राजस्थान हाईकोर्ट ने कुकर्म और रेप के मामले में गलत तरीके से दोषी करार व्यक्ति की सजा कम की
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में 7 साल की बच्ची के साथ सोडोमी, रेप और हत्या के दोषी एक व्यक्ति को दी गई मौत की सजा को कम कर दिया। कोर्ट ने कहा, यह गलत तरीके से दोषी ठहराने का मामला प्रतीत होता है, जिसमें वास्तविक अपराधियों ने पुलिस की मदद से अपराध को वर्तमान दोषी पर स्थानांतरित कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी मौजूदा मामले को पेश किया गया था, हालांकि उन्होंने दोषसिद्धि को छेड़ा नहीं और और मामले में सजा के फैसले पर विचार करने के लिए हाईकोर्ट को वापस भेज दिया।
जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस अनूप कुमार ढांड की खंडपीठ ने कहा,
"ऐसा प्रतीत होता है कि दो लोगों ने सात साल की बच्ची के साथ बलात्कार और सोडोमी का जघन्य कृत्य किया और उसकी हत्या कर दी। उसके बाद, पुलिस की मदद से अपराध को वर्तमान अपीलकर्ता के ऊपर स्थानांतरित कर दिया ... हम इस तथ्य से वाकिफ हैं कि अभियुक्त की दोषसिद्धि को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है... चूंकि हमें केवल धारा 302 आईपीसी के तहत अपराध के लिए सजा के सवाल पर अपने फैसले को सीमित करने के लिए निर्देशित किया गया है, हम भारी मन से और इस उम्मीद के साथ कि न्याय होगा आरोपी को, जिसे दो अन्य व्यक्तियों द्वारा किए गए अपराध के लिए मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई है, उसे हम आजीवन कारावास की सजा में बदलते हैं।"
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन का पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। ट्रायल कोर्ट ने डीएनए रिपोर्ट पर भरोसा किया था, लेकिन उसके अवलोकन से पता चलता है कि मृतक की लेगिंग से दो पुरुष डीएनए प्रोफाइल प्राप्त किए गए थे और दो पुरुष डीएनए प्रोफाइल आरोपी के अंडरवियर से थे। वर्तमान अपीलकर्ता के रक्त के नमूने से प्राप्त डीएनए वैजिनल स्वैब से प्राप्त डीएनए और मृतक की लेगिंग से प्राप्त दो पुरुष डीएनए प्रोफाइल से मेल नहीं खाता।
यह आगे नोट किया गया कि जब आरोपी का बयान सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दर्ज किया गया था, तब डीएनए रिपोर्ट भी पेश नहीं की गई थी। उन्हें डीएनए रिपोर्ट की व्याख्या करने का कोई अवसर भी नहीं दिया गया। इसके अलावा, मृतक की लेगिंग से प्राप्त दो पुरुष डीएनए प्रोफाइल आरोपी से लिए गए रक्त के नमूने के डीएनए प्रोफाइल से मेल नहीं खाते, और इस प्रकार, उपरोक्त से केवल यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दो अपराधी, जिन्होंने वास्तव में अपराध किया, उन्हें पुलिस ने बुक नहीं नहीं किया।
उपरोक्त परिस्थितियों में, हाईकोर्ट ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलना उचित समझा और संबंधित पुलिस अधीक्षक को मामले को फिर से खोलने और उन दो आरोपियों को बुक करने के लिए नए सिरे से जांच करने का निर्देश दिया, जिनके डीएनए मृतक की लेगिंग से प्राप्त हुए थे।
अदालत ने उन लोगों के खिलाफ उचित कार्रवाई शुरू करने का भी आदेश दिया, जिन्होंने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया था, जो कथित तौर पर पिछड़े वर्ग का एक बच्चा था, जिसके पास उसके मामले का बचाव करने का कोई साधन नहीं था। इसके अलावा, अदालत ने पुलिस अधीक्षक को दो महीने के भीतर की गई कार्रवाई की एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि स्कूल रिकॉर्ड के मुताबिक आरोपी की उम्र महज 17 साल 1 महीने थी। हालांकि, कोर्ट ने मेडिकल जांच करने वाले डॉक्टर के बयान पर भरोसा करते हुए अपीलकर्ता की उम्र 19 से 21 साल के बीच तय की।
"डॉक्टर रेडियोलॉजिस्ट नहीं थे और उन्होंने एक्स-रे रिपोर्ट के आधार पर राय दी कि आरोपी की उम्र 19 से 21 साल के बीच थी। किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार, स्कूल में पहली बार उपस्थित होने की उम्र पर विचार किया जाना चाहिए। हालांकि, डॉक्टर के बयान को देखते हुए भी आरोपी बहुत छोटा लड़का था।"
कोर्ट ने आगे कहा,
"पुलिस और जांच अधिकारी की भूमिका भी संदिग्ध है क्योंकि वर्तमान आरोपी से बरामद अंडरवियर में किसी अन्य पुरुष का डीएनए था और वह डीएनए मृतक के डीएनए से मेल खाता था, जो दिखाता है कि एक अपराधी को बचाने के लिए वर्तमान आरोपी के पास से किसी और का अंडरवियर बरामद किया गया है।"
कोर्ट ने नोट किया कि पुलिस और अभियोजन को अपना काम सही तरीके से करना चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक अति उत्साही अभियोजन के परिणामस्वरूप एक निर्दोष व्यक्ति को अपराध का दोषी नहीं ठहराया जाए, अन्यथा लोगों में न्याय वितरण प्रणाली के लिए विश्वास और सम्मान नहीं होगा।
अंत में, कोर्ट ने पाया कि उसे आरोपी के खिलाफ कोई गंभीर परिस्थिति नहीं मिलती है, बल्कि सभी कम करने वाली परिस्थितियां आरोपी के पक्ष में हैं और सजा कम करने का निर्देश पारित किया।
केस टाइटल: राजस्थान राज्य, पीपी के जरिए बनाम कोमल लोढ़ा
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (राज) 164