उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट के तहत शादी करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को नोटिस देना अनिवार्य हैः हाईकोर्ट ने सख्त अनुपालन का निर्देश दिया

‘‘हमारा इरादा संबंधित व्यक्तियों को मामले में अवैधता और कानूनी निहितार्थों के बारे में सूचित करना है, ताकि संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को एक पूर्व सूचना दी जाए, जो कानून का जनादेश है। सभी समान मामलों में, जो हमारे सामने आ रहे हैं, हमने पाया है कि इस तरह की सूचना संबंधित पुजारी द्वारा उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2018 की धारा 8 की उप-धारा (2) के तहत नहीं दी गई है।’’

Update: 2021-01-02 05:00 GMT
उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट के तहत शादी करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को नोटिस देना अनिवार्य हैः हाईकोर्ट ने सख्त अनुपालन का निर्देश दिया

उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2018 के तहत दो व्यस्कों द्वारा सहमति से धर्मांतरण करने के एक मामले में, उत्तराखंड हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ के न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति नारायण सिंह धानिक ने हरिद्वार के पुलिस अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश जारी किया है कि वह याचिकाकर्ता के परिवार से उनको सुरक्षा प्रदान करें और इस मामले में मामले में विस्तृत जांच भी करें।

मामले के तथ्य यह हैं कि याचिकाकर्ता का धर्म हिंदू है और उसने एक मुस्लिम धर्म के व्यक्ति से 21 दिसम्बर 2020 को शादी कर ली थी और उसके बाद मुस्लिम धर्म को अपना लिया था। हालांकि, ऐसा करने से पहले यह कपल संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को एक महीने का अग्रिम नोटिस देने में विफल रहा है, जो कि एक्ट की धारा 8 के तहत अनिवार्य आवश्यकता है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने इस मामले में याचिकाकर्ता के पिता, भाई और पड़ोसी से पुलिस सुरक्षा दिलाए जाने की राहत मांगी।

मामले में प्रतिवादियों द्वारा उठाई गई प्रमुख दलीलें इस प्रकार हैंः

1- यह कपल शादी करने की इच्छा व्यक्त करते हुए एक्ट की धारा 8 के तहत संबंधित डीएम को दिए जाने वाले अग्रिम नोटिस को देने में विफल रहा,जो एक अनिवार्य आवश्यकता है।

2-धर्मांतरण करने वाला व्यक्ति डीएम को एक महीने की अग्रिम सूचना देने में विफल रहा है, जो कि एक्ट की धारा 8 (2) के तहत अनिवार्य आवश्यकता है।

3-उपर्युक्त दस्तावेजों को प्रस्तुत नहीं करने के कारण, यह विवाह उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2018 का उल्लंघन कर रहा है।

पीठ ने हरिद्वार के पुलिस अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश जारी करते हुए इस तथ्य पर ध्यान दिया कि इसी तरह के मामले नियमित रूप से न्यायालय के सामने आ रहे हैं, विशेषकर जहां कपल डीएम को अग्रिम नोटिस प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं जो अधिनियम की अनिवार्य आवश्यकता है।

इस पर, खंडपीठ ने आदेश दिया कि ''हमारा इरादा संबंधित व्यक्तियों को मामले में अवैधता और कानूनी निहितार्थों के बारे में सूचित करना है, ताकि संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को एक पूर्व सूचना दी जाए, जो कानून का जनादेश है। सभी समान मामलों में, जो हमारे सामने आ रहे हैं, हमने पाया है कि इस तरह की सूचना संबंधित पुजारी द्वारा उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2018 की धारा 8 की उप-धारा (2) के तहत नहीं दी गई है। हम चाहेंगे कि जिलाधिकारी, हरिद्वार इन सभी पहलुओं की जांच करें।''

पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के पहलू पर, पीठ ने पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया है कि वे इस कपल को न्याय और जीवन व स्वतंत्रता के प्रति उचित आशंका को देखते हुए पूर्ण सुरक्षा प्रदान करें क्योंकि उनको निजी प्रतिवादियों से खतरा है। इसके अलावा, पीठ ने एसपी को 24 घंटे के भीतर अदालत के समक्ष तत्काल रिपोर्ट दर्ज करने का निर्देश दिया है और साथ ही राज्य के वकील को कहा है कि वह आदेश के बारे में एसपी को सूचित करने के बाद कोर्ट के समक्ष रिपोर्ट दर्ज करें।

 केस का नामः ख़ुशबू बनाम उत्तराखंड राज्य डब्ल्यू.पी. (सीआरएल.) 2226/2020

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News