केंद्र सरकार का 59 एप्स को ब्लॉक करने का फैसला, श्रेया सिंघल जजमेंट और धारा 69 ए आईटी एक्ट

Update: 2020-07-07 03:24 GMT

अशोक किनी

इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने हाल ही में 59 मोबाइल ऐप्स, जिनमें ज्यादातर चीनी एप्स हैं, जैसे टिक टोक, कैम स्कैनर, जेंडर आदि शामिल हैं, को ब्लॉक करने का फैसले किया है। फैसले को सार्वजनिक करते हुए मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 ए के तहत अपनी शक्तियों का उल्लेख किया है, साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा सूचना के अभिगम को अवरुद्ध करने के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 के प्रासंगिक प्रावधानों का उल्‍लेख किया है। इन ऐप्स को भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की रक्षा, राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा मानते हुए ब्लॉक किया गया है।

मंत्रालय ने यह फैसला उन उपलब्ध जानकारियों के मद्देनजर लिया, जिनमें बताया गया था कि ये एप्स ऐसी गतिविधियों में लगे हुए हैं, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की रक्षा, राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए दुराग्रहपूर्ण हैं। मंत्रालय ने भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र, गृह मंत्रालय द्वारा 'इन दुर्भावनापूर्ण ऐप्स को ब्लॉक करने' के लिए की गई सिफारिश को भी ध्यान में रखा है।

मंत्रालय ने अपने बयान में आगे कहा है कि कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (CERT-IN) ने सार्वजनिक व्यवस्था के मुद्दों पर डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता के प्रभाव के बारे में नागरिकों से कई अभिवेदन प्राप्त किए हैं। मंत्रालय ने यह बताते हुए कि 'भारत की संप्रभुता के साथ-साथ हमारे नागरिकों की गोपनीयता को नुकसान पहुंचाने वाले एप्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए जनता के बीच भारी मांग है' अपने फैसले को सही ठहराया है।'

यह नोट करना उचित है कि सरकार ने केवल पीआईबी के माध्यम से कहा है कि उसने इन एप्स को ब्लॉक करने का फैसला किया है। इस संबंध में कोई भी आदेश, यदि कोई हो, तो अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। हालांकि, टिक टॉक प्रबंधन ने पुष्टि की है कि भारत सरकार ने 59 ऐप्स को ब्लॉक करने के लिए "अंतरिम आदेश" जारी किया है। उन्होंने कहा कि वे इसका अनुपालन करने की प्रक्रिया में हैं और उन्हें जवाब और स्पष्टीकरण देने के अवसर के लिए संबंधित सरकारी हितधारकों के साथ बैठक करने के लिए आमंत्रित किया गया है।

इस बीच, केंद्रीय दूरसंचार विभाग (DoT) ने कथित तौर पर सभी दूरसंचार और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को एक निर्देश जारी किया है कि वे सरकार द्वारा प्रतिबंधित सभी 59 मोबाइल ऐप्स तक तुरंत ब्लॉक करें। सेवा प्रदाताओं को आदेशों का पालन तुरंत करने और DoT को अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है। यह जानकारी विभिन्न रिपोर्टों में दूरसंचार विभाग के सूत्रों के हवाले से दी गई है।

यह आलेख सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों की जांच करने का इरादा रखता है, जिसे सरकार ने 59 मोबाइल एप्स को ब्‍लॉक करने के ल‌िए प्रयोग किया है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 ए

धारा 69 ए, 27 अक्टूबर 2009 को संशोधन अधिनियम, 2009 के जर‌िए लागू किया गया ‌था, जिसका उद्देश्य किसी भी कंप्यूटर संसाधन के जर‌िए किसी जानकारी को जनता को प्राप्त करने से रोकने के लिए निर्देश जारी करने से शक्ति से संबंधित है।

प्रावधान 69A (1) इस प्रकार है, "इस संबंध में केंद्र सरकार या उसका कोई अधिकारी, जिसे विशेष रूप से इसके लिए अधिकृत किया गया है संतुष्ट होता है कि भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की सुरक्षा, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों से मित्रवत संबंधों के ल‌िए या सार्वजनिक व्यवस्‍था हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है या उपरोक्त से संबंधित किसी भी संज्ञेय अपराध के कृत्य के उकसावे को रोकने के लिए ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है, उप-धारा (2) के प्रावधानों के अधीन, लिखित रूप में दर्ज कारणों के साथ, किसी भी सरकारी या मध्यस्‍थ एजेंसी को किसी भी कंप्यूटर संसाधन से उत्पन्न, प्रसारित, प्राप्त, संग्रहीत या होस्ट की गई किसी भी जानकारी को जनता द्वारा प्राप्त करने से अवरुद्ध करने.. के लिए निर्देशि‌त कर सकता है।"

