"चाचा और भतीजी का पवित्र रिश्ता बदनाम किया": पजांब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 12 वर्षीय भतीजी से बलात्कार के दोषी की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार को 2008 में अपनी ही 12 वर्षीय भतीजी के साथ बलात्कार के दोषी एक व्यक्ति को दी गई आजीवन कारावास की सजा को यह देखते हुए बरकरार रखा कि आरोपी पीड़िता का असली चाचा है।
अदालत ने कहा,
"अपील के तथ्य दुर्भाग्य से घिनौनी और अप्रिय घटना से संबंधित हैं, जहां अपीलकर्ता, जो पीड़िता का असली चाचा है, उसने अपनी भतीजी, 12 साल की छोटी बच्ची के साथ बलात्कार किया। परिणाम यह हुआ कि चाचा और भतीजी के पवित्र रिश्ते को कलंकित किया गया। ऐसे अपराधी सभ्य समाज के लिए एक खतरा हैं और कानून के अनुसार उनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए। यह एक ऐसा कार्य है, जो न केवल उसके सर्वोच्च सम्मान के लिए आघात है बल्कि उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है, यह पीड़ित को नीचा और अपमानित करता है और जहां पीड़ित एक असहाय बच्ची या नाबालिग है, यह एक दर्दनाक अनुभव छोड़ देता है। ऐसा अपराध न केवल एक नाबालिग मासूम बच्चे के खिलाफ अपराध है, बल्कि यह पूरे समाज के खिलाफ अपराध है।"
इसके साथ ही जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस एनएस शेखावत की खंडपीठ ने दोषसिद्धि के फैसले और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कुरुक्षेत्र द्वारा पारित सजा के आदेश के खिलाफ आरोपी (चमन लाल चिम्नू) की अपील खारिज कर दी।
तथ्य
19 अगस्त 2008 को जब शिकायतकर्ता (पीड़ित के पिता) और उसकी पत्नी (पीड़ित की मां) दवा लेने के लिए कुरुक्षेत्र गए थे, तब पीड़िता के चाचा चमन लाल उर्फ चिम्नू (अपीलार्थी/आरोपी) उनके घर में घुसे थे और उसके छोटे भाई-बहनों को बाहर निकालने के बाद वह 'पीड़ित' को जबरन उसे उसकी बाहों से पकड़ कर कमरे के अंदर ले गया था।
आरोपी ने उसके साथ बलात्कार किया और उसके बाद, वह चला गया और धमकी दी कि अगर उसने किसी को मामले की सूचना दी तो वह पीड़िता को जान से मार देगा। अगले दिन जब शिकायतकर्ता और उसकी पत्नी ने देखा कि उसकी बेटी खाट पर चुपचाप और डर के मारे पड़ी है तो उन्होंने धीरे से उससे पूछताछ की, जिस पर वह रोने लगी और घटना के बारे में बताया।
मामले की सूचना पुलिस को दी गई और पीड़िता का बयान दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद, पुलिस को अपीलकर्ता/आरोपी के खिलाफ पर्याप्त आपत्तिजनक सबूत मिले और सीआरपीसी की धारा 173 के तहत अंतिम रिपोर्ट पेश की।
मुकदमे के दौरान आरोपी ने अपने बचाव में सबूत पेश नहीं करने का विकल्प चुना। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कुरुक्षेत्र की अदालत द्वारा पारित किए गए फैसले और आदेश के तहत, अपीलकर्ता को धारा 376, 452 और 506 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया गया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ, आरोपी ने हाईकोर्ट का रुख किया।
निर्णय
कोर्ट को आरोपी की इस दलील में कोई दम नहीं लगा कि उसे किसी पैतृक संपत्ति विवाद में मामले में फंसाया गया है। अदालत ने यह भी पाया कि 'पीड़ित' ने अपनी गवाही में पूरी घटना सुनाई थी और उसकी गवाही ने आत्मविश्वास को प्रेरित किया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह समझ से परे है कि 12 साल की लड़की अपने ही सगे चाचा द्वारा यौन शोषण/बलात्कार की झूठी कहानी खुद गढ़ेगी और यह अकल्पनीय है कि माता-पिता अपनी नाबालिग बेटी को किसी से बदला लेने के लिए ऐसी कहानी गढ़ना सिखाएंगे।
अदालत ने कहा,
"वे ऐसा इस साधारण कारण से नहीं करेंगे कि यह उनके अपने बच्चे की भविष्य की संभावनाओं को बर्बाद करने के अलावा समाज में उनकी अपनी सामाजिक स्थिति को कम कर देगा। उनसे बच्चे के मनोविज्ञान पर दर्दनाक प्रभाव के प्रति जागरूक होने की भी उम्मीद की जाएगी और उसके बड़े होने पर विनाशकारी परिणाम होने की संभावना है। इसलिए, हम विद्वान बचाव पक्ष के वकील द्वारा दिए गए सुझावों को मानने से इनकार करते हैं कि अपीलकर्ता को पीड़िता के पिता के कहने पर झूठा फंसाया गया था।"
नतीजतन, मामूली विसंगतियों के आधार पर पीडब्लू -10 अशोक कुमार और पीडब्ल्यू -11 के 'पीड़ित' के साक्ष्य को खारिज करते हुए अदालत ने वकील द्वारा उठाए गए तर्कों में कोई ताकत नहीं पाया। इस प्रकार, वर्तमान अपील को किसी भी योग्यता से रहित होने के कारण खारिज कर दिया गया था।
केस टाइटल- चमन लाल चिम्नू बनाम हरियाणा राज्य [CRA-D-700-DB-2010]