राजद्रोह मामला : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार के कामकाज से असंतोष जताने के कारण निलंबित न्यायिक अधिकारी की जमानत मंजूर की

Update: 2021-06-18 08:05 GMT

आंध प्रदेश हाईकोर्ट ने उस निलंबित न्यायिक अधिकारी की जमानत याचिका मंगलवार को मंजूर कर ली जिन्होंने सरकार चलाने के तरीके पर असंतोष व्यक्त किया था, जिसके बाद उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-ए, 153 और 153-ए कमे तहत मुकदमा दर्ज कराया गया था।

न्यायमूर्ति आर रघुनंदन राव की बेंच ने यह कहते हुए जमान याचिका स्वीकार की कि याचिकाकर्ता एक निलंबित न्यायिक अधिकारी हैं और उनके फरार होने की आशंका बिल्कुल नहीं है।

कोर्ट के समक्ष मामला

याचिकाकर्ता (अब निलंबित न्यायिक अधिकारी) के खिलाफ शिकायत थी कि एक टेलीविजन डिबेट के क्रम में उन्होंने सरकार और मुख्यमंत्री के खिलाफ भी असंयमित बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उसकी इच्छा मुख्यमंत्री का सिर कलम कर देने की है।

इन बयानों के आधार पर यह कहते हुए शिकायत दर्ज करायी गयी थी कि उनके इस प्रकार के बयान के कारण समाज के विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता बढ़ेगी और इस तरह का बयान सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए की गयी अपील के के दायरे में आयेगा जो आईपीसी की धारा 124-ए के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।

इन आरोपों के आधार पर एक मुकदमा दर्ज किया गया था और उनकी गिरफ्तारी हुई थी। न्यायिक अधिकारी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था और तब से वह हिरासत में हैं। ट्रायल जज ने मई 2021 में जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

कोर्ट के समक्ष दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील दी कि याचिकाकर्ता का उद्देश्य सरकार को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकना नहीं था, बल्कि जिस तरह से सरकार चलायी जा रही थी उससे असंतोष वह जता रहे थे।

उन्होंने दलील दी कि 'केदारनाथ सिंह (एआईआर 1962 एससी 955)' मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला राजद्रोह के आरोप का सम्पूर्ण उत्तर है।

सरकारी वकील ने इस आधार पर जमानत याचिका का विरोध किया कि याचिकाकर्ता न्यायिक अधिकारी हैं, जिन्हें सेवा से निलंबित किया जा चुका है और वह इस तरह के बयान के परिणामों और प्रभावों के बारे में पूरी तरह अवगत हैं।

उन्होंने आगे दलील दी कि व्याख्या से इतर उनका बयान वैध तरीके से चुनी गयी सरकार को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने के दायरे में आयेगा और आईपीसी की धारा 124-ए के प्रावधान मौजूदा मामले में स्पष्ट रूप से लागू होंगे।

यह भी दलील दी गयी कि आंध्र प्रदेश सिविल सर्विसेज रूल्स के नियम 15 में स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है कि सरकारी सेवा में संलग्न ऑफिसर सरकार की अनुमति के बिना न तो सरकार के कामकाज से संबंधित पहलुओं के बारे में न ही अपने वरिष्ठ अधिकारियों के बारे में टिप्पणी ही कर सकता।

कोर्ट का आदेश

कोर्ट ने जमानत मंजूर करते हुए कहा कि यह अपराध बयान पर आधारित है, जो कि टेलीविजन डिबेट के दौरान दिया गया था। यह बयान रिकॉर्डेड है और उसके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हो किया जा सकता, साथ ही 60 दिन की अवधि भी पहले ही समाप्त हो चुकी है और इस प्रकार जांच को प्रभावित करने का अब सवाल हीं नहीं उठता।

केस शीर्षक : एस रमा कृष्ण बनाम आंध प्रदेश सरकार

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