सीआरपीसी की धारा 125-''एक पिता की अपने बेटे को भरण-पोषण देने की बाध्यता उसके बालिग होने पर भी समाप्त नहीं होगी'': दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2021-06-16 11:45 GMT

दिल्ली हाई कोर्ट ने माना है कि सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता)की धारा 125 के तहत अपने बेटे को भरण-पोषण देने का एक पिता का दायित्व ,बेटे के बालिग होने पर भी समाप्त नहीं होगा क्योंकि इससे उसकी शिक्षा सहित अन्य खर्चों का पूरा बोझ उसकी मां पर आ जाएगा।

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की एकल न्यायाधीश की पीठ ने निर्देश दिया है कि 15,000 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण के रूप में मां को दिए जाएं। यह राशि बेटे के बालिग होने की तारीख से लेकर स्नातक की पढ़ाई पूरी करने या कमाई शुरू करने तक (जो भी पहले हो) देनी होगी। कोर्ट ने कहा कि,

''यह नहीं कहा जा सकता है कि एक पिता का दायित्व उस समय समाप्त हो जाएगा जब उसका बेटा 18 वर्ष का हो जाएगा और उसकी शिक्षा व अन्य खर्चों का पूरा बोझ केवल मां को ही वहन करना पड़ेगा। चूंकि बेटा बालिग हो गया है,इसलिए पिता के किसी भी योगदान के बिना मां द्वारा अर्जित की गई राशि उसे खुद पर और अपने बच्चों पर खर्च करनी होगी।''

इसके अलावा, यह भी कहा किः

''अदालत जीवन यापन के बढ़ते खर्चों के प्रति अपनी आँखें बंद नहीं कर सकती है। यह उम्मीद करना उचित नहीं है कि प्रतिवादी द्वारा उनकी बेटी के लिए दिए गए भरण-पोषण की थोड़ी सी राशि के साथ मां अकेले अपना और अपने बेटे का पूरा बोझ वहन करेगी।''

न्यायालय अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट द्वारा 21 अप्रैल, 2018 को पारित आदेश के खिलाफ दायर एक रिवीजन याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें पत्नी को भरण-पोषण देने से मना कर दिया गया था और केवल दो बच्चों यानी बेटी और बेटे को 7,000-7000 रुपये प्रत्येक माह भरण-पोषण के रूप में देने का आदेश दिया गया था, जिसे बाद में बढ़ाकर 13,000-13000 रुपये प्रति माह कर दिया गया था। हालांकि, पति ने दूसरी शादी कर ली थी और दूसरी शादी से उसे एक बच्चा भी हुआ है।

मामले में यह देखा गया था कि पति और पत्नी दोनों दिल्ली नगर निगम में अपर डिवीजनल क्लर्क और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के संयुक्त महाप्रबंधक (एचआर) के रूप में कार्यरत सरकारी कर्मचारी थे।

वर्ष 2016 में मां द्वारा दायर हलफनामे के अनुसार, यह कहा गया था कि उसकी मासिक आय 43,792 रुपये और मासिक खर्च 75,000 रुपये हैं। दूसरी ओर, पति द्वारा दायर हलफनामे से पता चलता है कि उसका सकल वेतन 96,089 रुपये प्रतिमाह है।

पत्नी की तरफ से 40000 रुपये अंतरिम भरण पोषण दिए जाने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया गया था। जिस पर विचार करते हुए फैमिली कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला था कि चूंकि पत्नी अपने लिए पर्याप्त कमाई कर रही है, इसलिए वह किसी भी तरह का भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। कोर्ट ने पति की आय को भी 4 हिस्सों में बांट दिया था, जिसमें से दो शेयर खुद पति को और एक-एक हिस्सा यानी 25-26 प्रतिशत दो बच्चों दे दिया था।

कोर्ट ने यह भी कहा था कि पक्षकारों का बेटा वयस्क होने तक भरण-पोषण का हकदार होगा और बेटी को तब तक भरण-पोषण का अधिकार होगा जब तक कि उसे रोजगार नहीं मिल जाता या उसकी शादी नहीं हो जाती, जो भी पहले हो।

फैमिली कोर्ट के उक्त आदेश का विश्लेषण करते हुए, हाईकोर्ट का विचार था कि सीआरपीसी की धारा 125 का उद्देश्य एक परित्यक्त पत्नी को शीघ्र उपाय द्वारा भोजन, वस्त्र और आश्रय प्रदान करके उसकी खानाबदोशी और निराश्रयता को रोकना है।

हाईकोर्ट ने कहा कि,''चूंकि अंतरिम भरण-पोषण देने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पत्नी और बच्चों को भूखा न रखा जाए, इसलिए अंतरिम भरण-पोषण तय करते समय न्यायालयों से यह उम्मीद नहीं की जाती है कि वे उन एक-एक मिनट और कष्टदायी विवरणों और तथ्यों पर ध्यान दें, जिन्हें पक्षकारों को साबित करना होता है।''

''शेष राशि की देखभाल पत्नी यानी याचिकाकर्ता नंबर 1 द्वारा की जानी है, जो खुद भी कमा रही है और बच्चे के लिए समान रूप से जिम्मेदार है। प्रतिवादी ने फिर से शादी की है और दूसरी शादी से एक बच्चा है। यह न्यायालय इस बात के प्रति अपनी आंखे बंद नहीं कर सकता है कि प्रतिवादी की दूसरी शादी से हुए बच्चे के प्रति भी समान जिम्मेदारी है। प्रतिवादी के दूसरे विवाह से बच्चे के जन्म के बाद राशि में और कमी करने को भी गलत नहीं कहा जा सकता है। इसलिए फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तर्कों में इस समय किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।''

हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट इस तथ्य की सराहना करने में विफल रहा है कि चूंकि पति द्वारा बेटे के लिए कोई योगदान नहीं किया जा रहा है, इसलिए पत्नी द्वारा अर्जित वेतन उसके लिए खुद को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि,

''यह न्यायालय इस तथ्य के प्रति अपनी आँखें बंद नहीं कर सकता है कि 18 वर्ष की आयु में याचिकाकर्ता नंबर 2 की शिक्षा अभी समाप्त नहीं हुई है और याचिकाकर्ता नंबर 2 खुद अपनी जिम्मेदारी उठाने में सक्षम नहीं है। याचिकाकर्ता नंबर 2 ने अपनी 18 वर्ष की आयु पूरी करने पर मुश्किल से 12 वीं कक्षा पास की होगी। इसलिए याचिकाकर्ता नंबर 1 को याचिकाकर्ता नंबर 2 की देखभाल करनी होगी और उसका पूरा खर्च वहन करना होगा।''

इसे देखते हुए, न्यायालय ने यह निर्देश दिया है किः

''याचिकाकर्ता नंबर 1 द्वारा अर्जित राशि तीन लोगों के परिवार, यानी मां और दो बच्चों के लिए पर्याप्त नहीं होगी। याचिकाकर्ता नंबर 2 पर खर्च होने वाली राशि याचिकाकर्ता नंबर 1 के पास उपलब्ध नहीं होगी। इसलिए यह न्यायालय याचिकाकर्ता नंबर 2 के वयस्क होने की तिथि से लेकर स्नातक की पढ़ाई पूरी करने या कमाई शुरू करने की तिथि (जो भी पहले हो) तक याचिकाकर्ता नंबर 1 को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 15,000 रुपये प्रति माह की राशि प्रदान करने के लिए इच्छुक है।''

केस का शीर्षकः उर्वशी अग्रवाल व अन्य बनाम इंदरपॉल अग्रवाल

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें




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