शादी के झूठे वादे पर बलात्कार- विवाहित, शिक्षित महिला को शादी से पहले यौन संबंध बनाने के परिणामों के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए : राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने शादी के झूठे वादे के आधार पर बलात्कार करने से संबंधित एक मामले में कहा है कि शादीशुदा शिक्षित महिला को (प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर) शादी से पहले किसी पुरुष के साथ संभोग करने के परिणामों से अच्छी तरह वाकिफ होना चाहिए।
अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 375 के तहत एक महिला की सहमति को केवल तभी तथ्यों की गलतफहमी के आधार पर गलत ठहराया जा सकता है, जहां इस तरह की गलतफहमी शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए उसके आत्मसमर्पण का आधार थी। अदालत ने आगे कहा कि वादे के उल्लंघन को झूठा वादा नहीं कहा जा सकता है। एक झूठा वादा स्थापित करने के लिए, वादा करने वाले का इसे करते समय अपने शब्दों पर कायम रहने का कोई इरादा नहीं होना चाहिए।
जस्टिस फरजंद अली ने कहा,
''जब एक महिला विवाहित और शिक्षित होती है, तो, प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर, उसे विवाह से पहले एक पुरुष के साथ यौन संबंध बनाने के परिणामों के बारे में अच्छी तरह से वाकिफ होना चाहिए। धोखाधड़ी से सहमति प्राप्त करने की स्थिति में, प्रलोभन एक आवश्यक घटक है। प्रथम दृष्टया यह धारणा बनाने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ ऐसी सामग्री होनी चाहिए कि लड़की को आरोपी द्वारा इस हद तक प्रेरित किया गया था कि वह उसके साथ संभोग करने के लिए सहमत हो गई थी।''
अदालत ने यह भी कहा कि बलात्कार के मामलों में, संभोग का कार्य जबरन और महिला / महिला की सहमति के बिना होना चाहिए। हालांकि, अदालत ने कहा कि धोखाधड़ी से प्राप्त सहमति भी बिना सहमति के समान ही होती है और इसलिए, यदि संभोग धोखाधड़ी से सहमति प्राप्त करके किया जाता है ,तो यह बलात्कार के समान होगा।
कोर्ट ने कहा कि,
''यदि एक अनपढ़ महिला से शादी का वादा किया जाता है और उस वादे के तहत, संभोग के लिए उसकी सहमति प्राप्त की जाती है, तो यह कहा जा सकता है कि सहमति धोखाधड़ी से प्राप्त की गई है। यहां, इस मामले में, शिकायतकर्ता एक शिक्षित महिला है और एक महिला जेल प्रहरी यानी जेल गार्ड के रूप में सेवा दे रही है। एक और उदाहरण यह होगा कि यदि पहचान छिपाकर या पररूप धारण करके सहमति प्राप्त की जाती है, तो यह एक धोखाधड़ी है। यदि कोई विवाहित पुरुष अपनी शादी के तथ्य को छुपाकर किसी अविवाहित लड़की की सहमति उससे शादी करने के झूठे बहाने से प्राप्त करता है,तो ऐसे मामले में युवा लड़की द्वारा दी गई सहमति को धोखाधड़ी से प्राप्त सहमति माना जाएगा और इस प्रकार यह सहमति नहीं है। यहां, इस मामले में, दोनों पक्ष पहले से विवाहित नहीं हैं।''
अदालत ने कहा कि इस तथ्य के बारे में कोई भी सबूत या फुसफुसाहट भी नहीं है कि शुरुआत से ही, आरोपी का एक बेईमान इरादा था; इसके बजाय, तथ्यों से पता चलता है कि दोनों के बीच सहमति से यौन संबंध बने थे और इस प्रकार, प्राथमिकी में लगाए गए कथित आरोपों के अनुसार कोई ऐसा अपराध नहीं बन रहा हैै,जिसके लिए याचिकाकर्ता को मुकदमे की कठोरता का सामना करने के लिए मजबूर किया जा सके।
