"उसके पति ने देश के लिए अपनी जान दी" : राजस्थान हाईकोर्ट ने युद्ध में शहीद हुए सैनिक की विधवा को भूमि आवंटन की याचिका पर फैसला करने को कहा
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह संबंधित योजना के तहत 1991 में आवंटित भूमि के स्वामित्व के दस्तावेज की मांग करने वाली युद्ध में शहीद हुए सैनिक की विधवा की याचिका पर फैसला करे।
न्यायमूर्ति दिनेश मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता एक शहीद की विधवा है। उस शहीद ने देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस प्रकार, राज्य कम से कम यह कर सकता है कि या तो आवंटित भूमि का कब्जा सौंप दिया जाए या वैकल्पिक भूमि तलाश की जाए।
पीठ ने याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर जिला कलेक्टर, पाली और उप-मंडल अधिकारी, बाली के समक्ष प्रासंगिक दस्तावेजों और अदालत के फैसले की प्रति के साथ एक अभ्यावेदन दाखिल करने का निर्देश दिया।
आदेश में कहा गया है,
"वर्तमान रिट याचिका याचिकाकर्ता को संबंधित दस्तावेजों के साथ जिला कलेक्टर, पाली और उप-मंडल अधिकारी, बाली के समक्ष एक अभ्यावेदन और आदेश की एक प्रमाणित प्रति के साथ दो सप्ताह की अवधि के भीतर तुरंत दायर करने के निर्देश के साथ निपटाई जाती है।
यदि अभ्यावेदन को इस प्रकार संबोधित किया जाता है, तो सक्षम प्राधिकारी, कानून के अनुसार, यथाशीघ्र, अधिमानतः अभ्यावेदन की प्राप्ति से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर आवश्यक कदम उठाएंगे।"
याचिकाकर्ता ने यह शिकायत करते हुए याचिका दायर की थी कि इस तथ्य के बावजूद कि उसे संबंधित योजना के तहत 31.03.1991 को युद्ध में शहीद हुए सैनिक की विधवा होने के कारण भूमि आवंटित की गई है, प्रतिवादी-राज्य के अधिकारियों ने भूमि का स्वामित्व और उसका कब्जा और दस्तावेज नहीं दिए हैं।
इस संबंध में अदालत ने आदेश दिया कि सक्षम प्राधिकारी कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करेंगे।
अदालत ने कहा कि यह कार्रवाई जितनी जल्दी हो सके, अभ्यावेदन प्राप्त होने के आठ सप्ताह की अवधि के भीतर की जाएगी।
अदालत ने कहा कि यदि सक्षम प्राधिकारी कब्जा नहीं सौंपने का फैसला करते हैं तो राज्य कम से कम याचिकाकर्ता को युद्ध में शहीद हुए सैनिक की विधवा होने के नाते उसके लिए किसी वैकल्पिक भूमि की तलाश करेगा।
केस शीर्षक: लहर कंवर बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।
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