‘लोक अभियोजक की ओपिनियन जांच अधिकारी द्वारा एकत्रित सामग्री पर आधारित होनी चाहिए’: कलकत्ता हाईकोर्ट ने पीपी को साइबर अपराध मामले में जमानत पर आपत्ति नहीं करने के लिए फटकार लगाई

Update: 2023-04-05 05:00 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक सरकारी वकील के आचरण के खिलाफ अपनी नाराजगी दर्ज की, जिसने जमानत अर्जी पर कोई ऑब्जेक्शन नहीं उठाया जबकि ट्रायल कोर्ट के सामने केस डायरी पेश भी नहीं किया गया था।

जस्टिस तीर्थंकर घोष की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,

“मैं अदालत के सामने केस डायरी पेश किए बिना लोक अभियोजक के अनापत्ति जताने के आचरण को स्वीकार करने में असमर्थ हूं। सरकारी वकील राज्य के प्रतिनिधि हैं, उनकी अपनी राय हो सकती है, लेकिन ऐसी राय जांच अधिकारी द्वारा एकत्र की गई सामग्री के आधार पर होनी चाहिए और जांच अधिकारी को मूल्यांकन के लिए अदालत के समक्ष पेश की जाने वाली सामग्री के बारे में भी पता होना चाहिए। आरोपी की जमानत अर्जी पर विचार किया जा रहा है। किसी भी सरकारी वकील को जांच अधिकारी को अंधेरे में नहीं रखना चाहिए और जब जमानत अर्जी पेश की जा रही हो तो कोई आपत्ति नहीं जतानी चाहिए।”

याचिकाकर्ता-शिकायतकर्ता ने मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (सीजेएम), कलकत्ता द्वारा साइबर पुलिस स्टेशन मामले के संबंध में आरोपी व्यक्तियों को जमानत देने के खिलाफ उच्च न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया।

सीजेएम ने आरोपी व्यक्तियों को दो आधारों पर जमानत दी थी,

- सरकारी वकील ने कोई आपत्ति नहीं जताई।

- आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए के तहत आरोपी को नोटिस दिया गया था, जिसका पालन किया गया।

राज्य की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को सूचित किया कि सुनवाई की तारीख पर केस डायरी सीजेएम के समक्ष पेश नहीं की गई थी।

अदालत ने कहा कि एक सामान्य सूत्र के रूप में सभी मामलों में जांच एजेंसी द्वारा एकत्र की गई सामग्री को ध्यान में रखे बिना, सभी अभियुक्तों को स्थायी जमानत देना अदालत के लिए विवेकपूर्ण नहीं होगा।

आगे कहा,

"मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, कलकत्ता अब से, यदि आवश्यक हो, अभियुक्तों के अदालत में आत्मसमर्पण करने पर उनके आचरण का पता लगाने के उद्देश्य से अंतरिम जमानत प्रदान करेगा।“

यह देखते हुए कि मामले की जांच पहले ही पूरी हो चुकी है और आरोपी को और हिरासत में लेने की आवश्यकता नहीं है, अदालत ने कहा कि बदली हुई परिस्थितियों में की गई जमानत रद्द करने की प्रार्थना में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।

केस टाइटल: X बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

कोरम: जस्टिस तीर्थंकर घोष

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