दिल्ली हाईकोर्ट ने स्विस बैंक खाते के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कंसेंट फॉर्म भरने से इनकार करने पर जुर्माना बरकरार रखा
दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसे करदाता पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत जारी जुर्माने को बरकरार रखा, जो कर अधिकारियों को कथित स्विस बैंक खातों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए कंसेंट फॉर्म भरने में विफल रहा।
जस्टिस मनमोहन और जस्टिस सुधीर कुमार जैन की खंडपीठ ने कहा कि भले ही करदाता का कथित स्विस बैंक खातों से कोई संबंध नहीं है, अगर उसने आयकर अधिनियम की धारा 142(1) के तहत जारी नोटिस का अनुपालन किया होता तो उसे कंसेंट फॉर्म भरने में कोई पूर्वाग्रह नहीं होता।
राजस्व विभाग को फ्रांसीसी आधिकारिक स्रोतों से दस्तावेज प्राप्त हुए थे, जो दर्शाते हैं कि अपीलकर्ता जयंती डालमिया, एचएसबीसी बैंक में स्विस बैंक खाते की एक खाताधारक है। करदाता से स्विस बैंक खाते का विवरण प्रस्तुत करने का अनुरोध किया। वैकल्पिक रूप से आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 142(1) के तहत करदाता पर एक नोटिस जारी किया गया। इसमें करदाता को कंसेंट फॉर्म भरने के लिए कहा गया ताकि कर अधिकारियों को स्विस बैंक से करदाता के बैंक खाते की जानकारी प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके। आईटीएटी ने करदाता द्वारा अधिनियम की धारा 142(1) के तहत जारी नोटिस का अनुपालन न करने और धारा 271(1)( बी) अधिनियम के तहत करदाता ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की।
दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष करदाता के वकील ने प्रस्तुत किया कि करदाता डालमिया का स्विस बैंकों में कभी खाता नहीं है और वह उक्त कंसेंट फॉर्म भरने के लिए बाध्य नहीं है, क्योंकि उसका उक्त बैंक खातों से कोई संबंध नहीं है। करदाता के वकील ने यह भी प्रस्तुत किया कि करदाता को कंसेंट फॉर्म प्रस्तुत करने के लिए कहना सुप्रीम कोर्ट के सेल्वी और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य (2010) में पारित निर्णय के मद्देनजर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
आयकर अधिनियम की धारा 142(1) निर्धारण अधिकारी को ऐसे खातों या दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के लिए करदाता को नोटिस जारी करने की शक्ति प्रदान करती है, जैसा कि निर्धारण अधिकारी अधिनियम के तहत जांच के उद्देश्य के लिए आवश्यक हो सकता है। धारा 271(1)(बी) निर्धारण अधिकारी को अधिनियम की धारा 142(1) के तहत जारी नोटिस का पालन करने में विफल रहने वाले करदाता पर जुर्माना जारी करने की शक्ति देती है।
हाईकोर्ट ने पाया कि संजय डालमिया बनाम पीसीआईटी (2018) के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने अधिनियम की धारा 271 (1) (बी) के तहत लगाए गए दंड को बरकरार रखा, जो एक ही जांच और बैंक खाते से उत्पन्न हुआ है। वर्तमान मामले में और उसी कारण से कंसेंट फॉर्म नहीं भरने के कारण विचार किया जाता है। साथ ही, हाईकोर्ट ने कहा कि उक्त आदेश के खिलाफ एक विशेष अनुमति याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सेल्वी और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के पारित निर्णय वर्तमान मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होगा, क्योंकि इसमें आपराधिक कार्यवाही के संदर्भ में केवल 'मौन के अधिकार' के सिद्धांत को बरकरार रखा गया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही करदाता का स्विस बैंक खातों से कोई संबंध नहीं है, लेकिन अगर उसने अधिनियम की धारा 142 (1) के तहत जारी नोटिस का अनुपालन किया होता और कंसेंट फॉर्म भर दिया होता तो उसे कोई पूर्वाग्रह नहीं होता। इसके अलावा, चूंकि संजय डालमिया बनाम पीसीआईटी के मामले में एक ही बैंक खाते के अटॉर्नी धारक के संबंध में हाईकोर्ट ने जुर्माना को बरकरार रखा था।
इसलिए हाईकोर्ट ने करदाता पर लगाए गए जुर्माने को बरकरार रखा और अपील को खारिज कर दिया।
केस शीर्षक: जयंती डालमिया बनाम डीसीआईटी
निर्धारिती के लिए वकील: रमेश सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता, श्रेया जैन और गौरव तंवर, अधिवक्ता
राजस्व विभाग के वकील: अजीत शर्मा, वरिष्ठ सरकारी वकील
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