सीआरपीसी की धारा 125-दावेदार के लिए भरण-पोषण की कार्यवाही में 'सभी पात्र व्यक्तियों' पर मुकदमा चलाना अनिवार्य नहींः उत्तराखंड हाईकोर्ट

Update: 2022-12-09 07:15 GMT

Uttarakhand High Court

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा करने वाले व्यक्ति के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि उसके भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार सभी व्यक्तियों (जिनके पास पर्याप्त साधन हैं) को प्रतिवादी बनाए। यह दावेदार पर निर्भर है कि उसे किससे भरण-पोषण लेने आवश्यकता है और वह किसी एक या सभी व्यक्तियों को पक्षकार बनाने के लिए स्वतंत्र है।

इस तरह मामले में पक्षकार न बनाने (non-impleadment) के खिलाफ दायर एक रिवीजन याचिका को खारिज करते हुए, जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की पीठ ने कहा,

'' सीआरपीसी की धारा 125(1) अभिव्यक्ति ''यदि कोई व्यक्ति है'' के साथ शुरू होती है। यह विधायी इरादे को दर्शाता है कि भरण-पोषण का दावा करने के लिए कई व्यक्तियों में से किसी एक को चुना जा सकता है और भरण-पोषण की मांग करने वाले दावेदार के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह उन सभी व्यक्तियों के नाम बताए जिनके पास पर्याप्त साधन हैं व जिनके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है। दूसरे शब्दों में, यह दावेदार को तय करना है कि वह किसी एक से भरण-पोषण चाहता है या सभी व्यक्तियों से, जो उसके भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी हैं।''

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

दावेदार (यहां प्रतिवादी संख्या 2) के चार बच्चे हैं। हालांकि, उसने अपने पति से 5,000 प्रति माह और अपने बड़े बेटे (यहां संशोधनवादी) से 20,000 प्रति माह की दर से भरण-पोषण का दावा करते हुए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन दिया था। उक्त आवेदन में, संशोधनवादी ने अपने अन्य भाई-बहनों को इस आधार पर पक्षकार बनाने की प्रार्थना की है कि वे एक अच्छा जीवन बिता रहे हैं और इसलिए वे अपनी मां को भरण-पोषण प्रदान करने के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं।

हालांकि, संशोधनवादी द्वारा की गई प्रार्थना को फैमिली कोर्ट के न्यायाधीश ने खारिज कर दिया। इस आदेश से व्यथित होकर यह रिवीजन याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई थी।

न्यायालय की टिप्पणियां

न्यायालय ने शुरू में यह माना कि फैमिली कोर्ट जज ने यह देखते हुए कि भरण-पोषण का दावा करने वाले व्यक्ति को यह तय करना होता है कि वह किससे भरण-पोषण चाहता है, याचिका को खारिज करने के लिए वैध कारण दिए हैं। इसके अलावा, यह माना गया कि अदालत दावेदार को उसके अन्य बच्चों को भरण-पोषण आवेदन के प्रतिवादी के रूप में पक्षकार बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकती है।

न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 125(1) में वर्णित ''यदि कोई व्यक्ति है'' की शब्दावली पर जोर दिया। इस प्रकार कोर्ट ने माना कि विधायी मंशा यह थी कि कई व्यक्तियों में से किसी एक को भरण-पोषण का दावा करने के लिए चुना जा सकता है और भरण-पोषण की मांग करने वाले दावेदार के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह प्रतिवादियों के रूप में सभी व्यक्तियों (जिनके पास पर्याप्त साधन हैं) का नाम बताए। इसलिए, दावेदार यह तय करने के लिए स्वतंत्र है कि क्या वह किसी एक या सभी व्यक्तियों से भरण-पोषण चाहता है, जो उसके भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी हैं।

तदनुसार, न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा किए गए आक्षेपित आदेश को बरकरार रखा और रिवीजन याचिका खारिज कर दी।

निष्कर्ष निकालते हुए, न्यायालय ने कहा कि,

''यहां तक कि अन्यथा भी, अभियोग/पक्षकार नागरिक कानून की एक अवधारणा है, जिसे सिविल प्रक्रिया संहिता में शामिल किया गया है और सीआरपीसी में कोई प्रावधान नहीं है, जो किसी कार्यवाही के प्रतिवादी को उक्त कार्यवाही में किसी अन्य व्यक्ति को शामिल करने या पक्षकार बनाने की मांग करने में सक्षम बनाता हो।''

केस टाइटल- मनीष सैनी बनाम उत्तराखंड राज्य

केस नंबर-सीआरएलआर नंबर 736/2022

आदेश की दिनांक- 6 दिसंबर 2022

कोरम- जस्टिस मनोज कुमार तिवारी

संशोधनवादी के वकील-श्री दीपक शर्मा,एडवोकेट

प्रतिवादी के वकील- सुश्री लता नेगी

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