अतिरिक्त साक्ष्य लेने की शक्ति- "सीआरपीसी की धारा 391 सीपीसी के ऑर्डर XLI नियम 27 के समान; अपीलीय कोर्ट को शक्ति का संयम से उपयोग करना चाहिए": इलाहाबाद हाईकोर्ट
यह रेखांकित करते हुए कि आपराधिक संहिता की धारा 391 के तहत प्रदत्त शक्तियां नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश XLI नियम 27 के समान है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अपीलीय अदालत द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य लेने की ऐसी शक्तियों का इस्तेमाल संयम से किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने जोर देकर कहा कि इस्तेमाल की जाने वाली इस प्रकार की शक्तियां एक विवेकाधीन प्रकृति की होती हैं और इसका उपयोग साक्ष्य की खामियों को पूरा करने और कमियों को पाटने के लिए नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट के समक्ष मामला
कोर्ट अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, हाथरस द्वारा पारित आदेश को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर अर्जी पर विचार कर रहा था, जिसने कुछ व्यक्तियों को गवाह के तौर पर तलब करने के लिए सीआरपीसी की धारा 391 के तहत अदालत के समक्ष दायर अर्जी खर्जी कर दी थी।
संक्षेप में तथ्य
आवेदक को एक आपराधिक मुकदमे के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 419 और 420 के तहत अतिरिक्त सिविल जज (जूनियर डिवीजन)/जेएम, हाथरस द्वारा पारित एक आदेश के तहत दोषी ठहराया गया था और सजा सुनाई गई थी।
उक्त आदेश से व्यथित, आवेदक ने एक अपील दायर की और अपील के लंबित रहने के दौरान, अपीलीय अदालत द्वारा कुछ व्यक्तियों को गवाह के रूप में बुलाने और अतिरिक्त साक्ष्य रिकॉर्ड पर लाने के लिए सीआरपीसी की धारा 391 के तहत एक अर्जी दायर की थी।
सीआरपीसी की धारा 391 के तहत दायर आवेदन को खारिज करते हुए, अपीलीय अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि अपील पांच साल से अधिक समय बीत जाने के बाद दायर की गई थी, अपील पर बहस नहीं की जा रही थी और गवाहों को बुलाने की मांग करने वाला आवेदन मुकदमे को अटकाने की दृष्टि से दायर किया गया था।
यह भी कहा गया कि आवेदक ने सुनवाई के दौरान उपरोक्त व्यक्तियों को गवाह के रूप में बुलाने के लिए कोई आवेदन नहीं किया था और अपील के स्तर पर उन्हें बुलाने का कोई औचित्य नहीं था।
न्यायालय की टिप्पणियां
शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि संहिता की धारा 391 अदालत को अपीलीय स्तर पर अतिरिक्त सबूत स्वीकार करने का अधिकार देती है, अगर उसे लगता है कि इस तरह के अतिरिक्त सबूत आवश्यक हैं।
इस संबंध में, कोर्ट ने 'रामभाऊ एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र सरकार (2001) 4 एससीसी 759' के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया और कहा कि अपवाद की प्रकृति में होने के कारण संहिता की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य प्राप्त करने की अपीलीय अदालत की शक्ति को हमेशा सावधानी और समझदारी के साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए, ताकि न्याय का लक्ष्य पूरा किया जा सके।
कोर्ट ने 'जाहिरा हबीबुल्ला एच. शेख एवं अन्य बनाम गुजरात सरकार एवं अन्य (2004) 4 एससीसी 158' का भी उल्लेख किया, जिसमें यह कहा गया था कि हालांकि इस धारा के तहत एक व्यापक विवेकाधिकार प्रदान किया गया है, लेकिन किसी कमी को पाटने के लिए शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है और अपीलीय अदालत को अतिरिक्त सबूत लेने का निर्देश देते समय इसके कारणों को रिकॉर्ड में लाना आवश्यक था।
कोर्ट ने अभियुक्त की याचिका खारिज करते हुए कहा,
"इस धारा के तहत शक्तियों को नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XLI नियम 27 के तहत प्रदत्त शक्तियों समान रखा गया है और इसके मद्देनजर अधिकार के रूप में अपीलीय स्तर पर अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए जा सकते हैं और अपीलीय न्यायालय द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली शक्तियां विवेकाधिकार, ठोस न्यायिक सिद्धांतों पर आधारित एवं न्याय के हित में होना चाहिए। विवेक का प्रयोग उपयुक्त मामलों में किया जाना होता है, न कि साक्ष्य की खामियों को पूरा करने और कमियों को पाटने के लिए। अतिरिक्त साक्ष्य स्वीकार करने के लिए अपीलीय अदालत द्वारा कारणों को रिकॉर्ड में लेना अनिवार्य बनाया गया है और इसका एक मात्र कारण है कि मुकदमे के बाद के चरण में साक्ष्य को आसानी से स्वीकार करने की प्रवृत्ति पर विराम लगाया जा सके। लागू होने वाला परीक्षण यह है कि क्या साक्ष्य को आगे बढ़ाना केस के न्यायोचित निर्णय के लिए जरूरी है?"
केस का शीर्षक - रामदास तुरेहा बनाम उ.प्र. सरकार एवं अन्य