गुजरात हाईकोर्ट ने महिला को तीन साल तक किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में नहीं बैठने देने का प्रतिबंध हटाया
गुजरात हाईकोर्ट ने एक 29 वर्षीय महिला को अपनी बीमार मां की जिम्मेदारी के साथ-साथ अपना करियर बनाने की कोशिश कर रही महिला को बड़ी राहत देते हुए राज्य अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड द्वारा उस पर लगाए गया प्रतिबंध हटा दिया। बोर्ड ने उक्त महिला को तीन साल के लिए किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में बैठने पर प्रतिबंध लगाया था। बोर्ड द्वारा आयोजित एक परीक्षा में मोबाइल फोन ले जाने के पर महिला के खिलाफ उक्त प्रतिबंध लगाया गया था।
जस्टिस बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने आश्चर्य जताया,
"... क्या मोबाइल फोन ले जाने का यह एक मात्र कार्य इतना निंदनीय है कि उसे तीन साल की अवधि के लिए प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है।"
अदालत महिला द्वारा दायर अनुच्छेद 226 याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें कहा गया कि उसने किसी भी अनुचित साधन का सहारा नहीं लिया और एग्जाम हॉल के अंदर अनजाने में मोबाइल ले गई।
मामले के तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता ने वरिष्ठ लिपिक, तृतीय श्रेणी के पद के लिए प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने के दौरान उसके पास एक्ज़ाम हॉल में मोबाइल पाया गया। न्यायालय ने देखा वह यह है कि याचिकाकर्ता की मां एक कैंसर रोगी है जिसका अस्पताल में इलाज चल रहा है।
यह नोट किया गया कि परीक्षा के दौरान पूरे समय मोबाइल महिला के पास था और परीक्षा समाप्त होने के 15 मिनट पहले उसके फोन की घण्टी बजी, जिससे निरीक्षको को उसके पास फोन रखे होने का पता चला।
याचिकाकर्ता का स्पष्टीकरण यह है कि उसकी मां की तबीयत ठीक नहीं है और उसे ध्यान देने की ज़रूरत है। इसी तहत फोन को जब्त कर लिया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने ऐसी कोई चूक नहीं की और ऐसा कोई तरीका नहीं अपनाया, जिससे के लिए उसे ऐसी कठोर सजा मिले।
याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि मोबाइल फोन ले जाना अनजाने में किया गया कार्य हो सकता है, जिसके लिए उम्मीदवार को तीन साल के लिए परीक्षा में शामिल होने से वंचित नहीं किया जा सकता।
इसके विपरीत, प्रतिवादी ने जोर देकर कहा कि नियम स्पष्ट रूप से निर्धारित करते हैं कि उम्मीदवार अपने साथ मोबाइल फोन नहीं ले जा सकता। ओएमआर शीट में भी यही कहा गया है। पेपर लीक विवाद के आलोक में बोर्ड द्वारा आयोजित बैठक के कार्यवृत्त की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया है, जिसमें इस नियम की पुष्टि की गई और सजा तीन साल के लिए उम्मीदवार को वंचित करने की है।
उमेशचंद्र शुक्ल बनाम भारत संघ का भी संदर्भ दिया गया, जहां यह माना गया कि कठिन मामले खराब कानून बनाते हैं। हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उम्मीदवार को पद से हटा दिया गया, कोई दया नहीं दिखाई जा सकती, क्योंकि नियम स्पष्ट हैं।
बेंच ने दलीलों को देखने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता का यह तर्क कि वह अपनी मां की बीमारी के कारण काफी दबाव में है और इसलिए तर्क का वजन बढ़ गया है। फोन को साइलेंट मोड पर रखने के लिए उसकी ओर से कोई "साहसी प्रयास" नहीं किया गया, सिर्फ इसलिए कि उसका फोन बज उठा, अधिकारियों ने उसका डिवाइस जब्त कर लिया।
जस्टिस वैष्णव ने टिप्पणी की:
"इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में नियम की कठोरता को करुणा और दिमाग के उपयोग के बिना लागू किया गया। नियमों के गणितीय अनुप्रयोग के बजाय दया के साथ उचितता की अपेक्षा अधिकारियों से की गई है।"
तदनुसार, बेंच ने आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि उम्मीदवार गुजरात अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड द्वारा आयोजित सभी परीक्षाओं में बैठने की हकदार है।
केस शीर्षक: सचिव के माध्यम से धाराबेन धनसुखभाई जोशी बनाम गुजरात गौ सेवा पसंदगी मंडल
केस नंबर: सी/एससीए/6480/2022
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें