निजी स्कूल फीस: दिल्ली हाईकोर्ट ने फीस वसूलने पर प्रतिबंध हटाने संबंधी एकल पीठ के आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई की

Update: 2021-07-15 04:56 GMT

दिल्ली सरकार ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी कि निजी स्कूलों को लॉकडाउन में छात्रों से वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क वसूलने की अनुमति देते हुए एकल न्यायाधीश पूरी तरह से निषिद्ध क्षेत्र में चले गये थे।

कोर्ट दिल्ली सरकार और छात्रों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें एकल न्यायाधीश की पीठ के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसने दिल्ली सरकार द्वारा 18 अप्रैल और 28 अगस्त 2020 को जारी किए गए दो आदेशों को रद्द कर दिया था, जिसमें उसने निजी स्कूलों को COVID-19 लॉकडाउन के बीच छात्रों से वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क लेने से रोक दिया था।

अपीलकर्ता दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ को अवगत कराया कि इस मामले से निपटने के दौरान एकल न्यायाधीश के पास हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेशों की अनदेखी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।

एकल न्यायाधीश द्वारा 'इंडियन स्कूल, जोधपुर और अन्य बनाम राजस्थान सरकार' के फैसले पर किये गये भरोसे पर सवाल उठाते हुए विकास सिंह ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में स्थिति दिल्ली की स्थिति से अलग थी।

उन्होंने दलील दी,

"वहां स्थिति यह थी कि स्कूल फिर से खुल रहे थे। अधिनियम के तहत 3 साल के लिए व्यवस्था तय की गयी थी। जिस आदेश को उन्होंने उचित ठहराया था वह आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत था।"

यह कहते हुए कि दिल्ली के मामले में स्कूल फिर से नहीं खोले गए थे, विकास सिंह ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियां कानून के अपने सवाल तक सीमित थीं कि राजस्थान में स्कूलों को फिर से खोलने के संबंध में क्या हो रहा था और क्या राजस्थान सरकार आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत पारित एक आदेश द्वारा शुल्क में परिवर्तन कर सकता है जो राज्य के कानून के आधार पर तय किया गया है।

विकास सिंह ने कहा,

"जब सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि वह राजस्थान की स्थिति के लिए अपनी चुनौती को सीमित कर रहा है, जहां स्कूल फिर से खुल रहे थे, तो इस फैसले को लागू करने का कोई सवाल ही नहीं था।"

सिंह ने आगे कहा:

"एकल न्यायाधीश एक ऐसे क्षेत्र में चले गये जो पूरी तरह से प्रतिबंधित है। वह ये सभी टिप्पणियां कहां से प्राप्त कर रहे हैं? महामारी के समय में किराए, यात्रा व्यय आदि का कोई सवाल ही नहीं होता है।"

सिंह द्वारा दिल्ली सरकार के लिए अपनी दलीलें समाप्त करने के बाद, अधिवक्ता खगेश बी झा ने जस्टिस फॉर ऑल एनजीओ सहित अन्य अपीलकर्ताओं की ओर से अपनी दलीलें शुरू कीं।

झा की दलील का मुख्य जोर इस बात पर था कि एकल न्यायाधीश द्वारा लिया गया मंतव्य सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठों द्वारा कई फैसलों में की गई टिप्पणियों के विपरीत था।

झा ने दलील दी,

"मैं एकल न्यायाधीश के आदेश से दिखाऊंगा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कुछ शुल्क पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं। इसमें पूंजीगत शुल्क व्यय शामिल है। क्या एकल न्यायाधीश ऐसा कर सकता है?"

उक्त दलीलों पर सुनवाई करते हुए पीठ ने अपीलकर्ताओं की ओर से दलीलें जारी रखने के लिए सुनवाई गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दी।

पिछली सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति रेखा पल्ली और न्यायमूर्ति अमित बंसल की अवकाशकालीन पीठ ने उक्त फैसले पर रोक लगाने के अनुरोध संबंधी याचिका को खारिज करते हुए अपीलों में नोटिस जारी किया था।

कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से इनकार करते हुए कहा था,

"आखिरकार, शहर के इन गैर-सहायता प्राप्त, निजी स्कूलों के प्रबंधन, जिन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (जीएनसीटीडी) सरकार से कोई सहायता नहीं मिलती है और जो पूरी तरह से उनके द्वारा एकत्र किए गए शुल्क पर निर्भर हैं, उन्हें भी अपने संचालन और परिसर को संरक्षित रखने तथा ऑनलाइन शिक्षा जारी रखने के लिए धन की आवश्यकता होगी।"

न्यायमूर्ति जयंत नाथ की एकल न्यायाधीश पीठ द्वारा पारित उस आदेश के खिलाफ कई याचिकाओं दायर की गयी थी, जिसमें पीठ ने इस प्रकार कहा था:

"यह कार्य उक्त स्कूलों के लिए प्रतिकूल हैं और उनके कामकाज में एक अनुचित प्रतिबंध का कारण बनेंगे। उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों में, स्पष्ट रूप से प्रतिवादी द्वारा जारी किए गए 18.04.2020 और 28.08.2020 के आदेश डीएसई अधिनियम और नियमों के तहत निर्धारित प्रतिवादी की शक्तियों का उल्लंघन करते हैं जिसके तहत उसने याचिकाकर्ता/वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क संग्रहण निलंबित करने का आदेश दिया था और यह आदेश उस सीमा तक आदेश रद्द किया जाता है।"

अदालत ने कहा कि शिक्षा विभाग के पास ऐसे गैर-सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों द्वारा केवल शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकने के उद्देश्य से फीस तय करने और एकत्र करने की शक्ति है। यह देखते हुए कि संबंधित आदेशों में यह तथ्य दर्ज नहीं किया गया था कि वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क का संग्रहण निजी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों द्वारा मुनाफाखोरी या कैपिटेशन फीस के संग्रह के समान है, न्यायालय ने इस प्रकार कहा :

"लगाए गए आदेशों का अवलोकन यह नहीं दर्शाता है कि निजी गैर-मान्यता प्राप्त मान्यता प्राप्त स्कूलों के पूरे निकाय ने कथित तथ्यों और परिस्थितियों में वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क जमा करने की मांग करके मुनाफाखोरी या कैपिटेशन फीस वसूल की है। जैसा कि उल्लेख किया गया है, निजी मान्यता प्राप्त गैर-सहायता प्राप्त स्कूल स्पष्ट रूप से केवल अपने वेतन, स्थापना और स्कूलों पर अन्य सभी खर्चों की पूर्ति के लिए एकत्र की गई फीस पर निर्भर हैं। कोई भी नियम या आदेश जो सामान्य और आमतौर पर पहले की भांति शुल्क एकत्र करने के स्कूलों के अधिकार को प्रतिबंधित करता है या अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने की मांग करता है, जैसा कि विवादित आदेश में निर्देश दिया गया है, गंभीर वित्तीय पूर्वाग्रह और स्कूलों को नुकसान पहुंचाने वाला है।"

इसके अलावा, कोर्ट ने कहा:

"तथ्यों और परिस्थितियों में प्रतिवादी को वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क के संग्रह को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने की कोई शक्ति नहीं है, जैसा कि आदेश में कहा गया है। संबंधित आदेश उक्त स्कूलों के लिए पूर्वाग्रह से ग्रसित है और उनके कामकाज में एक अनुचित प्रतिबंध का कारण बनेंगे। उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों में, स्पष्ट रूप से प्रतिवादी द्वारा जारी किए गए 18.04.2020 और 28.08.2020 के आदेश डीएसई अधिनियम और नियमों के तहत निर्धारित प्रतिवादी की शक्तियों का उल्लंघन करते हैं जिसके तहत उसने याचिकाकर्ता/वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क संग्रहण निलंबित करने का आदेश दिया था और यह आदेश उस सीमा तक आदेश रद्द किया जाता है।"

याचिका का निपटारा करते हुए कोर्ट ने कहा कि:

"पैरा (i) से (vii) में दिए गए उपरोक्त निर्देश यथोचित परिवर्तन सहित याचिकाकर्ता स्कूलों पर लागू होंगे। हालांकि, खंड (ii) को संशोधित करना होगा। संबंधित छात्रों द्वारा देय राशि का भुगतान 10.06.2021 से छह मासिक किश्तों में किया जाएगा।"

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