धारा 311 सीआरपीसी| जिरह के दरमियान दिया गया बयान गवाह को वापस बुलाने का आधार नहीं हो सकताः बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि जिरह के दरमियान आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता को दिए गए सुझाव से शिकायतकर्ता के पक्ष में अधिकार नहीं बनता कि वह सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अपनी दोबारा जांच की मांग करे, खासकर तब जब उसे पहली बार उसी प्रावधान का उपयोग करके गवाही देने की अनुमति दी गई थी।
जस्टिस अमित बोरकर ने मजिस्ट्रेट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सीआरपीसी की धारा 311 के तहत शिकायतकर्ता के आवेदन को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत चेक बाउंस होने के मामले में दो चालान पेश करने की अनुमति दी गई थी।
अदालत ने कहा,"अन्याय को रोकने के लिए न्यायालय को विवेक का प्रयोग करना चाहिए, जब तक कि यह दिखाने के लिए ठोस कारण न हों कि मुकदमे की निष्पक्षता कैसे प्रभावित हो रही है।"
तथ्य
याचिकाकर्ता चेक बाउंस होने की कार्यवाही में मूल आरोपी था। ट्रायल के दरमियान शिकायतकर्ता ने खुद की जांच की और जिरह के दरमियान कहा था कि उसके पास शिकायतकर्ता और अभियुक्त के बीच लेनदेन को दिखाने के लिए दस्तावेजी साक्ष्य हैं। पूछताछ के बाद आरोपी का सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान दर्ज किया गया।
इसके बाद शिकायतकर्ता ने चालान पेश करने के लिए दूसरा आवेदन दायर किया, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया। इस आदेश के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।
अभियुक्त आदित्य आर अय्यर और न्यायेश भरूचा और अदवित हेलेकर की ओर से पेश एडवोकेट ने प्रस्तुत किया कि जिरह में दिया गया बयान गवाहों को वापस बुलाने का आधार नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि कार्यवाही फाइनल आर्ग्यूमेंट के लिए तय की गई थी और उस स्तर पर आवेदन की अनुमति देना कमियों को भरने के समान होगा।
शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि अभियुक्त ने शिकायतकर्ता को चालान पेश करने के लिए कहा था, आवेदन दायर किया गया था और इसलिए, मजिस्ट्रेट द्वारा आवेदन को स्वीकार करना न्यायोचित था।
शुरुआत में अदालत ने कहा कि तथ्यों की रोशनी में, "आरोपी द्वारा जिरह में सुझाव, जिसमें शिकायतकर्ता ने रिकॉर्ड पर चालान पेश करने की अपनी इच्छा दिखाई, शिकायतकर्ता के पक्ष में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 311 के तहत आवेदन दायर करने का कोई अधिकार नहीं बनाता है।"
अदालत ने कहा कि 15 नवंबर 2021 के एक आदेश के जरिए शिकायतकर्ता को एक अवसर पहले ही दिया जा चुका है, जिसमें मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 311 के तहत एक पूर्व आवेदन को अनुमति दी थी।
अदालत ने कहा कि चालान न केवल जमा किए जा सकते हैं, बल्कि शिकायतकर्ता की गवाही के साथ साबित करना होगा जो "पुनर्परीक्षण" के बराबर होगा। "इसलिए, मेरी राय में विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा आवेदन को स्वीकार करना उचित नहीं था।"
पीठ ने दोहराया,
"केवल इसलिए कि जिरह में कुछ सुझाव अभियुक्त की ओर से उठाए गए हैं, शिकायतकर्ता के पक्ष में इस प्रकार का आवेदन दायर करने का अधिकार नहीं बनाता, खासकर जब शिकायतकर्ता ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 311 के तहत पहले भी अधिकार का प्रयोग किया था।"
केस टाइटल: निकेतन दिलीप पाल्धे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य