बाल विवाह निषेध कानून धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करताः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि कि भले ही मुस्लिम पर्सनल लॉ यौवन की उम्र में शादी करने की अनुमति देता है, लेकिन बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 एक धर्मनिरपेक्ष कानून है और धर्म के आधार पर ऐसा कोई भेद नहीं करता है।
कानून में महिला के लिए न्यूनतम विवाह योग्य उम्र 18 वर्ष है और पुरुष के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
घर से भागने वाले एक जोड़े की प्रोटेक्शन याचिका को अनुमति देते हुए न्यायमूर्ति अमोल रतन सिंह की एकल पीठ ने कहा कि यदि पक्षकारों द्वारा पेश आयु प्रमाण पत्र का सत्यापन करने के बाद लड़की की आयु 18 वर्ष से कम पाई जाती है तो बाल विवाह अधिनियम के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
पीठ ने कहा कि,''हालांकि, मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, यौवन की आयु प्राप्त करने पर पक्षकारों के बीच एक वैध विवाह अनुबंधित किया जा सकता है; हालांकि, इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, धर्म के आधार इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत दंडनीय किसी अपराध के आयोग के संबंध में कोई भेदभाव नहीं करता है।''
इस मामले में जसप्रीत नामक लड़की ने अजीम खान नामक एक मुस्लिम लड़के से शादी की थी। लड़की की उम्र 18 वर्ष से अधिक बताई गई है और यह भी दावा किया गया था भले ही वह नाबालिग हो, मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार विवाह योग्य आयु की है।
हरदेव सिंह बनाम हरप्रीत कौर 2020 मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के संदर्भ में संरक्षण याचिका को अनुमति दे दी गई है। उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि यदि कोई लड़की/ महिला बाल विवाह अधिनियम (18 वर्ष से अधिक) के तहत विवाह योग्य आयु से ऊपर है, तो उस पर अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराध दंडनीय नहीं बनेगा।
चूंकि पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत प्रमाण पत्र में लड़की की उम्र ''18 साल से ऊपर'' बताई गई है, इसलिए अदालत ने कहा कि कानून के अनुसार याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की विधिवत रक्षा की जाएगी, भले ही लड़का बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के संदर्भ में कानूनी तौर पर विवाह योग्य उम्र से कम है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि,
''यदि प्रमाण पत्र,अनुलग्रक पी -2 के सत्यापन पर, याचिकाकर्ता नंबर 1 की आयु 18 वर्ष से कम पाई जाती है तो यह आदेश एक्ट 2006 के प्रावधानों के तहत कार्यवाही को प्रतिबंधित नहीं करेगा, क्योंकि एक्ट के तहत दंडनीय सभी अपराध धारा 15 के संदर्भ में संज्ञेय अपराध हैं।''
भारतीय कानून और पर्सनल कानूनों के बीच के विरोधाभास को पूरे देश के न्यायालयों ने विभिन्न निर्णयों के माध्यम से बार-बार उजागर किया गया है।
गुजरात हाईकोर्ट ने दिसंबर 2014 में, एक नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी को उचित ठहराते हुए कहा था कि ''मुस्लिम पर्सनल कानून के अनुसार, लड़की जितनी जल्दी यौवन प्राप्त करती है या 15 साल पूरे करती है, जो भी पहले हो,वह अपने माता-पिता की सहमति के बिना शादी कर सकती है।''
अगले साल सितंबर में, इसी हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो विशेष रूप से बाल विवाह की समस्या से निपटता है और यह मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदू विवाह अधिनियम या इस मामले के लिए किसी भी पर्सनल लाॅ के प्रावधानों को ओवर्राइड या निरस्त करेगा।
2017 में, फिर से गुजरात हाईकोर्ट ने उस 21 वर्षीय व्यक्ति को संरक्षण दिया, जिसने एक नाबालिग लड़की को भगाकर मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत उससे शादी कर ली थी।
हाल ही में, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने उस 36 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति की सुरक्षा याचिका को अनुमति दे दी थी, जिसने 17 साल की मुस्लिम लड़की से शादी कर ली थी। कोर्ट ने पाया था कि दोनों पक्ष मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विवाह योग्य उम्र के हैं।
केस का शीर्षकः जसप्रीत कौर व अन्य बनाम पंजाब राज्य व अन्य
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