उपर्युक्त उप खंड के तहत जारी किए गए दिशा-निर्देशों का पालन करने में विफल रहने पर मध्यस्थ को कारावास की सजा दी जाएगी, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना के लिए भी उत्तरदायी होगी। सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा सूचना के अभिगम को अवरुद्ध करने के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 इस संबंध में प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने श्रेया सिंघल जजमेंट में धारा 69 ए और नियमों की वैधता पर लगाई ‌थी मुहर

जाहिर है, धारा 69 ए को दी गई चुनौती पर श्रेया सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम ने भी विचार किया था। जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस आरएफ नरीमन ने अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने और अनुच्छेद 19 (2) के तहत नहीं बचाए जाने योग्य न होने के कारण सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए को खत्म कर दिया था।

धारा 69 ए के खिलाफ चुनौती के मुख्य आधार थे (1) नियमों के तहत पूर्व-निर्णायक सुनवाई की व्यवस्‍था प्रदान नहीं की गई, विशेष रूप से सूचना के "उत्पन्नकर्ता" के लिए, जिसे अधिनियम के धारा 2 (जेडए) के तहत परिभाषित किया जाता है, जिसका अर्थ है एक व्यक्ति जो किसी भी इलेक्ट्रॉनिक संदेश को उत्पन्न, संग्रहीत या प्रसारित या संप्रेषित करता है; या किसी भी अन्य व्यक्ति से किसी भी इलेक्ट्रॉनिक संदेश को संप्रेषित, उत्पन्न, संग्रहीत या प्रेषित करवयाय जाता है। (2) दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 95 और 96 के तहत प्रदान किए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय यहां उपलब्ध नहीं हैं। (3) गोपनीयता प्रावधान मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है।

इन विवादों का निस्तारण करते हुए, कोर्ट ने पाया कि धारा 66 ए के विपरीत धारा 69 ए कई सुरक्षा उपायों के साथ संकीर्ण रूप से तैयार किया गया प्रावधान है।

कोर्ट ने कहा, " सबसे पहली और सार्वधिक महत्वपूर्ण बात यह है क‌ि, ब्लॉकिंग का प्रयोग वहीं किया जा सकता है, जहां केंद्र सरकार संतुष्ट है कि ऐसा करना आवश्यक है। दूसरे, ऐसी आवश्यकता अनुच्छेद 19 (2) में निर्धारित कुछ विषयों से संबंधित है। तीसरे, इस प्रकार‌ के ब्लॉकिंग आदेश में कारणों को लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए ताकि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका में उनकी जांच की जा सके।"

नियमों का उल्लेख करते हुए, कोर्ट ने आगे कहा,  "नियम समिति के गठन से पहले सुनवाई की व्यवस्‍‌था प्रदान करते हैं - तब समिति इस बात पर गौर करती है कि ऐसी जानकारी को ब्लॉक करना आवश्यक है या नहीं। जब समिति यह पाती है कि ऐसी आवश्यकता है तब ब्लॉकिंग का आदेश दिया जाता है। नियम 8 की जांच से यह भी स्पष्ट है कि यह केवल मध्यस्थ नहीं है जिसे सुना जा सकता है। यदि "व्यक्ति" यानी उत्‍पन्‍नकर्ता की पहचान की जाती है तो उसे भी ब्लॉकिंग आदेश पारित होने से पहले सुना जाना चाहिए। इन सबसे ऊपर, इन प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के पूरा होने के बाद ही ब्लॉकिंग आदेश दिए जाते हैं और यदि किसी न्यायालय के आदेश की प्रमाणित प्रति है, तभी इस तरह के ब्लॉकिंग आदेश दिए जा सकते हैं। यह केवल एक मध्यस्थ है, जिसे जारी किए गए निर्देशों का पालन करने में विफल रहने की स्थिति में धारा 69 ए के उप-धारा (3) के तहत दंड दिया जाता है।"

न्यायालय ने यह भी कहा कि केवल इसलिए कि धारा 95 और 96 सीआरपीसी में पाए जाने वाले कुछ अतिरिक्त सुरक्षा उपाय उपलब्ध नहीं हैं, यह नियमों को संवैधानिक रूप से कमजोर नहीं बनाता है। इस प्रकार धारा 69A की वैधता और उसके तहत बनाए गए नियमों को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा।

