एससी/एसटी एक्ट | अग्रिम जमानत आवेदन केवल स्पेशल कोर्ट के समक्ष दायर किया जा सकता है, हाईकोर्ट के समक्ष नहीं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत कथित अपराधों के मामलों में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन केवल स्पेशल कोर्ट या एक्ट के तहत गठित एक्सक्लूसिव स्पेशल कोर्ट के समक्ष दायर किया जा सकता है न कि हाईकोर्ट के समक्ष।
जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जमानत देने के लिए हाईकोर्ट का न तो धारा 438 सीआरपीसी के तहत समवर्ती क्षेत्राधिकार है और न ही धारा 482 सीआरपीसी के तहत मूल क्षेत्राधिकार है और केवल धारा 14 ए के तहत अपीलीय अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकते हैं।
मामला
कोर्ट के समक्ष चार जमानत याचिकाएं दायर की गई थी, जिनमें याचिकाकर्ताओं पर एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोप लगाए गए थे। याचिकाओं में कोर्ट से अग्रिम जमानत संबंधी कानून की विसंगतियों की जांच का आह्वान किया गया था।
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 18 अग्रिम जमानत के आवेदनों पर विचार करने के लिए एक रोक का निर्माण करती है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पृथ्वी राज चौहान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य ने माना था कि यदि शिकायत एससी/एसटी एक्ट के प्रावधानों की प्रयोज्यता के लिए प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनती है, तो धारा 18 और धारा 18 ए (1) द्वारा निर्मित रोक लागू नहीं होगी।
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के प्रावधान सीआरपीसी की धारा 438 के प्रावधानों की प्रयोज्यता पर पूर्ण निषेध प्रदान करते हैं, हालांकि, उन मामलों में कठिनाई पैदा होती है, जहां मामले प्रथम दृष्टया नहीं होते हैं।
जब पृथ्वी राज चौहान मामले में सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन को विशेष न्यायालयों के निर्माण और अधिनियम के प्रावधानों के तहत हाईकोर्ट को अपीलकर्ता क्षेत्राधिकार प्रदान करने के साथ जोड़ा जाता है, तो स्पष्टता की कमी होती है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने पृथ्वी राज चौहान के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों पर भरोसा किया और तर्क दिया कि याचिकाकर्ता का अग्रिम जमानत का दावा या तो धारा 438 या धारा 482 सीआरपीसी के तहत न्यायालय के समक्ष सुनवाई योग्य है।
मुख्य तर्क
-पृथ्वी राज चौहान के मामले में टिप्पणियों से संकेत मिलता है कि अधिनियम की धारा 18 और 18 ए के तहत रोक के बावजूद, अग्रिम जमानत के लिए एक आवेदन सत्र न्यायालय के साथ-साथ हाईकोर्ट में भी सुनवाई योग्य है।
-अग्रिम जमानत के लिए आवेदन केवल स्पेशल कोर्ट या एक्सक्लूसिव स्पेशल कोर्ट के समक्ष दायर किया जा सकता है, और यदि खारिज कर दिया जाता है तो केवल हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है।
-अग्रिम जमानत के आवेदन पर केवल सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्ति के प्रयोग में ही विचार किया जा सकता है, और इसलिए यह केवल हाईकोर्ट के समक्ष सुनवाई योग्य है।
कोर्ट ने पाया कि डॉ सुभाष काशीनाथ महाजन और पृथ्वी राज चौहान में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बाद, कानूनी स्थिति यह है कि एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध में अग्रिम जमानत केवल तभी दी जा सकती है जब अदालत संतुष्ट है कि प्रथम दृष्टया एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला नहीं बनता है।
अग्रिम जमानत देने की शक्ति प्रकृति में वैधानिक है और इसका पता धारा 438 सीआरपीसी से लगाया जा सकता है, जो प्रकृति में समवर्ती है, जो सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों के पास निहित है।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि चूंकि एससी/एसटी एक्ट में एक विशेष प्रक्रिया है और एससी/एसटी समुदाय के लोगों के खिलाफ किए गए अपराधों से निपटने के लिए विशेष अदालतें हैं, यह विशेष न्यायालयों की विशिष्टता की ओर इशारा करता है।
इसके अलावा, समान मामलों में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों पर भरोसा करते हुए, कोर्ट ने कहा कि कानून की व्यक्त शर्त स्पष्ट रूप से संकेत करती है कि एससी/एसटी एक्ट के तहत केवल विशेष न्यायालय या एक्सक्लूसिव कोर्ट के समक्ष जमानत आवेदन दायर किया जा सकता है।
.यह देखते हुए कि केवल स्पेशल कोर्ट के पास जमानत आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है, न कि सेशन कोर्ट के पास कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेशन कोर्ट को स्पेशल कोर्ट के रूप में अधिसूचित करना कानून की आवश्यकता कि केवल स्पेशल कोर्ट ही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत जमानत आवेदनों सहित मामलों पर विचार कर सकता है, का अवमूल्यन नहीं कर सकता है, क्योंकि केरल में सेशन कोर्ट को स्पेशल कोर्ट्स के रूप में अधिसूचित किया जाता है।
निष्कर्ष
-अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत कथित अपराधों के मामलों में, अग्रिम जमानत के लिए आवेदन केवल स्पेशल कोर्ट या एक्सक्लूसिव स्पेशल कोर्ट के समक्ष दायर किया जा सकता है, न कि हाईकोर्ट के समक्ष।
-हाईकोर्ट का न तो धारा 438 सीआरपीसी के तहत समवर्ती क्षेत्राधिकार है और न ही धारा 482 सीआरपीसी के तहत मूल क्षेत्राधिकार है। इसी तरह, सेशन कोर्ट को भी अग्रिम जमानत देने का अधिकार नहीं है।
-विशेष अदालत को अग्रिम जमानत के आवेदनों पर विचार करते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या एससी/एसटी एक्ट के तहत दंडनीय अपराध का प्रथम दृष्टया मामला बनता है। यदि उत्तर सकारात्मक है, तो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 18 और 18ए के तहत प्रतिबंध लागू होगा, और अग्रिम जमानत के अधिकार पर आगे कोई विचार नहीं किया जा सकता है। यदि अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं पाया जाता है, तो विशेष न्यायालय गुण-दोष के आधार पर अग्रिम जमानत अर्जी पर विचार करने का हकदार है।
-हालांकि, अग्रिम जमानत देने या अस्वीकार करने का आदेश अधिनियम की धारा 14ए के तहत हाईकोर्ट के अपीलीय क्षेत्राधिकार के अधीन होगा।
तथ्यों के आधार पर सभी जमानत आवेदन खारिज कर दिए गए और आवेदकों को स्पेशल कोर्ट और अपीलेंट कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दी गई।
केस टाइटल: केएम बशीर बनाम रजनी केटी.और अन्य और जुड़े मामले
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केर) 472