बलात्कार पीड़िता का यौन इतिहास रिकॉर्ड करना, टू फिंगर टेस्ट या वर्जिनिटी टेस्ट असंवैधानिकः पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "टू-फिंगर टेस्ट" (TFT) या "कौमार्य परीक्षण" के जरिए पीड़ित की सेक्शुअल हिस्ट्री दर्ज करना असंवैधानिक है।
जस्टिस मंजूर अहमद मलिक, जस्टिस मजहर आलम खान मूरखेल और जस्टिस सैयद मंसूर अली शाह ने कहा, मामले में रेप सर्वाइवर के शरीर की चर्चा करके, जैसे कि उसकी "योनि दो अंगुलियों आसानी से आ जाती हैं" या "पुराना टूटा हुआ हाइमन" आदि के जरिए, उसकी सेक्शुअल हिस्ट्री को लाना, रेप सर्वाइवर की प्रतिष्ठा और सम्मान पर हमला है और संविधान के अनुच्छेद 4 (2) (a) का उल्लंघन है, जिसमें यह कहा गया है कि किसी व्यक्ति के शरीर और प्रतिष्ठा के लिए अपमानजनक, कोई भी कार्यवाही, यदि कानून के अनुसार नहीं हो तो की नहीं जा सकती है।
पीठ ने कहा कि "सेक्स की लती", "कामोत्तेजक महिला", "चरित्रहीन महिला" और "कौमार्यहीन" जैसी अभिव्यक्तियों से न्यायालयों को बचना चाहिए क्योंकि ये असंवैधानिक और अवैध हैं।
बलात्कार के आरोपियों की ओर से दायर एक आपराधिक अपील पर विचार करते हुए, अदालत ने विचार किया कि क्या "दो-उंगली परीक्षण" (टीएफटी) या "कौमार्य परीक्षण" करके पीड़िता के यौन इतिहास को दर्ज करने का कोई वैज्ञानिक औचित्य है, या यह निर्धारित करने के लिए बलात्कार किया गया है, यह साबित करने में प्रमाणिक प्रासंगिकता है।
अदालत ने इस सवाल पर भी विचार किया कि क्या "यौन इतिहास", "यौन चरित्र" या "कामुकता" का उपयोग रेप सर्वाइवर को यौन रूप से सक्रिय, अपवित्र, और उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़ा करने के लिए किया जा सकता है; और क्या उसकी सिद्धांतहीन पृष्ठभूमि को यह मानने का आधार बनाया जा सकता है कि उसने कृत्य को सहमति दी रही होगी?
कौमार्य या पवित्रता का निर्धारण करने के लिए चिकित्सकीय परीक्षण नहीं है
चिकित्सा साहित्य को संदर्भित करते हुए, अदालत ने कहा कि MLC की चिकित्सकीय भाषा लैंगिक दुराग्रहों से भरी है, और रेप सर्वाइवर के चरित्र पर तुरंत सवाल उठाती है।
अदालत ने कहा कि चिकित्सकों द्वारा बलात्कार पीड़िता का परीक्षण और अदालतों द्वारा ऐसे परीक्षणों के बाद एकत्र किए गए चिकित्सीय साक्ष्यों का उपयोग केवल इस सवाल का निर्धारण करने के लिए किया जाना चाहिए कि कथित पीड़िता का बलात्कार किया गया था या नहीं, उसकी कौमर्यता या पवित्रता का निर्धारण न करें।
"प्रशिक्षण और अनुभव की कमी के कारण मेडिको-लीगल सर्टिफिकेट (एमएलसी) में लापरवाही से टू-फिंगर टेस्ट के बारे में रिपोर्ट किया जाता है, यह दिखाने के लिए कि योनि में उंगलियां आ सकती हैं ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि रेप पीड़िता कथित यौन हमले के दरमियान यौन सक्रिय थी या कौमार्य थी, जैसा कि समाज द्वारा समझा जाता है।
इन परीक्षणों में से किसी का भी चिकित्सा विज्ञान में कोई आधार नहीं है। एमएलसी की भाषा को लैंगिक दुराग्रह से भरी है, और इसमें तुरंत ही बलात्कार पीड़िता के चरित्र पर सवाल उठाया जाता है। इसे इस धारणा को पुष्ट करने के लिए उपयोग किया जाता है कि एक यौन सक्रिय महिला किसी के साथ भी यौन गतिविधियों के लिए आसानी से सहमति दे सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त का कार्यालय और लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र की इकाई, वर्जिनिटी टेस्टिंग: एक इंटरएजेंसी स्टेटमेंट में "उद्घोषणा" करती है कि यह प्रथा पीड़ित के मानवाधिकारों का उल्लंघन है और तत्काल और दीर्घकालिक दोनों स्तर पर ऐसे परिणामों से जुड़ी है, जिसके शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप से हानिकारक नतीजे हो सकते हैं।
