[धारा 138 एनआई एक्ट] ट्रस्ट को पक्षकार बनाए बिना ट्रस्ट के प्रभारी को अभियुक्त के रूप में आरोपित नहीं किया जा सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट

Update: 2022-12-05 12:39 GMT

उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा कि एक 'ट्रस्ट' के इनचार्ज को चेक डिसऑनर के मामले में अभियुक्त के रूप में पक्षकार नहीं बनाया जा सकता है, यदि ट्रस्ट खुद अधिनियम की धारा 141 के अनुसार पक्षकार के रूप में आरोपित नहीं किया गया है। उल्लेखनीय है कि धारा 141 चेक डिसऑनर के मामलों में कंपनियों की देनदारियों को निर्धारित करती है।

याचिकाकर्ता जो की एक ट्रस्ट के महासचिव हैं, उनके खिलाफ जारी संज्ञान के आदेश को रद्द करते हुए जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की खंडपीठ ने कहा,

"...याचिकाकर्ता के चेक के हस्ताक्षरकर्ता न होने पर कोई विवाद नहीं है, और ट्रस्ट के महासचिव के रूप में इस मामले में उन्हें शामिल करना "ट्रस्ट" को शिकायत में अभियुक्त के रूप में पेश किए बिना है, लेकिन एनआई एक्ट की धारा 141 इस मामले में शिकायतकर्ता-ओपी नंबर 2 के लिए यह अनिवार्य बनाती है कि वह ट्रस्ट की ओर से जारी किए गए चेक के डिसऑनर के लिए ऐसे ट्रस्ट के प्रभारी और ट्रस्ट के जिम्मेदार व्यक्ति को आरोपित करे, जो इस मामले में नहीं किया गया..."

मामला

कन्हीलाल चौधरी नामक एक व्यक्ति ने याचिकाकर्ता-महासचिव, मैसर्स बिजय लक्ष्मी ट्रस्ट के खिलाफ ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में दीनबंधु मिश्रा द्वारा जारी किए गए चेक की डिसऑनर के कारण एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध करने के लिए शिकायत मामला शुरु किया था।

शिकायत और संलग्न दस्तावेजों के साथ शिकायतकर्ता के प्रारंभिक बयान के अवलोकन के बाद मजिस्ट्रेट कोर्ट ने अपराध का संज्ञान लिया और याचिकाकर्ता और दीनबंधु मिश्रा को समन जारी किया, जिससे व्यथ्ति होकर याचिकाकर्ता ने उपरोक्त आदेश को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

अवलोकन

न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 141 कंपनी द्वारा या उसकी ओर से चेक जारी किए जाने की स्थिति में कंपनी द्वारा धारा 138 के तहत अपराध करने के लिए आपराधिक दायित्व के बारे में बात करती है और इस तरह की आपराधिक देयता प्रत्येक व्यक्ति तक विस्तारित है, जो उस समय कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए प्रभारी था और कंपनी के लिए जिम्मेदार था।

शिकायत पर विचार करने के बाद, न्यायालय ने का कि शिकायत स्पष्ट रूप से यह बताने में विफल रही है कि जब अपराध किया गया था तब ट्रस्ट का प्रभारी कौन था।

खंडपीठ ने पवन कुमार गोयल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह कहा गया कि यदि शिकायतकर्ता कंपनी के आपराधिक कृत्य खिलाफ विशिष्ट बयान देने में विफल रहता है तो धारा 138 के तहत अपराध के मामले में आपराधिक न्यायशास्त्र के सामान्य सिद्धांतों का सहारा लेकर इसे ठीक नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि धारा 141 के प्रावधान प्रतिनिधिक दायित्व निर्धारित करते हैं, जिसके लिए कंपनी या फर्म द्वारा अपराध करने की आवश्यकता होती है।

इसलिए, जब तक किसी कंपनी या फर्म ने मुख्य अभियुक्त के रूप में अपराध नहीं किया है, धारा 141 की उप-धारा (1) और (2) में वर्णित व्यक्तियों को प्रतिनिधिक दायित्व के सिद्धांतों के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

केस टाइटल: बिजया मंजरी सत्पथी बनाम उड़ीसा राज्य व अन्य।

केस नंबर: CRLMC No. 1392 of 2016

साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (Ori) 158

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