ऑनलाइन क्लास की सुविधा देने वाले निजी स्कूल ट्यूशन फ़ीस वसूल सकते हैं : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सरकार के आदेश को सही ठहराया; सुप्रीम कोर्ट से विशेष अनुमति याचिका वापस ली
प्रिंसिपल ऑफ प्रोग्रेसिव स्कूल एसोसिएशन ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी विशेष अनुमति याचिका वापस ले ली। इस आदेश में कोरोना महामारी के कारण निजी स्कूलों को ट्यूशन फ़ीस वसूलने से रोक दिया था।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 3 जुलाई 2020 को अपने आदेश में ऑनलाइन क्लास उपलब्ध कराने वाले निजी स्कूलों को ट्यूशन फ़ीस वसूलने की अनुमति देने के सरकारी आदेश में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से मना कर दिया था।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसए बोबडे, आर सुभाष रेड्डी और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा था, "यह देखते हुए कि हाईकोर्ट ने इस मामले का निपटारा कर दिया है, इस बारे में दायर विशेष अनुमति याचिका को वापस लेने की अनुमति दी जाती है।"
पृष्ठभूमि
उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और जस्टिस आरसी खुल्बे ने 12 मई को अपने आदेश में कहा था कि सिर्फ़ ऐसे छात्र निजी स्कूलों के ऑनलाइन क्लास के लिए फ़ीस देंगे जो इससे लाभ उठा रहे हैं, अगर उन्हें ऐसा करने की इच्छा है तो। ऐसे बच्चे जो ऑनलाइन क्लास की सुविधा नहीं उठा रहे हैं, उन्हें फ़ीस चुकाने को नहीं कहा जा सकता।
इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। कहा गया कि फ़ीस वसूली को ऐच्छिक बनाने से संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत याचिककर्ता स्कूलों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है; अगर फ़ीस नहीं दिया गया तो स्कूल अपने शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पाएंगे; सभी छात्र ऑनलाइन क्लास का लाभ उठा रहे हैं लेकिन सिर्फ़ 10 प्रतिशत छात्र ही फ़ीस दे रहे हैं।
इस मामले की सुनवाई के लंबित रहने के दौरान उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 22 जून को एक प्रशासनिक आदेश जारी किया कि जो निजी स्कूल ऑनलाइन क्लास चला रहे हैं, उन्हें लॉकडाउन की अवधि के लिए फ़ीस वसूलने की अनुमति होगी।
स्कूलों से यह भी कहा गया कि ऐसे अभिभावक जो फ़ीस नहीं दे सकते उन्हें ट्यूशन फ़ीस वसूलने के लिए वे समय सीमा में ढील देंगे।
निजी स्कूलों को ऑनलाइन क्लासेस के लिए फ़ीस वसूलने की भी अनुमति दी पर उन्हें 2020-21 अकादमिक वर्ष में फ़ीस नहीं बढ़ाने को कहा गया।
इस आदेश को चुनौती दी गई और जिस पीठ ने फ़ीस वसूलने पर रोक लगाई थी, उसी पीठ ने इस बार कहा कि वह सरकारी आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
अदालत ने कहा,
"हमें सरकारी आदेश में हस्तक्षेप का कोई कारण नज़र नहीं आता लेकिन सरकारी आदेश के लागू रहने के दौरान राज्य सरकार हर ज़िले में मुख्य शिक्षा अधिकारी की नियुक्ति करेगी जो नोडल ऑफ़िसर का काम करेगा और जो सरकारी आदेश के उल्लंघन की स्थिति में उन अभिभावकों की शिकायतों का निपटारा करेगा, जिन्हें ट्यूशन फ़ीस देने के लिए बाध्य किया जा रहा है, जबकि उसके बच्चे ऑनलाइन क्लास का लाभ नहीं उठा रहे हैं। यह भी कहा गया कि ऐसी स्थिति में स्कूलों का पक्ष भी सुना जाना चाहिए।"
चूंकि अब ऑनलाइन क्लास मुहैया कराने वाले निजी स्कूलों को फ़ीस वसूलने की इजाज़त दे दी गई है, विशेष अनुमति याचिका सुप्रीम कोर्ट से वापस ले ली गई है।
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