अंतिम वर्ष की परीक्षाएं स्थगित करने का राज्य सरकार का निर्णय देश में उच्च शिक्षा के मानकों को सीधे प्रभावित कर रहा है : यूजीसी ने बाॅम्बे हाईकोर्ट मेंं बताया
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने बाॅम्बे हाईकोर्ट के समक्ष एक हलफनामा दायर करते हुए कहा है कि महाराष्ट्र राज्य द्वारा अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को स्थगित करने या परीक्षा करवाए बिना ही छात्रों को 'ग्रेजुएट' करने का निर्णय देश में उच्च शिक्षा के मानकों को प्रभावित कर रहा है। साथ ही यह निर्णय उच्च शिक्षा के मानकों के समन्वय और निर्धारण करने के वैधानिक क्षेत्र पर भी अतिक्रमण कर रहा है,जो विशेष रूप से संसद के लिए आरक्षित है।
पूर्व में मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई की पीठ ने यूजीसी को निर्देश दिया था कि वह जीएलसी, मुंबई के चौथे वर्ष के लाॅ के छात्र की तरफ से दायर जनहित याचिका पर अपना जवाब दायर करें। इसी पीठ ने पांचवें वर्ष के लाॅ के छात्र अविरुप मंडल, ओंकार वबल, स्वप्निल धगे, तेजस माने और सुरभि अग्रवाल की तरफ से दायर एक रिट याचिका पर भी सुनवाई की थी। जिसमें उन्होंने अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को रद्द करने और परिणामों की तत्काल घोषणा करने की मांग की थी।
इसके अतिरिक्त,इन छात्रों की तरफ से 19 जून 2020 को जारी महाराष्ट्र सरकार के जीआर के समर्थन में एक हस्तक्षेप आवेदन भी दायर किया गया था। जिसमें राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने निर्णय लिया था कि महामारी के बीच जो छात्र अंतिम वर्ष की परीक्षा में बैठने के इच्छुक नहीं है,उनकी परीक्षाएं रद्द की जाएं।
यूजीसी की तरफ से यह हलफनामा डाॅ. निखिल कुमार ने दायर किया है,जो नई दिल्ली स्थित यूजीसी के प्रधान कार्यालय में शिक्षा अधिकारी हैं। हलफनामे में कहा गया है कि शुरूआत में दिशानिर्देशों को 29 अप्रैल, 2020 को अधिसूचित किया गया था। जिनमें कहा गया था कि सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को अंतिम वर्ष/टर्मिनल सेमेस्टर परीक्षाओं ( जुलाई 2020 में) को जरूर आयोजित करवाना चाहिए ताकि छात्रों के शैक्षणिक और करियर हितों की रक्षा की जा सके। हालांकि इस दौरान उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा भी की जाए।
जून 2020 में COVID19 महामारी की स्थिति को देखते हुए यूजीसी ने प्रो. आरसी कुहाड़ की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति से अनुरोध किया था कि वह COVID19 महामारी और उसके कारण लगाए गए लाॅकडाउन के चलते 'विश्वविद्यालयों में परीक्षा आयोजित करवाने ओर शैक्षणिक कैलेंडर को लेकर बनाए गए यूजीसी के दिशानिर्देशों का पुनरीक्षण करें।'
इस प्रकार विशेषज्ञ समिति (जिसमें तकनीकी विश्वविद्यालयों के उप-कुलपति और उद्योग के प्रतिनिधि भी शामिल थे) ने ऐसा ही किया और एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में अनुशंसा की गई थी कि विश्वविद्यालयों/ संस्थानों द्वारा सितंबर, 2020 के अंत तक टर्मिनल सेमेस्टर/अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करवाई जानी चाहिए। भले ही ऑफलाइन (कलम और कागज)/ऑनलाइन/ मिश्रित (ऑनलाइन प्लस ऑफलाइन) मोड में करवाई जाएं।
हलफनामे में कहा गया है कि-
'' यह कहने की जरूरत नहीं है कि विशेषज्ञ समिति और उसकी अनुशंसा पर प्रतिवादी नंबर 6 ने टर्मिनल/ अंतिम परीक्षा आयोजित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है क्योंकि यह छात्रों के शैक्षणिक कैरियर में पाठ्यक्रम समाप्त करने वाले टर्मिनल सेमेस्टर/अंतिम वार्षिक परीक्षा के रूप में एक महत्वपूर्ण कदम है। पाठ्यक्रम की संरचना (चाहे सेमेस्टर हो या वार्षिक प्रारूप) निश्चित रूप से ,एक उच्च शिक्षण संस्थान से दूसरे संस्थान में भिन्न होती है और परंतु यह तथ्य वर्तमान याचिका के निर्धारण के लिए प्रासंगिक नहीं है।''
इसके अलावा, हलफनामे में यह भी कहा गया है कि देश के सभी विश्वविद्यालय/ संस्थान सितंबर, 2020 के अंत तक टर्मिनल सेमेस्टर/ अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करवाने के लिए बाध्य हैं। हालाँकि, संशोधित दिशानिर्देश में यह भी निर्धारित किया गया है कि यदि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षा में टर्मिनल सेमेस्टर/ अंतिम वर्ष का कोई छात्र उपस्थित नहीं हो पाता है, तो उसे उन विशेष परीक्षाओं में उपस्थित होने का अवसर दिया जा सकता है जो उस पाठ्यक्रम/ पेपर के लिए जब भी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित की जाएंगी। ताकि छात्रों को किसी भी तरह की असुविधा/ नुकसान न हो।
पिछली सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने राज्य के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा था कि वर्तमान स्थिति में महाराष्ट्र में कोई भी परीक्षा आयोजित नहीं की जाएगी,चाहे वह प्रोफेशनल कोर्स से संबंधित हो या नाॅन-प्रोफेशनल कोर्स से।
नतीजों को टालने के राज्य सरकार के फैसले का विरोध करते हुए यूजीसी ने कहा है कि-
"ऐसा निर्णय भी उच्च शिक्षा के मानकों के समन्वय और निर्धारण करने के वैधानिक क्षेत्र पर अतिक्रमण करेगा,जो विशेष रूप से संविधान के शेड्यूल या अनुसूची VII की लिस्ट I की प्रविष्टि 66 के तहत संसद के लिए आरक्षित है।
इसके अलावा, अंतिम वर्ष /टर्मिनल सेमेस्टर परीक्षाओं को स्थगित करने या परीक्षा आयोजित किए बिना ही छात्रों को स्नातक करने का राज्य सरकार का निर्णय भी सीधे देश में उच्च शिक्षा के मानकों को प्रभावित करने वाला है। यह तय कानून है कि ऐसे प्रावधान ,जो किसी अधिनियम को अधिभावी प्रभाव देते हैं या बहुत अधिक प्रभावित करते हैं, उनको एक प्रतिबंधित अर्थ दिया जाना चाहिए ताकि उसे इस तरह के अधिनियम की विधायी नीति, मंशा, उद्देश्य, योजना और लक्ष्य तक ही सीमित रखा जा सके। इस तरह के प्रावधानों को किसी अन्य विशेष अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों जैसे कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 को निरर्थक बनाने के लिए लागू नहीं किया जा सकता है।''