कई देशों ने सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र कम की, हमें भी विचार करना चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2023-07-14 06:03 GMT

Age Of Consent For Sex- बॉम्बे हाईकोर्ट ने सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र को लेकर अहम बात कही है। हाईकोर्ट ने कहा कि कई देशों ने किशोरों के लिए सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र कम कर दी है और अब समय आ गया है कि हमारा देश और संसद भी दुनिया भर में हो रही घटनाओं पर ध्यान दे और इस पर विचार करे।

कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम यानी पॉक्सो से जुड़े आपराधिक मामलों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई। जहां पीड़ितों के किशोर होने और सहमति से संबंध बनाने की जानकारी देने के बावजूद आरोपियों को दंडित किया जाता है।

कोर्ट ने कहा- ऐसा नहीं है कि किशोर बुरा निर्णय ही लेगें। उनकी इच्छाओं की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। सहमति की उम्र को आवश्यक रूप से शादी की उम्र से अलग किया जाना चाहिए क्योंकि यौन कृत्य केवल शादी के दायरे में नहीं होते हैं। इस महत्वपूर्ण पहलू पर न केवल समाज, बल्कि न्यायिक प्रणाली को भी ध्यान देना चाहिए।

जस्टिस भारती डांगरे ने कहा कि रोमांटिक रिश्तों के अपराधीकरण ने न्याय प्रणाली पर बोझ डाला है, जिसमें महत्वपूर्ण समय और संसाधन खर्च होते हैं, जबकि अंत में पीड़ित हॉस्टाइल हो जाता है। निर्णय लेने की क्षमता की रक्षा करना और व्यक्ति की स्वायत्तता की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है, किशोरों को इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने 2016 में एक नाबालिग लड़की से रेप से जुड़े पॉक्सो केस में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी करते हुए ये टिप्पणियां कीं। लड़का और लड़की ने दावा किया था कि वे सहमति से रिश्ते में थे। इसके देखते हुए जस्टिस भारती डांगरे ने स्पेशल कोर्ट के दोषसिद्धि के आदेश को रद्द कर दिया और आरोपी को जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया।

ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि यौन संबंध सहमति से बने थे, लेकिन लड़की की उम्र 17 साल और 5-6 महीने थी। इसलिए उसके साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार माना जाएगा, क्योंकि नाबालिग की सहमति मायने नहीं रखती।

जस्टिस भारती डांगरे ने कहा- भारत में 1940 से 2012 तक सहमति से संबंध बनाने की उम्र 16 साल थी। पॉक्सो एक्ट के आने के बाद सहमति की उम्र बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई, जो शायद विश्व स्तर पर सबसे अधिक उम्र में से एक है। जर्मनी, इटली, पुर्तगाल और हंगरी जैसे देशों में 14 साल की उम्र के बच्चों को सेक्स के लिए सहमति देने के लिए सक्षम माना जाता है। लंदन और वेल्स में सहमति की उम्र 16 साल है और जापान में यह 13 साल है।

अदालत ने समाज और न्यायिक प्रणाली दोनों में, सहमति की उम्र और शादी की उम्र के बीच अंतर को पहचानने के महत्व पर जोर दिया।

अदालत ने कहा कि मौजूदा कानून के तहत, 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से यौन गतिविधियों में शामिल नहीं होने की उम्मीद की जाती है। और यदि वह ऐसा करती भी है, तो गतिविधि में सक्रिय भागीदार होने के नाते, उसकी सहमति सारहीन है और कानून की नजर में सहमति नहीं है। 20 साल का कोई लड़का 17 साल और 364 दिन की लड़की के साथ यौन संबंध बनाता है, तो उसे उसके साथ रेप करने का दोषी पाया जाएगा, भले ही लड़की ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया हो कि वह भी यौन संबंध में समान रूप से शामिल थी।

अदालत ने कहा कि मौजूदा प्रावधान सामाजिक वास्तविकताओं पर ध्यान नहीं दे रही है। ये माना जाता है कि नाबालिग के साथ हर यौन संबंध, चाहे उनकी समान भागीदार हो, बलात्कार है। यहां आरोपियों को तब भी दंडित किया जाता है, जब पीड़ित खुद कहते हैं कि वे सहमति से रिश्ते में थे।

अदालत ने कहा कि POCSO अधिनियम बच्चों को यौन शोषण से बचाने के ले है। इसका उद्देश्य किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध बनाना नहीं है।

अदालत ने आगे कहा कि डिजिटल युग में किशोरों के पास इंटरनेट, मोबाइल, ओटीटी प्लेटफॉर्म, फिल्में तक आसान पहुंच है, जो उनके दिमाग पर गहरा प्रभाव डालती है, साथ ही सेक्स के बारे में जिज्ञासा भी पैदा करती है।

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