केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किसी गवाह से क्रॉस एक्जामिनेशन करने के अधिकार से इनकार किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि गवाह से क्रॉस एग्जामिनेशन करने का अधिकार ऐसा अधिकार है, जिसे केवल असाधारण परिस्थितियों में या ऐसी परिस्थितियों में अस्वीकार किया जा सकता है, जहां ऑर्डर शीट से पता चलता है कि दूसरा पक्ष किसी कारण से स्थगन मांगने का अभ्यस्त है।
जस्टिस राजेश सिंह चौहान की पीठ ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें आवेदक (गैंगस्टर एक्ट केस में आरोपी) के लिए अभियोजन पक्ष के गवाह से क्रॉस एग्जामिनेशन का अवसर इस तथ्य के बावजूद रद्द कर दिया गया कि आवेदक ने इस आधार पर स्थगन आवेदन दायर किया कि उसके वकील किसी अन्य अदालत में व्यस्त हैं।
आवेदक/आरोपी का मामला यह है कि निचली अदालत ने आदेश दिनांक 17.11.2022 द्वारा पीडब्लू-11 का मुख्य बयान दर्ज किया। अब चूंकि उस विशेष समय में आवेदक का वकील किसी अन्य अदालत में व्यस्त था, इसलिए उसकी ओर से मामले को स्थगित करने के लिए आवेदन दायर किया गया, क्योंकि उसका वकील पीडब्ल्यू-11 से क्रॉस एग्जामिनेशन करने में सक्षम नहीं था।
हालांकि, आवेदक के वकील ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट ने उक्त आवेदन को इस कारण से खारिज कर दिया कि वर्तमान आवेदक के वकील ने उस अदालत के बारे में संकेत नहीं दिया, जहां वह व्यस्त था।
तत्पश्चात, आवेदक ने पीडब्ल्यू11 से क्रॉस एग्जामिनेशन करने के लिए सीआरपीसी की धारा 311 के तहत रिकॉल आवेदन दायर किया। हालांकि, इसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि MP/MLA से संबंधित मामलों को हाईकोर्ट द्वारा जारी किए जा रहे निर्देशों के अनुसार शीघ्रता से निपटाया जाना चाहिए। साथ ही कहा कि यह मामला पुराना है, इसलिए स्थगन संभव नहीं है।
दोनों आदेशों को चुनौती देते हुए आवेदक ने यह तर्क देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि सीआरपीसी की धारा 273 के संदर्भ में आवेदक के वकील को कम समय दिया जाना चाहिए, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि अन्यथा स्पष्ट रूप से कहे जाने के अलावा, सभी सबूतों को मामले में लिया गया। मुकदमे की अदालत या अन्य कार्यवाही अभियुक्त की उपस्थिति में या जब उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी जाती है तो उसके वकील की उपस्थिति में की जाएगी।
मामले के तथ्यों और सीआरपीसी की धारा 273 के शासनादेश को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने शुरुआत में कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जहां वर्तमान आवेदक की ओर से बार-बार स्थगन की मांग की गई हो, बल्कि यह इस तरह का पहला मामला है। स्थगन के लिए आवेदन दिनांक 17.11.2022 को दायर किया गया, जब पीडब्लू-11 की चीफ क्रॉस एग्जामिनेशन दर्ज की गई।
न्यायालय ने आगे कहा कि उसी तारीख को इस तरह के अवसर को बिना किसी लघु स्थगन के बंद कर दिया गया। इसलिए न्यायालय ने कहा कि इसे ट्रायल कोर्ट द्वारा किए जा रहे उचित अभ्यास के रूप में नहीं माना जा सकता।
अदालत ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कोर्ट नंबर 05, प्रतापगढ़ द्वारा पारित प्रश्नगत दोनों आदेशों को रद्द करते हुए कहा,
"वकील किसी विशेष समय पर किसी अन्य अदालत में व्यस्त हो सकते हैं और यदि ऐसा आवेदन निचली अदालतों के समक्ष दायर किया गया तो उस आवेदन को सीआरपीसी की धारा 273 के वैधानिक नुस्खे के आलोक में उचित रूप से माना जाना चाहिए। इस तथ्य के आलोक में कि एक गवाह की जिरह दूसरे पक्ष का अधिकार है। इस तरह के अधिकार से केवल असाधारण परिस्थितियों में या ऐसी परिस्थितियों में इनकार किया जा सकता है, जहां आदेश पत्र से पता चलता है कि दूसरा पक्ष किसी कारण या किसी अन्य के लिए स्थगन की मांगने में व्यस्त है।"
नतीजतन, अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह वर्तमान आवेदक/उसके वकील को PW-11 से जिरह करने के लिए एक ही तारीख तय करने का अवसर प्रदान करे। शायद छोटी तारीख और यदि उस तारीख पर अभियोजन पक्ष के गवाह की जांच नहीं की जा सकती है। वर्तमान आवेदक की ओर से कोई चूक का कारण बताते हुए कोई भी उचित आदेश पारित किया जा सकता है।
केस टाइटल- बृजेश सौरभ मिश्रा @ बृजेश मिश्रा बनाम स्टेट ऑफ यूपी के माध्यम से प्रिं. सचिव. होम लको. और अन्य [आवेदन U/S 482 No.- 216 of 2023]
केस साइटेशन: लाइवलॉ (एबी) 32/2023
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