धारा 119 साक्ष्य अधिनियम | मद्रास हाईकोर्ट ने मूक-बधिर गवाहों की जांच के लिए सिद्धांत निर्धारित किए

Update: 2022-10-10 05:51 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने एक आपराधिक अपील में दिए फैसले में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के तहत ऐसे गवाहों, जो बोलने में असमर्थ हैं, के परीक्षण से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत निर्धारित किए हैं।

उल्लेखनीय है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के अनुसार, यदि कोई गवाह बोल नहीं सकता है, तो वह किसी भी तरीके से साक्ष्य दे सकता है जिससे वह समझने योग्य हो सके, जैसे लिखित या खुले न्यायालय में संकेतों द्वारा, ऐसे साक्ष्य को मौखिक साक्ष्य माना जाएगा।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के प्रावधान में आगे कहा गया है कि यदि गवाह मौखिक रूप से संवाद करने में असमर्थ है, तो न्यायालय बयान दर्ज करने में दुभाषिया या एक स्पेशल एजुकेटर की सहायता लेगा और इस तरह के बयान की वीडियो-ग्राफी की जाएगी।

प्रावधान के सार को ध्यान में रखते हुए जस्टिस सुंदर मोहन की पीठ ने इसे नियंत्रित करने के ल‌िए निम्नलिखित सिद्धांत निर्धारित किए:

a) यदि गवाह पढ़ने और लिखने में सक्षम है तो न्यायालय की कोशिश होनी चाहिए कि लिखित प्रश्न देकर और लिखित उत्तर मांगकर साक्ष्य को रिकॉर्ड किया जाए। अगर गवाह पढ़ने और लिखने में असमर्थ है तो अदालतों को सबूतों को संकेतों द्वारा दर्ज करना चाहिए।

b) यदि साक्ष्य संकेतों द्वारा दर्ज किया जाता है, तो (संशोधन से पहले) न्यायालयों का विचार यह था कि संकेतों को उसी रूप में दर्ज किया जाना चाहिए और संकेतों की कोई व्याख्या नहीं होनी चाहिए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने दर्शन सिंह के मामले में दिए फैसले में कहा है कि ऐसे गवाह, जो संकेतों से साक्ष्य देते हैं, उनके साक्ष्य दर्ज करते समय एक दुभाषिया आवश्यक है। विधायिका ने माननीय सुप्रीम कोर्ट की घोषणाओं के अनुरूप, न्यायालयों के लिए दुभाषिए की सहायता लेना और ऐसे साक्ष्य की वीडियोग्राफी को अनिवार्य बनाना उचित समझा।

c) भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के प्रावधान में 'मौखिक रूप से संवाद करने में असमर्थ' वाक्य का अर्थ लिखित रूप में संवाद करने में असमर्थता है और केवल संकेतों के माध्यम से संवाद कर सकता है। यह उन श्रेणियों के व्यक्तियों पर लागू होगा, जो बोलने में असमर्थ हैं और लिखित रूप में संवाद नहीं कर सकते हैं। प्रावधान के अनुसार, न्यायालय दुभाषिए की सहायता लेंगे और ऐसे बयान की रिकॉर्डिंग की वीडियोग्राफी की जाएगी।

बिंदु (सी) के संबंध में, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मारियादॉस बनाम राज्य, पुलिस निरीक्षक के माध्यम से, 2014 (2) MWN Cr. (321): 2014 SCC ऑनलाइन Mad 1862 में मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि ट्रायल कोर्ट को वीडियोग्राफर से एक शपथ पत्र लेना चाहिए कि वह कार्यवाही का खुलासा नहीं करेगा और कार्यवाही की कॉपी भी नहीं रखेगा।

उल्लेखनीय है कि उपरोक्त सिद्धांतों को निर्धारित करते समय, न्यायालय ने महत्वपूर्ण रूप से यह माना कि जहां एक गवाह मौखिक रूप से संवाद करने या लिखित रूप में अपना साक्ष्य देने में सक्षम नहीं है और केवल संकेतों के माध्यम से संवाद कर सकता है, तो अदालत के लिए यह अनिवार्य है कि वह दुभाषिया की सहायता लें और वीडियोग्राफी के माध्यम से ऐसे बयान की रिकॉर्डिंग का आदेश दें। संक्षेप में, न्यायालय ने माना कि धारा 119 का प्रावधान केवल ऐसे गवाहों पर लागू होता है जो संकेतों के माध्यम से साक्ष्य देते हैं।

मामला

वर्तमान मामले में, अपीलकर्ता को पीड़िता के सिर, निजी अंग और शरीर के अन्य हिस्सों को चोट‌िल करने का दोषी पाया गया था। पीड़िता की उम्र उस समय 5 वर्ष थी और वह बोलने और सुनने में असमर्थ थी। पी‌ड़िता पर ह‌थ‌ियारों से हमला किया गया था, उसे सुई चुभाई गई थी। साथ ही उस पर बिल्ली से भी हमला कराया गया था।

आईपीसी की धारा 307 और 502 (ii) के तहत दोषसिद्धि के फैसले खिलाफ हाईकोर्ट में दायर अपील में तर्क दिया गया कि पीड़िता बोलने और सुनने में असमर्थ है, अदालत के समक्ष उसके बयान में यह नहीं बताया गया कि उसके ट्रायल कोर्ट ने उसके सबूत को कैसे और किस तरीके से दर्ज किया था और इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया था।

आदेश

शुरुआत में, अदालत ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि पीड़िता बोलने और सुनने में असमर्थ थी और ट्रायल कोर्ट ने नोट किया कि चोटों को उसने इशारों से दिखाया था। इसे देखते हुए, कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि ट्रायल कोर्ट ने दुभाषिया या स्पेशल एजुकेटर की अनुपस्थिति में इशारों की व्याख्या कैसे की।

अदालत ने यह भी नोट किया कि जब जांच अधिकारी ने अपने साक्ष्य में कहा था कि उसने पीड़िता का बयान दर्ज करने के लिए एक दुभाषिए की मदद ली, तब भी अभियोजन पक्ष ने उस दुभाषिया की जांच नहीं की।

कोर्ट ने रिकॉर्ड पर ऐसी किसी सामग्री के अभाव में कि कैसे और किस तरीके से पीड़िता का साक्ष्य दर्ज किया गया था, माना कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 का उल्लंघन करने के कारण उसके बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

इसके अलावा, कोर्ट ने नोट किया कि अगर यह मान भी लिया जाए कि साक्ष्य को उचित तरीके से दर्ज किया गया था, फिर भी यह विश्वास को प्रेरित नहीं करता और इस प्रकार हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को बरी कर दिया।

केस टाइटल- रविचंद्रन बनाम राज्य [Crl.A.No.65 of 2020]

केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (मैड) 424

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें


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