बलपूर्वक धर्मांतरण मामला : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एसएचयूएटीएस' वीसी को 15 फरवरी तक कठोर कार्रवाई से संरक्षण दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज (पूर्व में इलाहाबाद कृषि संस्थान) के कुलपति (डॉ.) राजेंद्र बिहारी लाल को बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के मामले में बलपूर्वक कार्रवाई के खिलाफ अंतरिम संरक्षण प्रदान किया।
जस्टिस मंजू रानी चौहान की पीठ ने लाल द्वारा दायर अग्रिम जमानत अर्जी पर यह आदेश पारित किया। न्यायालय के आदेश का ऑपरेटिव भाग इस प्रकार है:
"यदि आवेदक 13 और 15 फरवरी, 2023 को जांच अधिकारी (आईओ) के सामने पेश होता है, और 13 फरवरी, 2023 को आईओ के समक्ष इस आशय की एक अंडरटेकिंग दायर करता है, कि वो जांच को आगे बढ़ाने के लिए अपने पासपोर्ट, यदि कोई हो, को सरेंडर करेगा, आईओ यह सुनिश्चित करेगा कि 15 फरवरी, 2023 तक न तो आवेदक को गिरफ्तार किया जाए और न ही वर्तमान मामले में कोई कठोर कार्रवाई की जाए।"
इस मामले में पिछले साल अप्रैल में हिमांशु दीक्षित द्वारा दायर की गई शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि हिंदू धर्म के लगभग 90 व्यक्तियों को इवेंजेलिकल चर्च ऑफ इंडिया, हरिहरगंज, फतेहपुर में उन्हें अनुचित प्रभाव में डालकर, जबरदस्ती और उन्हें धोखा देकर और आसानी से पैसा देने का वादा करके, आदि के तहत ईसाई धर्म में धर्मांतरण के उद्देश्य से इकट्ठा किया गया है।
इसकी सूचना मिलने पर सरकारी अधिकारी मौके पर पहुंचे और पादरी विजय मसीहा से पूछताछ की, जिन्होंने कथित तौर पर खुलासा किया कि धर्मांतरण की प्रक्रिया पिछले 34 दिनों से चल रही थी और यह प्रक्रिया 40 दिनों के भीतर पूरी हो जाएगी।
उन्होंने कथित तौर पर यह भी बताया कि वे मिशन अस्पताल में भर्ती मरीजों का भी धर्मांतरण करने की कोशिश कर रहे हैं और कर्मचारी इसमें सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इसके अनुसरण में, सरकारी अधिकारियों ने 35 व्यक्तियों (एफआईआर में नामित) और 20 अज्ञात व्यक्तियों को हिंदू समुदाय के 90 व्यक्तियों के ईसाई धर्म में धर्मांतरण में शामिल पाया।
ये प्राथमिकी धारा 153ए, 506, 420, 467, 468 आईपीसी तथा उत्तर प्रदेश गैर कानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम की धारा -3/5(1) के तहत दर्ज की गई थी।
वर्तमान आवेदक का नाम प्राथमिकी में नहीं था, हालांकि, उसे बाद के चरण में दो इच्छुक गवाहों और मामले के जांच अधिकारी द्वारा दिए गए बयानों के आधार पर आवेदक के खिलाफ पक्षपाती होने के कारण फंसाया गया था।
मामले में अग्रिम जमानत की मांग करते हुए, आवेदक की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट ने कहा कि वह निर्दोष है और उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि शिकायतकर्ता एक संगठन - विश्व हिंदू परिषद में एक पद रखता है और कुछ सह-आरोपी व्यक्ति पहले ही जमानत पर रिहा हो चुके हैं।
कुछ संबंधित मुद्दों पर न्यायालय द्वारा उठाए गए विशिष्ट प्रश्नों पर, जैसा कि आवेदक की और से उपस्थित सीनियर एडवोकेट और राज्य के एडिशनल एडवोकेट जनरल ने तर्क दिया, दोनों पक्षों की ओर से दिन के लिए स्थगन की मांग की गई।
वास्तव में, एडिशनल एडवोकेट जनरल ने मामले में और सहायता प्रदान करने के लिए कुछ और समय मांगा, जिसमें निर्दोष गरीब और शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों के बलपूर्वक सामूहिक धर्मांतरण के अलग-अलग उद्देश्य के लिए पर्दे के पीछे विदेशी धन का संग्रह और बेईमानी करना शामिल है जो मिशन के अस्पताल में भर्ती रोगी हैं या किसी भी तरह से राज्य भर में चल रहे मिशनरियों से जुड़े हुए हैं।
इसे देखते हुए, अदालत ने मामले को 16 फरवरी को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया और तब तक आवेदक को इस शर्त पर राहत दी कि वह 13 और 15 फरवरी 2023 को जांच अधिकारी के सामने पेश होगा और इस आशय की एक अंडरटेकिंग दाखिल करेगा कि वो जांच अधिकारी को 13 फरवरी 2023 को खुद जांच को आगे बढ़ाने के लिए अपना पासपोर्ट, यदि कोई हो, सरेंडर कर रहा है।
संबंधित मामले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनवरी में इसी मामले में एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। हालांकि, इस मामले में कथित तौर पर शामिल पादरी को जमानत मिल गई है।
पेश हुएः आवेदक के लिए वकील: सीनियर एडवोकेट जीएस चतुर्वेदी, सीनियर एडवोकेट कुमार विक्रांत और विरोधी पक्ष के लिए वकील: एजीएएस ए के संड और अमित सिंह चौहान की सहायता से मनीष गोयल सीनियर एडवोकेट/ एडिशनल एडवोकेट।
केस - प्रो. (डॉ.) राजेंद्र बिहारी लाल बनाम यूपी राज्य और अन्य
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