प्रशांत भारती बनाम एनसीटी राज्य (दिल्ली) और हरियाणा राज्य बनाम चौधरी भजनलाल के मामलों में दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि इस मामले में दायर आपराधिक मिश्रित याचिका को अनुमति देना और उक्त प्राथमिकी से उत्पन्न सभी कार्यवाही को रद्द करना उचित है। दोनों मामलों में, सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्राथमिकी / शिकायत / सभी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट की शक्तियों के दायरे पर विस्तार से चर्चा की है और ऐसे परिस्थितियों का निर्धारण किया है जहां प्राथमिकी/शिकायत/सभी आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
''तदनुसार, आपराधिक मिश्रित याचिकाओं को अनुमति दी जाती है। पीएस महिला थाना, जिला अलवर में आईपीसी की धारा 376-डी, 418 और 506 के तहत अपराधों के लिए दर्ज एफआईआर संख्या 36/2020 और इसके अनुसरण में शुरू की गई सभी कार्यवाही को रद्द किया जाता है। संबंधित थानाध्यक्ष को मामले की क्लोजर रिपोर्ट तैयार करने और इस आदेश की प्राप्ति की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष उस रिपोर्ट को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है।''
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि प्राथमिकी में इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि किस समय आरोपी ने याचिकाकर्ता के साथ शादी करने से इनकार किया और वर्ष 2018 में, जब कार्रवाई का कारण सामने आया, तो शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता पर मुकदमा करने से इनकार कर दिया; इसके विपरीत, उसके बाद भी उसने याचिकाकर्ता के साथ अपने संबंधों को जारी रखा। अदालत ने पाया कि कोई ऐसी वीडियो क्लिप या अन्य सामग्री एकत्र या प्रस्तुत नहीं की गई है जिससे खतरे का अनुमान लगाया जा सके। अदालत ने कहा कि इस मामले में रिपोर्ट कराने के लिए लंबे समय तक चुप रहना भी मामले की कहानी पर गंभीर संदेह पैदा करता है।
अदालत ने यह भी कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन सामान्य मामला है, जिसमें लड़के और लड़की के बीच अफेयर हुआ, यौन संबंध बने और अंततः उनका ब्रेकअप हो गया। अदालत ने कहा कि वर्तमान मामला ऐसे मामलों में से एक है जहां पक्षकारों के बीच सहमति से यौन संबंध बने थे और वे एक-दूसरे के प्यार करते थे, हालांकि, समय के साथ उनके रिश्ते में खटास आ गई।
मामले में दर्ज बयानों और रिपोर्टों के अवलोकन के बाद अदालत ने पाया कि आईपीसी की धारा 375 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच आदान-प्रदान किए गए संदेशों से भी यह पता चलता है कि आरोपित किसी भी अपराध को कम से कम आईपीसी की धारा 375 के दायरे में नहीं लाया जा सकता है। अदालत ने कहा कि गलत धारणा के तहत दी गई सहमति के बारे में जो दलील दी गई है वह प्रथम दृष्टया कमजोर और अपुष्ट प्रतीत होती है।
मामले के तथ्य
इस मामले की पीड़िता/शिकायतकर्ता सेंट्रल जेल, बीकानेर में जेल प्रहरी के तौर पर तैनात है और वर्ष 2018 में उसने परीक्षा की कोचिंग लेने के लिए जयपुर में एक घर किराए पर लिया था। एक दिनेश मीणा नामक व्यक्ति ने उसे बताया कि राधा किशन मीणा-याचिकाकर्ता नाम का एक लड़का गुजरात में सीमा शुल्क विभाग में सेवारत है और उसके लिए एक उपयुक्त दूल्हा होगा। आरोपी ने कथित तौर पर उसे शादी करने के लिए राजी किया, जिसके लिए उसने हामी भर दी। आरोप है कि 18.4.2018 को याचिकाकर्ता ने उसे मिलने के लिए बुलाया, जिस पर वे दोनों मिले और वह याचिकाकर्ता की मोटरसाइकिल पर सवार हो गई।
