'विस्फोटक स्थिति': दिल्ली हाईकोर्ट महिला वकील फोरम ने जंतर-मंतर रैली में लगाए गए भड़काऊ नारे की निंदा की, कार्रवाई की मांग की

Update: 2021-08-10 09:58 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट महिला वकील फोरम ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को एक पत्र लिखा है, जिसमें 8 अगस्त 2021 को जंतर मंतर पर आयोजित रैली के दौरान सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा कथित रूप से भड़काऊ नारे लगाने की निंदा की गई है।

पत्र में बार काउंसिल जैसे संबंधित अधिकारियों से घटना पर ध्यान देने और भारत के संविधान में निहित कानून के शासन और अन्य प्रमुख सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए तुरंत उचित कार्रवाई शुरू करने का आग्रह किया गया था।

फोरम ने यह भी कहा कि इस तरह के कृत्य को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।

रिपोर्टों के अनुसार उक्त रैली के दौरान मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए नारे लगाए गए।

मीडिया के माध्यम से वायरल हुए घटना के एक वीडियो से संकेत मिलता है कि भीड़ द्वारा रैली के दौरान निम्नलिखित नारे लगाए जा रहे थे;

"जब मुले काटे जाएंगे, तब राम राम चिल्लाएंगे।" (मुसलमानों का कत्लेआम होगा तो राम राम चिल्लाएंगे)।

फोरम ने रंगराजन बनाम पी. जगजीवन राम एवं अन्य के निर्णय से एक मुहावरो को याद करते हुए अधिवक्ताओं द्वारा लगाए गए नारों और भाषणों को 'विस्फोटक स्थिति (स्पार्क इन ए पाउडर केग)' के समान कहा।

आगे यह भी स्पष्ट किया गया कि इस तरह के नारों में ऐसे भाषण द्वारा लक्षित समुदाय के खिलाफ प्रत्यक्ष या संरचनात्मक हिंसा का परिणाम होने की प्रवृत्ति हो सकती है।

पत्र में लिखा है कि,

"मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले ये नारे भारतीय संविधान के खिलाफ हैं और प्रथम दृष्टया अभद्र भाषा हैं। रैली में दिए गए भाषणों को असहमति या आलोचनात्मक रूप से बोलने की स्वतंत्रता के अधिकार के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए।"

वकीलों के फोरम ने स्पष्ट किया कि इस तरह के बयान सीधे और स्पष्ट रूप से एक धार्मिक समुदाय के खिलाफ हिंसा का आह्वान करने के लिए जिम्मेदार हैं और उसी के परिणामस्वरूप हिंसा का आरोप लगाया गया है। 1994 के रवांडा नरसंहार का एक समानांतर संदर्भ भी दिया गया, जिसे एक जातीय अल्पसंख्यक के खिलाफ इसी तरह के व्यवस्थित घृणास्पद भाषण से उकसाया गया था।

पत्र में लिखा है कि रैली में लगाए गए नारे न केवल संविधान के प्रावधानों, बल्कि भारतीय दंड संहिता के भी उल्लंघन करत हैं।

पत्र में लिखा है कि उनके इस रुख का समर्थन करने के लिए कि अभद्र भाषा को बिना सजा के नहीं छोड़ा जाना चाहिए। अमीश देवगन बनाम भारत संघ (2021) 1 एससीसी 1 में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर भरोसा किया गया, जहां यह माना गया था कि बहुलवाद के लिए प्रतिबद्ध राजनीति में नफरत फैलाने वाला भाषण लोकतंत्र में किसी भी वैध तरीके से योगदान नहीं कर सकता है और वास्तव में समानता के अधिकार का खंडन करता है।

पत्र में इसके अलावा लिखा है कि दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी किए गए COVID-19 दिशानिर्देशों की पूरी तरह से अवहेलना के साथ रैली का आयोजन किया गया।

पत्र में इस बात की भी वकालत की गई है कि राष्ट्रीय राजधानी के बीचों-बीच इस तरह के गंभीर आपराधिक आचरण में लिप्त लोगों को दण्ड से मुक्ति की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जिससे सभी कानून का पालन करने वाले नागरिकों से ऐसे घृणा फैलाने वालों' के खिलाफ आवाज उठाने का आग्रह किया जा सके।

फोरम ने घटना को चौंकाने वाला बताया है और इसकी कड़ी निंदा की है। इसके साथ ही तत्काल उचित कार्रवाई की मांग की गई है।

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