अनुसूचित जनजाति की महिलाएं हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत 'उत्तरजीविता के अधिकार' की हकदार नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उपयुक्त संशोधन लाने का आग्रह किया

Update: 2022-12-09 15:16 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जनजाति की एक महिला सदस्य हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत उत्तरजीविता के किसी भी अधिकार की हकदार नहीं है।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने केंद्र सरकार से इस पर विचार करने का आग्रह किया कि क्या इस संबंध में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में उपयुक्त संशोधन लाना आवश्यक है।

कोर्ट ने कहा,

"आदिवासी बेटी को 70 वर्षों बाद भी समान अधिकारों से वंचित करना, जबकि भारतीय संविधान के तहत समानता की गारंटी है, ऐसा बिंदु है, जिस पर भारत सरकार विचार करे, इसके लिए यह उचित समय है और यदि आवश्यक हो, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन किया जाए, जिसके जरिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं किया जा सकता है।"

धारा 2(2) हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम

धारा 2(2) इस प्रकार है: उप-धारा (1) में निहित कुछ भी होने के बावजूद, इस अधिनियम में निहित कुछ भी संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड (25) के अर्थ के दायरे में किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं होगा, जब तक कि केंद्र सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, अन्यथा निर्देश देती है।

बैकग्राउंड

इस मामले में, भूमि अधिग्रहण संदर्भ न्यायालय ने मुआवजे में एक महिला के हिस्से के दावे को खारिज कर दिया, मुख्य रूप से इस आधार पर कि पक्षकार अनुसूचित जनजाति समुदाय की हैं, जिन पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे और इसलिए एक बेटी मुआवजे की राशि में हिस्से की हकदार नहीं होगी। इस विचार को उड़ीसा हाईकोर्ट ने बरकरार रखा।

मधु किश्वर के फैसले पर

शीर्ष अदालत के समक्ष, अपीलकर्ता ने मधु किश्वर और अन्य बनाम बिहार राज्य व अन्य, (1996) 5 एससीसी 125 के मामले पर भरोसा किया, ‌और यह दलील दी कि कि एक बेटी होने के नाते वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करते हुए मुआवजे की राशि में हिस्से की हकदार होगी।

अदालत ने माना कि मधु किश्वर (सुप्रा) के मामले में, अदालत ने छोटा नागपुर किरायेदारी अधिनियम, 1908 के प्रावधानों को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जो वारिसों की पुरुष रेखा में संपत्ति का उत्तराधिकार प्रदान करता था और अनुच्छेद 14 की कसौटी पर, बेटी को उत्तराधिकार के अधिकार से इनकार करता था।

"हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) के मद्देनजर और चूंकि अपीलकर्ता को अनुसूचित जनजाति का होने और अनुसूचित जनजाति की महिला सदस्य होने के कारण विशेष रूप से बाहर रखा गया है, अपीलकर्ता हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधान के तहत उत्तरजीविता के किसी भी अधिकार की हकदार नहीं है।

हाईकोर्ट ने फैसले में कोई त्रुटि नहीं की है। इसलिए अपील खारिज करने योग्य है और तदनुसार खारिज की जाती है।"

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, जहां तक आदिवासी महिला सदस्य का संबंध है, उन्हें उत्तरजीविता के अधिकार से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं हो सकता है।

केस डिटेलः कमला नेती (डी) बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी | 2022 लाइवलॉ (SC) 1014 | सीए 6901 ऑफ 2022| 9 दिसंबर 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी



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