इस प्रकार के दृढ़ और विश्वसनीय इंटरजेंसी स्टेटमेंट के मद्देनजर, चिकित्सकों द्वारा एक बलात्कार पीड़िता की परीक्षण और अदालतों द्वारा इस प्रकार के परीक्षण में एकत्र किए गए चिकित्सा साक्ष्यों का उपयोग केवल यह निर्धारित करने के लिए किया जाना चाहिए कि कथित पीड़िता का बलात्कार किया गया है या नहीं, और उसकी वर्जिनिटी या शुद्धता का निर्धारण नहीं किया जाना चाहिए।"
यदि पीड़िता ने कौमार्य पहले ही खो दिया है तो भी यह किसी को भी उसके साथ बलात्कार करने का अधिकार नहीं देता है
पीठ ने कहा कि अदालतों को ऐसे अभिव्यक्ति का उपयोग बंद करना चाहिए, जैसे "सेक्स की लती", "कामोत्तेजक महिला", "चरित्रहीन महिला" और "कौमार्यहीन"। यदि अभियुक्त के खिलाफ बलात्कार का आरोप साबित नहीं हुआ है तो भी बलात्कार पीड़िता के खिलाफ ऐसी अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
"रेप सर्वाइवर के शरीर की चर्चा करके, जैसे कि उसकी "योनि दो अंगुलियों आसानी से आ जाती हैं" या "पुराना टूटा हुआ हाइमन" आदि के जरिए, उसकी सेक्शुअल हिस्ट्री को लाना, रेप सर्वाइवर की प्रतिष्ठा और सम्मान पर हमला है और संविधान के अनुच्छेद 4 (2) (a) का उल्लंघन है, जिसमें यह कहा गया है कि किसी व्यक्ति के शरीर और प्रतिष्ठा के लिए अपमानजनक, कोई भी कार्यवाही, यदि कानून के अनुसार नहीं हो तो की नहीं जा सकती है। इसी प्रकार, हमारे संविधान का अनुच्छेद 14 यह कहता है कि गरिमा का उल्लंघन नहीं होगा, इसलिए रेप सर्वाइवर के यौन इतिहास की रिपोर्ट करना, उसकी स्वतंत्रता, पहचान, स्वायत्तता और स्वतंत्र विकल्प के अधिकार को कलंकित करने जैसा है, और उसके मानव मूल्य को नीचा दिखाने और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत गारंटीकृत गरिमा के अधिकार पर हमला है, जो एक पूर्ण अधिकार है और कानून के अधीन नहीं है।"
लाहौर उच्च न्यायालय ने भी टू फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक कहा था
इस साल की शुरुआत में दिए गए एक फैसले में, लाहौर उच्च न्यायालय ने माना था कि बलात्कार या यौन शोषण की शिकार महिला की वर्जिनिटी का पता लगाने के उद्देश्य से किए गए टू-फिंगर टेस्ट और हाइमन टेस्ट असंवैधानिक है। अदालत ने कहा कि इस तरह के परीक्षण बिना किसी चिकित्सीय आधार के हैं और अवैज्ञानिक हैं और पीड़िता की व्यक्तिगत गरिमा को भी प्रभावित करते हैं।
जस्टिस आयशा ए मलिक ने कहा कि इस तरह के परीक्षण भेदभावपूर्ण हैं और पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 9 और 14 में जीवन के अधिकार और सम्मान के अधिकार के खिलाफ हैं। अदालत ने फेडरेशन और प्रांतीय सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का भी निर्देश दिया कि बलात्कार और यौन शोषण के पीड़ितों के मेडिको-लीगल परीक्षण में कौमार्य परीक्षण को ना शामिल किया जाए।
केस: आतिफ ज़रीफ़ बनाम राज्य
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