आरोप है कि वह भर्ती प्रक्रिया से संबंधित शारीरिक जांच के लिए जोधपुर जाना चाहती थी और इसी मकसद से उसने याचिकाकर्ता से उसे राजगढ़ रेलवे स्टेशन पर छोड़ने को कहा, लेकिन आरोपी-याचिकाकर्ता उसे अपने एक रिश्तेदार के घर पर ले गया। आरोपों के अनुसार, शिकायतकर्ता को आरोपी ने शारीरिक संबंध बनाने के लिए प्रेरित किया और उससे शादी करने का वादा करने करके उसकी सहमति प्राप्त कर ली।
आगे यह भी आरोप लगाया गया कि उसके बाद कई मौकों पर उसके साथ अलग-अलग जगहों पर संभोग किया गया और अंत में जब उसने विरोध किया, तो उसे धमकी दी गई कि याचिकाकर्ता के साथ आपत्तिजनक स्थिति में उसका एक अश्लील वीडियो बनाया गया है और यदि कोई रिपोर्ट दायर की जाती है तो वह उसे समाज में बदनाम करने के लिए उस वीडियो को वायरल कर देगा। आरोप है कि याचिकाकर्ता ने उसे बहला-फुसलाकर यह झांसा दिया कि वह उससे शादी करेगा। उक्त रिपोर्ट के आधार पर उक्त प्राथमिकी दर्ज कर मामले की जांच की जा रही है।
दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि भले ही प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों को उनके अंकित मूल्य के आधार पर ले लिया जाए, फिर भी आईपीसी की धारा 375 और 376 के तहत परिभाषित बलात्कार का कोई भी मामला नहीं बनता है क्योंकि शिकायतकर्ता एक 24 वर्षीय एक वयस्क व साक्षर महिला है और जो एक कांस्टेबल के रूप में सेवा दे रही है और अपने अच्छे-बुरे को अच्छी तरह से जानती है। यदि आरोपों के अनुसार, उसने खुद को आरोपी याचिकाकर्ता के सामने प्रस्तुत किया, तो यह माना जा सकता है कि यह दो बालिग व्यक्तियों के बीच एक सहमति से बना यौन संबंध था और आईपीसी की धारा 376 के दंड प्रावधानों के तहत नहीं आएगा। इस प्रकार, उन्होंने प्राथमिकी और याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित सभी परिणामी कार्यवाही को रद्द करने की प्रार्थना की।
राज्य की तरफ से लोक अभियोजक ने कहा कि प्राथमिकी रद्द करने का कोई आधार नहीं है। एफआईआर के अवलोकन से, संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है जिसकी जांच की आवश्यकता है। यह प्रस्तुत किया गया है कि प्राथमिकी को रद्द करने के चरण में, साक्ष्य की सराहना करने की आवश्यकता नहीं है और न ही हाईकोर्ट को मामले की विश्वसनीयता या वास्तविकता का पता लगाने के लिए जांच करनी चाहिए। यह प्रस्तुत किया गया कि यह एक युवा लड़की से शादी करने का झूठे वादा करके प्रलोभन देने का एक स्पष्ट मामला है, इसलिए संयुक्त रूप से याचिकाओं को खारिज करने के लिए प्रार्थना की गई।
अधिवक्ता मोहित बलवाड़ा, अधिवक्ता आशा शर्मा और अधिवक्ता गायत्री इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए, जबकि अधिवक्ता अंशुमान सक्सेना व अधिवक्ता रमेश चौधरी,पीपी प्रतिवादियों की ओर से उपस्थित हुए।
केस का शीर्षक- राधाकृष्ण मीणा बनाम राजस्थान राज्य, पीपी के माध्यम से
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (राज) 78
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