घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति या परिवार के पुरुष सदस्य को सुरक्षा उपलब्ध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी के खिलाफ पति की ओर से दायर मामले पर रोक लगाई

Update: 2023-02-01 14:42 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा, घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 2 (ए) के तहत महिलाओं के लिए उपलब्ध सुरक्षा पति या परिवार के पुरुष सदस्य के लिए उपलब्ध नहीं है। धारा 2 (ए) एक "पीड़ित व्यक्ति" को किसी भी महिला के रूप में परिभाषित करती है, जिसका 'प्रतिवादी' के साथ घरेलू संबंध हो, या रही हो और घरेलू हिंसा के किसी कृत्य का आरोप लगाती हो।

जस्टिस जसमीत सिंह घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत पति द्वारा शुरू की गई कार्यवाही के खिलाफ एक पत्नी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।

पत्नी का मामला यह था कि अधिनियम की योजना और उद्देश्य के अनुसार, अधिनियम के तहत "पीड़ित व्यक्ति" को सुरक्षा प्रदान की जाती है, जो धारा 2 (ए) के तहत केवल एक "महिला" तक सीमित है और इस प्रकार, पति की शिकायत पूर्व दृष्टया सुनवाई योग्य नहीं है।

अदालत ने याचिका में नोटिस जारी करते हुए कहा, "प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि धारा 2 (ए) के मद्देनजर, अधिनियम की सुरक्षा परिवार के एक पुरुष सदस्य और विशेष रूप से पति के लिए उपलब्ध नहीं है।"

अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 14 फरवरी तक कड़कड़डूमा अदालतों के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित पति द्वारा दायर शिकायत मामले की कार्यवाही पर भी रोक लगा दी।

एडवोकेट आशिमा मंडला की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत भी केवल एक महिला ही पीड़ित व्यक्ति है, जबकि आरोपी या अपराधी पुरुष या महिला हो सकता है।

दलील में कहा गया,

".... घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 2 (ए) के तहत पीड़ित की परिभाषा विधायिका द्वारा अपरिवर्तित बनी हुई है और इसे न्यायिक हस्तक्षेप द्वारा विस्तारित नहीं किया गया है ताकि पुरुष व्यक्तियों घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 में संरक्षण के उद्देश्यों के लिए पीड़ित पक्ष के रूप में शामिल किया जा सके।"

यह याचिका हीरल पी हरसोरा बनाम कुसुम नरोत्तमदास हरसोरा में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करती है, जिसमें कहा गया है कि इसने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2 (क्यू) के दायरे का विस्तार किया है, जो 'प्रतिवादी' या अपराधी को पुरुष व्यक्तियों तक सीमित होने के बजाय लिंग तटस्थ के रूप में परिभाषित करता है।

दलील में कहा गया है कि धारा 2 (ए) के तहत "पीड़ित व्यक्ति" की परिभाषा, जो अधिनियम के तहत एक महिला तक सीमित है, उसे सुप्रीम कोर्ट ने भी परिवर्तित नहीं किया है।"

केस टाइटल: एनटी बनाम वीटी

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