बदनीयत से पुनरीक्षण शक्ति का उपयोग नहीं किया जा सकता: गुजरात हाईकोर्ट ने बिजली चोरी के मामले में जाति दुर्व्यवहार की शिकायत को खारिज किया
गुजरात हाईकोर्ट ने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत शिकायत को इस आधार पर खारिज करने कि याचिकाकर्ता ने 'साफ नीयत' से अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया था और उस पर बिजली चोरी का आरोप लगाया गया था, सत्र न्यायलय के फैसले को बरकरार रखा है।
जस्टिस समीर दवे ने कहा,
"यह तय कानून है कि हाईकोर्ट की पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग केवल कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और न्याय के लक्ष्य को सुरक्षित करने के लिए किया जा सकता है। कानून की प्रक्रिया को एक सैद्धांतिक और वास्तव में पीड़ित व्यक्ति द्वारा उपयोग किया जा सकता है, जो साफ नीयत से कोर्ट से संपर्क कर सकता है।"
कोर्ट ने जोड़ा,
"कानून की प्रक्रिया को उस व्यक्ति द्वारा दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो बिजली की चोरी के लिए मुकदमे का सामना कर रहा है और जिसने खुद धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत, बिना किसी सहायक सामग्री या सबूत के पीजीवीसीएल के अधिकारियों के खिलाफ आधारहीन आरोप लगाक अपने आवेदन में ऐसे तथ्यों को बयान किया है, जिससे इंगित होता है कि वह बिजली चोरी का दोषी है; जाहिर है, याचिकाकर्ता ने बिजली चोरी के कई मामलों में अनुचित लाभ लेने के लिए अधिकारियों पर काउंटर दबाव डालने के लिए शिकायत दर्ज कराई है।"
सेशन कोर्ट द्वारा आक्षेपित आदेश पर रोक लगाने की प्रार्थना करते हुए सीआरपीसी की धारा 397 सहपठित 401 के तहत मौजूदा पुनरीक्षण आवेदन दायर किया गया है।
याचिकाकर्ता ग्राम पंचायत की सरपंच है और उसने आरोप लगाया है कि पश्चिम गुजरात विज कंपनी लिमिटेड के अधिकारियों ने उसके घर का दौरा किया था और बिजली मीटर की जांच करते हुए उसे जातिवादी गालियां दी थीं।
निचली अदालत ने पुलिस उपायुक्त (एससी-एसटी सेल) की रिपोर्ट, शिकायतकर्ता और अन्य गवाहों के बयान पर गौर करने के बाद उसकी शिकायत को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि ट्रायल कोर्ट ने बयानों की ठीक से जांच नहीं की है और सरपंच के रूप में शिकायत दर्ज करना उसका कर्तव्य था।
इसके विपरीत एपीपी ने दावा किया कि स्वयं याचिकाकर्ता के हलफनामे के अनुसार, गवाहों की उपस्थिति में कोई घटना नहीं हुई थी और याचिकाकर्ता द्वारा बिजली चोरी के लिए उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर के 'काउंटर' के रूप में शिकायत दर्ज की गई थी।
जस्टिस दवे ने निष्कर्ष निकाला कि पूरक बिजली बिल 54,000 रुपये का था और याचिकाकर्ता ने बिजली चोरी की थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ दुर्व्यवहार से जुड़ी कथित घटना का भी कोई सबूत नहीं था। तदनुसार, पीजीवीसीएल अधिकारियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता था।
हाईकोर्ट की सीमित पुनरीक्षण शक्तियों का हवाला देते हुए जस्टिस दवे ने आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया।
केस नंबर: R/CR.RA/762/2022
केस टाइटल: गंगाबेन परबतभाई वाजा बनाम गुजरात राज्य