ष्य के सख्त नियम मोटर दुर्घटना मुआवजा मामलों में लागू नहीं होते हैं।

इस मामले में, राजस्थान हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण द्वारा दावेदारों को दिए गए मुआवजे को कम करते हुए, मृतक के वेतन प्रमाण पत्र और वेतन पर्ची पर केवल इस आधार पर विचार करने से इनकार कर दिया कि इन दस्तावेजों को जारी करने वाले व्यक्ति की जांच ट्रिब्यूनल के समक्ष नहीं की गई थी।

दावेदारों द्वारा दायर अपील में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस एस रवींद्र भट की बेंच ने हाईकोर्ट के इस दृष्टिकोण से असहमति जताई और कहा:

"मोटर दुर्घटना के दावों से संबंधित एक मुकदमे में दावेदारों को मामले को साबित करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ऐसा आपराधिक मुकदमे में किया जाना आवश्यक होता है। कोर्ट को इस अंतर को ध्यान में रखना चाहिए। यह सुस्थापित है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 लाभकारी कानून है और इस तरह, मुआवजे के मामलों से निपटने के दौरान एक बारगी दुर्घटना की वास्तविक घटना स्थापित हो जाने के बाद ट्रिब्यूनल की भूमिका न्यायपूर्ण और उचित मुआवजा देने की होगी। जैसा कि इस कोर्ट ने सुनीता (सुप्रा) और कुसुम लता (सुप्रा) मामलों में व्यवस्था दी है, किसी आपराधिक मुकदमे में लागू सबूत के सख्त नियम मोटर दुर्घटना मुआवजा मामलों में लागू नहीं होते हैं, यानी, "ध्यान में रखे जाने वाले सबूत के मानक को संभाव्यता की प्रबलता के अनुरूप होना चाहिए, न कि सभी उचित संदेह से परे प्रमाण का सख्त मानक, जिसका आपराधिक मामलों में पालन किया जाता है"।''

कोर्ट ने कहा कि दावेदारों द्वारा पेश किए गए दस्तावेज मृतक की आय के निर्णायक सबूत हैं और मृतक की पत्नी तथा उनके सहकर्मियों के बयानों से भी इसकी पुष्टि हुई है।

अपील स्वीकार करते हुए कोर्ट ने दावेदारों को 20,98,655/- रुपये का मुआवजा दिया।

केस ब्योरा- राजवती उर्फ रज्जो बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड | 2022 लाइवलॉ (एससी) 1016 | सीए 8179/2022 | 9 दिसंबर 2022 | जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस एस रवींद्र भट

हेडनोट्स

मोटर दुर्घटना मुआवजा दावा - किसी आपराधिक मुकदमे में लागू साक्ष्य के सख्त नियम मोटर दुर्घटना मुआवजे के मामलों में लागू नहीं होते - मृतक के वेतन प्रमाण पत्र और वेतन पर्ची को केवल इस आधार पर खारिज करते हुए कि उपरोक्त दो दस्तावेजों को जारी करने वाले व्यक्ति की ट्रिब्यूनल के समक्ष जांच नहीं की गई थी, हाईकोर्ट द्वारा अपनाये गये दृष्टिकोण से असहमति जताई गयी – 'सुनीता बनाम राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम (2020) 13 एससीसी 486' और 'कुसुम लता बनाम सतबीर (2011) 3 एससीसी 646' के फैसले को ध्यान में रखा गया। (पैरा 16-20)

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