सीआरपीसी की धारा 438(4)-आईपीसी की धारा 376(3) के तहत एफआईआर में अग्रिम जमानत याचिका दायर करने पर कोई रोक नहीं,यदि कथित घटना 2018 के संशोधन से पहले की होः दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 (3) के तहत दर्ज एक एफआईआर में सीआरपीसी की धारा 438 (4) के तहत अग्रिम जमानत दाखिल करने पर कोई रोक नहीं है, जब कथित घटना आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 लागू होने से पहले घटित हुई हो।
जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने अपनी नाबालिग बेटी के साथ 15 साल की उम्र में बलात्कार करने के आरोपी पिता को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की है। इस मामले में कथित घटना वर्ष 2017 में हुई थी और एफआईआर पिछले साल दर्ज की गई थी।
भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (3) में कहा गया है कि जो कोई भी 16 साल से कम उम्र की महिला से बलात्कार करता है, उसे कम से कम 20 साल के कठोर कारावास की सजा दी जाएगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना लगाया जा सकता है। सीआरपीसी की धारा 438 (4), जो अग्रिम जमानत से संबंधित है, में कहा गया है कि आईपीसी की धारा 376 की उप-धारा (3) या धारा 376एबी या धारा 376डीए या धारा 376डीबी के तहत अपराध करने के आरोप में किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी से जुड़े किसी भी मामले में प्रावधान में कुछ भी लागू नहीं होगा।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि सीआरपीसी की धारा 438 (4) के तहत लगाई गई रोक इस मामले में लागू नहीं होगी क्योंकि कथित घटना 2017 में हुई थी और एफआईआर 2022 में दर्ज की गई थी। यह भी प्रस्तुत किया गया कि एफआईआर प्रकृति में बदला लेने वाली है और केवल इसलिए दर्ज करवाई गई थी क्योंकि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी के बीच तनावपूर्ण वैवाहिक संबंध थे और दोनों पक्षों के बीच तलाक की कार्यवाही चल रही है।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि उनकी बेटी ने पहले भी पुलिस में शिकायत की थी जहां आईपीसी की धारा 376(3) के तहत अपराध के संबंध में कोई आरोप नहीं लगाया गया था।
दूसरी ओर, शिकायतकर्ता के वकील ने इस आधार पर याचिका का विरोध किया कि कथित घटना के दिन बेटी की उम्र 15 वर्ष थी। यह भी प्रस्तुत किया गया कि सीआरपीसी की धारा 438(4) पूर्वव्यापी है क्योंकि यह केवल मूल कानून है जो भावी होगा। यह भी कहा कि सभी प्रक्रियात्मक कानून प्रकृति में पूर्वव्यापी हैं।
याचिका को खारिज करते हुए, अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 376 (3) एक दंडात्मक प्रावधान है और प्रकृति में पूर्वव्यापी नहीं हो सकती है।
अदालत ने कहा कि,
‘‘आईपीसी की धारा 376 (3) को आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 के माध्यम से क़ानून की पुस्तकों में जोड़ा गया था। अपराध वर्ष 2017 में किया गया था और उस वर्ष आईपीसी की धारा 376 (3) क़ानून की पुस्तक में मौजूद नहीं थी। एक अभियुक्त को उस अपराध के लिए आरोपित नहीं किया जा सकता है जिसे बाद में एक संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था।’’
जस्टिस सिंह ने आगे कहा कि जब वर्ष 2017 में धारा 376(3) अपराध नहीं थी, जिस वर्ष कथित रूप से घटना घटित हुई थी तो सीआरपीसी की धारा 438(4) के तहत अग्रिम जमानत दाखिल करने पर कोई रोक नहीं हो सकती है।
जस्टिस सिंह ने हालांकि यह देखते हुए याचिका खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप ‘‘अत्यंत गंभीर प्रकृति’’ के हैं और याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता पर दबाव व अपना प्रभाव ड़ालने के तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि इस बात की भी उचित आशंका है कि आवेदक गवाहों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है और पीड़िता को धमका सकता है।
कोर्ट ने कहा,
‘‘वर्तमान मामले में, पीड़िता के पिता पर आरोप है कि जब वह 15 साल की थी तब उसने उसके साथ बलात्कार किया था। पीड़िता घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने का पर्याप्त साहस नहीं जुटा सकी और अब जाकर उसने ऐसा किया है।’’
केस टाइटल-वीपी बनाम दिल्ली राज्य व अन्य
साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (दिल्ली) 25