मृत अस्थाई मज़दूरों की पत्नी को भी नियमित कर्मचारी की तरह पेंशन का हक़ : दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2020-01-07 18:35 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि मृत अस्थाई मज़दूरों की पत्नी को भी रिटायर होने के बाद उसी तरह तरह पेंशन पाने का हक़ है जैसे स्थाई कर्मचारियों की पत्नियों को है।

इस अदालत और अन्य हाइकोर्टों के पूर्व के कई फ़ैसलों पर भरोसा करते हुए न्यायमूर्ति मुरलीधर और तलवंत सिंह की खंडपीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में भी राहत दिलाई जाएगी क्योंकि इन अस्थाई कर्मचारियों को रिक्तियों के बावजूद नियमित नहीं किया गया।

वर्तमान मामले में भारत संघ ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के फ़ैसले के ख़िलाफ़ याचिका दायर की है। अधिकरण ने मृत अस्थाई मज़दूरों की पत्नियों को राहत देने का निर्देश दिया था।

अधिकरण का निर्देश था,

"पारिवारिक पेंशन व अन्य सभी लाभ सहित उनके सभी बक़ाये का भुगतान उस दिन तक 8% ब्याज की दर से किया जाए जिस दिन आवेदक को अंतिम भुगतान किया जाता है। यह भुगतान इस आदेश की प्रति प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर की जाए।"

अधिकरण ने यह भी कहा 'यह अविश्वसनीय है कि एक अस्थाई कर्मचारी को 18-1/2 वर्षों की सेवा के बाद भी स्थाई नहीं किया जाए।'

इसलिए, दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष प्रश्न इस बात के निर्णय का था कि क्या अस्थाई कर्मचारियों को स्थाई कर्मचारियों की तरह ही रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले सभी लाभ देने की बात उचित है कि नहीं।

इस प्रश्न का सकारात्मक उत्तर देते हुए अदालत ने कंटेश बनाम भारत संघ मामले में आए फ़ैसले का हवाला दिया और कहा कि अनुकंपा आधारित रोज़गार की अपील को इस आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि मृतक नियमित कर्मचारी नहीं था।

अदालत ने इसलिए अधिकरण के इस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।हालाँकि, उसने उक्त आदेश को संशोधित कर यह कहा कि अधिकरण में मामला दायर करने से पहले सिर्फ़ तीन साल का पिछला बक़ाया दिया जाएगा।

इसके अतिरिक्त अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि प्रत्येक प्रतिवादी को इस मुक़दमे के लागत के रूप में ₹10,000 दिया जाए।


आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें 




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