यदि गुमशुदा व्यक्ति रिपोर्ट में अवैध कस्टडी का आरोप नहीं है तो हैबियस कार्पस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने हाल ही में ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus Plea) का निपटारा करते हुए कहा कि उन मामलों में जहां 'अवैध कस्टडी' के आरोप के अभाव में 'गुमशुदा व्यक्ति की रिपोर्ट' पहले ही दायर की जा चुकी है तो संबंधित मजिस्ट्रेट से संपर्क करना उचित विकल्प होगा।
याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपनी बड़ी बेटी को अदालत में पेश करने की मांग की थी।
याचिका की सामग्री से पता चलता है कि याचिकाकर्ता द्वारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले ही 'गुमशुदा व्यक्ति रिपोर्ट' दायर की जा चुकी है, लेकिन उसकी बेटी को किसी भी व्यक्ति द्वारा अवैध रूप से कस्टडी में लिए जाने का कोई आरोप नहीं लगाया गया।
जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस समीर जैन की खंडपीठ ने दलीलों और याचिका पर विचार करने के बाद कहा कि मामले के दिए गए तथ्यों में याचिकाकर्ता के लिए 'लापता व्यक्ति रिपोर्ट' की प्रगति के बारे में पूछताछ करना उचित है, जिसे याचिकाकर्ता संबंधित मजिस्ट्रेट से संपर्क करके सही कर सकता है।
अदालत ने कहा,
"याचिकाकर्ता के लिए उपलब्ध उचित तरीका संबंधित मजिस्ट्रेट से संपर्क करना है। इसलिए हम वर्तमान बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।"
केस टाइटल: निरंजन बनाम राजस्थान राज्य और अन्य
साइटेशन: डी.बी. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका नंबर 297/2022
कोरम: जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस समीर जैन
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें