राज्य सरकार अगले आदेश तक डिग्री कोर्सेस में कन्नड़ भाषा को अनिवार्य नहीं करेगी: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह अगले आदेश तक उन छात्रों को बाध्य न करे जो डिग्री कोर्सेस के दौरान कन्नड़ भाषा को अनिवार्य विषय के रूप में नहीं लेना चाहते हैं।
मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी और न्यायमूर्ति सचिन शंकर मगदुम की खंडपीठ ने कहा,
"हमने सबमिशन पर विचार किया है। हमारा प्रथम दृष्टया विचार है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आधार पर कन्नड़ भाषा को उच्च अध्ययन में अनिवार्य भाषा बनाने के संबंध में एक प्रश्न है जिस पर विचार करने की आवश्यकता है। इस स्तर पर राज्य सरकार भाषा को अनिवार्य बनाने पर जोर देती हैं। जिन छात्रों ने अपनी पसंद के आधार पर कन्नड़ भाषा ली है, वे ऐसा कर सकते हैं। इसके अलावा, वे सभी छात्र जो कन्नड़ भाषा नहीं लेना चाहते हैं, उन्हें अगले आदेश तक कन्नड़ भाषा का अध्ययन करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।"
हाईकोर्ट ने यह निर्देश कर्नाटक सरकार के राज्य में डिग्री कोर्सेस में कन्नड़ भाषा को अनिवार्य विषय बनाने के फैसले को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया। इन याचिकाओं में से एक छात्रों द्वारा और दूसरी संस्कृत भारती कर्नाटक ट्रस्ट द्वारा दायर की गई है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एमबी नारदगुन ने कहा,
"एनईपी के कार्यान्वयन के आधार पर किसी विशेष राज्य में किसी भी भाषा को अनिवार्य बनाने के व्यापक प्रभाव होंगे और जैसे भारत सरकार को इस संबंध में राज्य सरकार के परामर्श से निर्णय लेना है।"
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एमबी नारदगुन को अदालत ने इस मुद्दे पर भारत सरकार के रुख को स्पष्ट करने के लिए कहा है।
चूंकि इस उद्देश्य के लिए आवश्यक बैठकें नहीं हो सकीं, एएसजी भारत संघ का पक्ष रखने की स्थिति में नहीं थे। हालांकि उन्होंने कहा कि भारत संघ की ओर से एक विस्तृत जवाबी हलफनामा जल्द ही दायर किया जाएगा। इसके लिए उन्होंने चार सप्ताह का समय मांगा। पीठ ने उनके इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
महाधिवक्ता प्रभुलिंग के नवदगी ने छात्र शिवकुमार के जी और अन्य द्वारा दायर याचिका पर आपत्तियों का बयान दर्ज करने के लिए समय मांगा। उन्होंने प्रस्तुत किया कि इन छात्रों ने 12वीं कक्षा तक कन्नड़ का अध्ययन किया है और याचिका विचारणीय नहीं है। उन्होंने अदालत से यह भी अनुरोध किया कि दी गई राहत अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं तक सीमित होनी चाहिए।
इस पर, अदालत ने मौखिक रूप से कहा,
"इस मुद्दे का राजनीतिकरण न करें। हमने इसे सभी छात्रों के लिए स्पष्ट कर दिया है।"
याचिका में सात अगस्त, 2021 और 15 सितंबर, 2021 के दो GOs को मनमाना और संविधान के तहत गारंटीकृत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विपरीत चुनौती दी गई है।
इसमें कहा गया कि विवादित शासनादेश अध्ययन के लिए एक भाषा चुनने की स्वतंत्रता छीन लेते हैं और कर्नाटक के सभी छात्रों के लिए विज्ञान, वाणिज्य और कला की सभी धाराओं में पेश किए जाने वाले डिग्री कोर्सेस में कन्नड़ को एक भाषा के रूप में लेना अनिवार्य कर देते हैं। इस प्रकार, संविधान के तहत निहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगता है।
केस शीर्षक: संस्कृत भारती कर्नाटक ट्रस्ट बनाम भारत संघ
केस नंबर: डब्ल्यूपी 18156/2021