अंतरिम ब्लॉकिंग आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 69 ए और नियमों की वैधता को बरकरार रखा था और इस तथ्य पर ध्यान दिया कि इस प्रकार के पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं जिन्हें ब्लॉक करने के आदेश से पहले पूरा किया जाना है। वर्तमान मामले में, सरकार ने सुनवाई का अवसर दिए बिना, पहले ही एप्स को ब्लॉक करने का 'अंतरिम आदेश' जारी किया है। लेकिन, क्या सरकार को ऐसा करने का अधिकार है, जब सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह आदेश दे चुका है कि सुनवाई के अवसर सहित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को पूरा करने के बाद ही ब्लॉकिंग के आदेशों को द‌िया जाए?

यह हमें सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा सूचना के अभिगम को अवरुद्ध करने के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 के नियम 9 तक ले जाता है, जो आपातकाल के मामलों में सूचना को अवरुद्ध करने से संबंधित है।

"नियम 7 और 8 के होते हुए भी, नामित अधिकारी, आपातकालीन प्रकृति के किसी भी मामले में, जिसके लिए कोई देरी स्वीकार्य नहीं है, अनुरोध और प्र‌िंटेड सैंपल इन्फॉर्मेशन की जांच करेगा और विचार करेगा कि क्या अनुरोध अधिनियम की धारा 69 ए उप-धारा (1) के दायरे में आता है, और इस तरह की जानकारी या उसके भाग को ब्लॉक करना आवश्यक या समीचीन और न्यायोचित है और सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ‌लिख‌ित विशिष्ट अनुशंसाओं के साथ अपना अनुरोध प्रस्तुत करना है।

आपातकालीन प्रकृति के एक मामले में, सच‌िव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, यदि संतुष्ट हैं कि किसी भी सूचना या उसका हिस्सा किसी भी कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से सार्वजनिक प्राप्‍ति के लिए ब्लॉक करना आवश्यक या समीचीन और न्यायोचित है, तो वह लिखित रूप में कारणों को दर्ज करने के बाद, अंतरिम उपाय के रूप में इस प्रकार के निर्देशों को जारी करता है....

पदनामित अधिकारी, जल्द से जल्द लेकिन उप-नियम (2) के तहत निर्देश जारी करने के 48 घंटों के बाद नहीं, नियम 7 में उल्लिख‌ित समिति के विचार और अनुशंसाओं के लिए अनुरोध को लाएगा।

सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग समिति की अनुशंसाएं प्राप्त होने पर, अनुरोध के अनुमोदन के रूप में अंतिम आदेश पारित करेंगे और यदि अंतिम आदेश में सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा ब्लॉकिंग के अनुरोध का अनुमोदन नहीं किया गया है, तो उप-नियम (2) के तहत जारी अंतरिम आदेश रद्द कर दिया जाएगा और जानकारी के नियंत्रणकर्ता व्यक्ति या मध्यस्थ को तदनुसार जानकारी को अनब्लॉक करने के लिए निर्देशित किया जाएगा।" 

इसलिए नियम नामित अधिकारी को ब्लॉकिंग के अनुरोध का विचार और अनुशंसाओं के लिए लाने का आदेश देता है। यह जल्द से जल्द किया जाना चाहिए, लेकिन अंतरिम निर्देश जारी करने के 48 घंटों के बाद नहीं। समिति में नामित अधिकारी अध्यक्ष के रूप में और प्रतिनिधि होते हैं, जो कि कानून और न्याय, गृह मामलों, सूचना और प्रसारण मंत्रालय और इंडियन कंप्यूटर इमर्जेंसी रिस्पांस टीम के मंत्रालयों में संयुक्त सचिव के पद से नीचे के न हों।

ब्लॉक्ड एप्स के लिए आगे का रास्ता

नियम 7 उस प्रक्रिया से संबंधित है, जिनका समिति ब्लॉकिंग अनुरोधों पर विचार करते हुए पालन करती है। हालांकि यह आपात श‌क्‍तियों के आह्वान के स्‍थति में समिति द्वारा 'विचार' के लिए कोई समय सीमा प्रदान नहीं करता। इसलिए एक बार जब एप्‍स आपातकालीन शक्तियों का प्रयोग कर अवरुद्ध कर दिया जाता है, तो उसे समिति द्वारा विचार और अनुशंसाओं के लिए इंतजार करना पड़ सकता है।

