'आपदा के लिए नुस्खा' : केरल हाईकोर्ट ने डॉक्टर से प्रमाणित लोगों को शराब की आपूर्ति करने के आदेश पर रोक लगाई
केरल उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केरल सरकार द्वारा 30 मार्च को जारी किए गए उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसके अनुसार आबकारी विभाग किसी डॉक्टर से यह प्रमाण पत्र लेने वाले व्यक्ति को शराब की आपूर्ति करेगा कि वह शराब वापसी
सिन्ड्रोम से पीड़ित है।ये रोक तीन सप्ताह की अवधि के लिए है।
जस्टिस ए के जयशंकरन नांबियार और जस्टिस शाजी पी शेली की पीठ ने कांग्रेस सांसद टी एन प्रथपन, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और केरल गवर्नमेंट मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन द्वारा दायर याचिकाओं पर ये अंतरिम आदेश पारित किया।
डॉक्टरों ने तर्क दिया है कि वे शराब पर निर्भरता के इलाज के रूप में शराब ही नहीं लिख सकते हैं। इस तरह के दवा के पर्चे बुनियादी चिकित्सा सिद्धांतों के खिलाफ हैं।
न्यायाधीशों ने कहा कि सरकारी आदेश चिकित्सा निदान और दवा के पर्चे पर चुप है, जिसे डॉक्टरों को आबकारी विभाग से शराब की आपूर्ति के लिए बनाना होगा।
जस्टिस नांबियार ने राज्य के महाधिवक्ता के वी सोहन से पूछा,
"शराब वापसी सिन्ड्रोम का इलाज शराब के साथ कैसे किया जा सकता है ? "
महाधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि अल्कोहल विदड्रॉल सिन्ड्रोम को ठीक करने के लिए अल्कोहल का हल्का प्रशासन एक मान्यता प्राप्त प्रथा है। उन्होंने कहा कि राज्य में तालाबंदी के कारण शराब उपलब्ध नहीं होने के कारण कई मौतें हुई हैं।
न्यायमूर्ति नांबियार ने कहा,
"हम चिंतित हैं कि राज्य सरकार ने शराब वापसी सिन्ड्रोम से पीड़ित व्यक्तियों को अधिक शराब देने का एकतरफा निर्णय लिया है। यह परेशान करने वाला है।"
"यह आपदा के लिए एक नुस्खा है", न्यायमूर्ति नांबियार ने टिप्पणी की।
न्यायाधीश ने कहा,
"चिकित्सा साहित्य में कोई भी दस्तावेज अल्कोहल विदड्रॉल सिन्ड्रोम वाले व्यक्तियों को शराब पर इस तरह के दवा पर्चे का समर्थन नहीं करता है।"
वहीं चिकित्सा अधिकारियों के वकील ने प्रस्तुत किया कि यदि वे शराब के आश्रितों को इलाज के रूप में शराब लिखते हैं तो वे कानूनी और अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होंगे।