आईपीसी और पोक्सो एक्ट के तहत बलात्कार और गंभीर यौन उत्पीड़न का गठन करने के लिए दृश्य चोट के बिना भी मामूली पेनिट्रेशन पर्याप्त: सिक्किम हाईकोर्ट

Update: 2022-09-12 14:40 GMT

सिक्किम हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि बिना किसी दृश्य चोट के मामूली पेनिट्रेशन भी आईपीसी की धारा 376 एबी के साथ-साथ पोक्सो अधिनियम की धारा 5 के तहत बलात्कार और गंभीर यौन उत्पीड़न के अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त है।

जस्टिस भास्कर राज प्रधान और जस्टिस मीनाक्षी मदन राय की खंडपीठ ने कहा,

"आईपीसी के तहत बलात्कार और पोक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न का गठन करने के लिए किसी भी सीमा तक  पेनिट्रेशन पर्याप्त है। पीड़िता का बयान विशिष्ट, सुसंगत और स्पष्ट है कि अपीलकर्ता ने अपना लिंग उसकी योनि में डाला था।"

वर्तमान अपील पोक्सो अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी, जिसने अपीलकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376एबी और पोक्सो एक्ट की 5 (एम) के तहत दोषी ठहराया था।

अपीलकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट बीके गुप्ता ने पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कोई भी बाहरी चोट दर्ज नहीं की गई थी। उन्होंने कहा कि र‌िपोर्ट में केवल लेबिया मिनोरा पर निशान की बात कही गई है, जो पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के लिए चार्ज करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष के एक महत्वपूर्ण गवाह मुकर गए, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर हो गया।

अतिरिक्त लोक अभियोजक एसके छेत्री ने कहा कि आक्षेपित निर्णय में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और यह कि पीड़िता के अलावा, अभियोजन पक्ष ने उसकी मां और उसके पिता की भी जांच की है, जिनमें से सभी ने अपीलकर्ता की पहचान की।

विशेष न्यायाधीश ने अपने फैसले में माना ‌था कि पीड़िता 12 साल से कम उम्र की थी। उसने पीड़िता की गवाही को भी दृढ़ और स्पष्ट माना है। उसने घटना के बारे में और यह भी बताया कि कैसे अपीलकर्ता ने अपना लिंग उसकी योनि में डाला था, जो कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उसके बयान के अनुरूप है।

वर्तमान न्यायालय ने माना कि विशेष न्यायाधीश का निर्णय सही था क्योंकि अभियोजन पक्ष अपने मामले को एक उचित संदेह से परे साबितकरने में सक्षम था।

विशेष न्यायाधीश के निर्णय को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा,

"पीड़िता की गवाही न केवल सुसंगत है, बल्कि काफी विस्तृत है, जिसमें वह जिस कठिन स्थिति से गुजरी है उसका वर्णन करती है। अभियोजन पक्ष के अन्य गवाहों ने "पीड़ित" की गवाही की पर्याप्त पुष्टि की है, जैसा कि विद्वान विशेष न्यायाधीश ने सही ढंग से सराहना की है।"

केस टाइटल: सुभाष चंद्र छेत्री बनाम सिक्किम राज्य

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