प्रक्रिया निम्नलिखित है

(1) नियम 6 के तहत अनुरोध प्राप्त होने पर, नामित अधिकारी उस व्यक्ति या मध्यस्थ की पहचान करने के सभी उचित प्रयास करेगा, जिसने सूचना या उसके हिस्से को होस्ट किया है, साथ ही उस कंप्यूटर संसाधन की भी पहचान की जाएगी, जिस पर जानकारी या उसके हिस्से को होस्ट ‌किया जा रहा है। ऐसे व्यक्ति या मध्यस्थ और कंप्यूटर संसाधन की पहचान होने के बाद, जिसे सार्वजनिक उपयोग के लिए अवरुद्ध करने का अनुरोध किया गया है, नामित अधिकारी इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के साथ हस्ताक्षरित पत्र या फैक्स या ई मेल के माध्यम से व्यक्ति या मध्यस्‍थ को नोटिस जारी करेगा कि वह अपना जवाब और स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के लिए यदि कोई हो, तो नियम 7 के तहत निर्दिष्ट समित‌ि के समक्ष, तय तिथि और समय पर, पेश हो.... तय समय व्यक्ति या मध्यस्‍थ को नोटिस प्राप्त होने के बाद से अड़तालीस घंटे से कम नहीं होगा।

(2) ऐसे व्यक्ति या मध्यस्थ के उपस्थित न होने की स्थिति में, जिसे उप-नियम (1) के तहत नोटिस दी गई हो, ..समिति उपलब्ध सूचना के आधार पर नोडल अधिकारी से प्राप्त अनुरोध के संबंध में लिखित विशिष्ट अनुशंसाएं देगी।

(3) ऐसे व्यक्ति या मध्यस्थ, जिन्हें उप-नियम (1) के तहत नोटिस दिया गया है, विदेशी संस्था या निकाय है, जिसे नामित अधिकारी द्वारा पहचाना जाता है, ऐसे विदेशी इकाई या बॉडी कॉर्पोरेट को पत्र या फैक्स, ई मेल इलेक्ट्रानिक सिग्नेचर के साथ नोटिस भेजा जाएगा या

और विदेशी संस्था या बॉडी कॉर्पोरेट निर्द‌िष्ट समय के भीतर नोटिस का जवाब देंगे, जिसमें विफल रहने पर समिति को उपलब्ध सूचना के आधार पर नोडल अधिकारी से प्राप्त अनुरोध के सबंध में लिखित विशिष्ट अनुशंसाएं करेगी।

(4) नियम 7 में उल्लिखित समिति अनुरोध और प्र‌िंटेड सैंपल इंफॉर्मेशन की जांच करेगी और विचार करेगी कि क्या अनुरोध अधिनियम की धारा 69 ए की उप-धारा (1) के दायरे में आता है और ऐसी सूचना या उसके भाग को ब्लॉक करना न्यायसंगत है या नोडल अधिकारी से प्राप्त अनुरोध के सबंध में लिखित विशिष्ट अनुशंसाएं करेगी।

(5) नामित अधिकारी, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के तहत सूचना प्रौद्योगिकी विभाग में सचिव को नोडल अधिकारी द्वारा भेजे गए विवरण के साथ सूचना को अवरुद्ध करने के अनुरोध के संबंध में समिति की अनुशंसाएं प्रस्तुत करेगा।

(6) नामित अधिकारी, सचिव सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा अनुरोध के अनुमोदन पर, सरकार की किसी भी एजेंसी या मध्यस्थ को कंप्यूटर संसाधन से उत्पन्न, प्रेषित, प्राप्त, संग्रहीत या होस्ट की गई जानकारी को अवरुद्ध करने के लिए निर्देशित करेगा...

संक्षेप में, एक अंतरिम आदेश के जर‌िए ब्लॉक किए गए एप्स को समिति के समक्ष अपनी बात कहने का अवसर दिया जाएगा। समिति इस बात पर विचार करेगी कि क्या उन्हें ब्लॉक करना न्यायोचित है और लिखित रूप से विशिष्ट अनुशंसाएं करेगा।

सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, समिति की अनुशंसाएं प्राप्त होने पर, ऐसे अनुरोध के अनुमोदन के संबंध में अंतिम आदेश पारित करेंगे। यदि स‌चिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने अपने अंतिम आदेश में ब्लॉकिंग के अनुरोध को मंजूरी नहीं दी है, तो 'अंतरिम ब्लॉकिंग निर्देश' रद्द कर दिया जाएगा।

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