वाहनों की स्थिति स्पष्ट नहीं, उतावलेपन और लापरवाही से गाड़ी चलाने के साक्ष्य मौजूद नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट ने साइकिल सवार और बैल की मौत के मामले में बरी के फैसले को सही ठहराया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को सदोष मानवहत्या के आरोप से इस आधार पर बरी कर दिया कि बैलगाड़ी के रास्ते की दिशा और टक्कर के बाद वह जिस स्थान पर पड़ी थी, उसकी दिशा सबूत से सुनिश्चित नहीं की जा सकी। उस व्यक्ति पर एक साइकिल सवार और बैल की मृत्यु का कारण बनने का आरोप था। उक्त घटना तब घटी थी, जब वह ड्राइविंग कर रहा था।
जस्टिस एसएम मोदक ने कहा कि जांच अधिकारी को घटनास्थल का नक्शा तैयार करना चाहिए था और ट्रायल कोर्ट को वाहनों की सही दिशा को स्पष्ट करने और दर्ज करने के लिए गवाहों से पूछताछ करनी चाहिए थी।
कोर्ट ने कहा,
"यह वास्तव में अजीब स्थिति है, जब इस तरह के मामलों की सुनवाई की गई है तब न तो जांच अधिकारी ने नक्शा/रफ स्केच तैयार किया है, न ही ट्रायल कोर्ट ने सबूतों में सही तरीके में दिशा को सही से दर्ज करने का कष्ट उठाया है। अगर कुछ भ्रम है, तो ट्रायल कोर्ट गवाहों से सवाल पूछकर इसे स्पष्ट कर सकता था, जिसकी कानून के तहत अनुमति है।"
मामले के अनुसार, आरोपी टाटा सूमो जीप चला रहा था, जबकि शिकायतकर्ता अपनी बैलगाड़ी चला रहा था और एक अन्य व्यक्ति साइकिल चला रहा था। बैलगाड़ी चालक के मुताबिक टाटा सूमो चालक ने तेज रफ्तार में बैलगाड़ी और साइकिल को टक्कर मार दी।
न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने उसे आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या), 279 (रैश ड्राइविंग), 337, 338 और मोटर वाहन अधिनियम की धारा 134 के तहत अपराधों से बरी कर दिया। इसलिए राज्य द्वारा वर्तमान अपील दायर की गई।
अदालत ने कहा कि दो गवाहों ने बैलगाड़ी की दिशा विपरीत दी है। एक गवाह के अनुसार गाड़ी उत्तर से दक्षिण की ओर जा रही थी और दूसरे गवाह के अनुसार वह दक्षिण से उत्तर की ओर जा रही थी। अदालत ने कहा कि बैलगाड़ी के स्थान को लेकर भी भ्रम है। अदालत ने कहा कि घटनास्थल पंचनामा और एक गवाह की गवाही कि बैलगाड़ी कहां पड़ी थी, इस बात में विसंगति है।
कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट गवाहों से सवाल पूछकर निर्देशों को स्पष्ट कर सकता था। अदालत ने कहा कि ड्राइविंग केवल तभी दंडनीय है जब गति अनुचित हो और चालक ने वाहन चलाते समय उचित ध्यान नहीं दिया हो।
“ड्राइविंग का कार्य केवल तभी दंडनीय है जब यह उतावलापन और लापरवाही हो। उतावलापन का तात्पर्य उस गति से है जो अनुचित है। जबकि लापरवाही के कृत्य में वाहन चलाते समय उचित देखभाल और ध्यान न देना शामिल है।"
अदालत को शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए बयान की पुष्टि करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला। इसलिए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।
केस नंबरः क्रिमिनल अपील नंबर 1238/2012
केस टाइटल- महाराष्ट्र राज्य बनाम कुलदीप सुभाष पवार