राजनीतिक दलों को उन चुनावी वादों को करने से रोका जाना चाहिए, जिनसे सार्वजनिक खजाने पर बोझ बढ़ेः मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने 31 मार्च 2021 को दिए एक आदेश में कहा है कि राजनीतिक दलों को ऐसे चुनावी वादे करने से रोका जाना चाहिए, जिससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता है। जस्टिस एन किरुबाकरन और बी पुगलेंधी की पीठ ने चुनाव आयोग और अन्य सरकारी प्राधिकरणों को निम्नलिखित सवालों के जवाब देने का निर्देश दिया है-
-क्या केंद्र सरकार ने राजनीतिक घोषणापत्र को कानून के दायरे में लाने के लिए कोई कदम उठाया है, विशेष रूप से, चुनाव घोषणापत्र और राजनीतिक दलों को नियंत्रित करने के लिए एस सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य (2013)9 एससीसी 659 मामले में दिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार?
-चुनाव आयोग ने कितने चुनावों में एस.सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलानाडु राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणापत्र का निरीक्षण किया है?
-यदि हां, तो वे कौन से राजनीतिक दल हैं, जिन्होंने 2014 के बाद चुनाव के दौरान अपने चुनावी घोषणापत्र निरीक्षण के लिए दिए थे?
-उन राजनीतिक दलों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाती है, जिन्होंने चुनाव आयोग के समक्ष घोषणापत्र पेश करते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है?
-राजनीतिक दलों के कितने घोषणापत्रों पर चुनाव आयोग ने दिए गए बयानों या वादों पर आपत्ति जताई है?
-क्या आपत्ति के आधार पर ऐसे विवादास्पद वादों को राजनीतिक दलों द्वारा हटा दिया गया?
-यदि ऐसा है तो किस पार्टी के घोषणापत्र पर आपत्ति की गई है और हटा दिया गया है?
-राजनीतिक दलों को जिम्मेदार बनाने के लिए, उन पर चुनावी वादों को पूरा करने के लिए जरूरी धनराशि में कम से कम 10% योगदान पार्टी फंड से देने का प्रावधान क्यों नहीं किया जाना चाहिए?
-उत्तरदाताओं ने राजनीतिक दलों को किसी अनुचित वादे से रोकने के लिए क्यों सचेत नहीं किया है, जो यदि लागू हो तो अनावश्यक रूप से सरकारी खजाने की बर्बादी होगी?
-क्यों नहीं उत्तरदाताओं ने राजनीतिक दलों को ऐसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को देने से रोका है, जो कार्य संस्कृति को खराब करने और लोगों को आलसी बनाने में सक्षम हैं?
-यदि राजनीतिक दल घोषणा पत्र में विशेषज्ञों की राय के साथ राजनीतिक वादों और उपलब्ध संसाधनों के प्रावधान के बारे में बताते हैं या नहीं?
-क्यों नहीं उत्तरदाताओं ने राजनीतिक दलों को राजनीतिक वादा करने के लिए निर्देशित किया, विशेष रूप से, राज्य के संसाधनों के अनुसार मुफ्त उपहारों के संबंध में?
-उत्तरदाता, राजनीतिक दलों के कार्यकाल के दौरान, जिन्हें चुना जाता है, उनके चुनावी वादों का अनुपालन की निगरानी और सत्यापन क्यों नहीं करते हैं?
-क्यों नहीं उत्तरदाता, राजनीतिक दलों को कोई भी वादा करने से प्रतिबंधित करते है, जिसे राज्य सरकार द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे राज्य सरकारों की शक्तियों से परे हैं, जैसे कि राष्ट्रीयकृत बैंक, आदि द्वारा दिए गए ऋणों की माफी?
-क्या उत्तरदाताओं को उन राजनीतिक वादों का ब्योरा मिला है, जो राजनीतिक दलों द्वारा लागू किए गए हैं, जब वे विधान सभाओं और संसद के चुनावों में कम से कम पिछले 4 चुनावों में सत्ता में आए थे?
-सरकारों, विशेष रूप से तमिलनाडु द्वारा चुनावी वादों को पूरा करने के लिए (2001 के चुनाव से) कितना खर्च किया गया है?
-चुनाव आयोग उन चुनावी दलों को मान्यता क्यों नहीं वापस ले लेता, जो अपने वादों को लागू करने में विफल रहते हैं, जिनके आधार पर मतदाताओं को लालच दिया जाता है...?
-जब राजनीतिक दल किए गए वादों के आधार पर जीतती हैं तो वादे सरकार की नींव होते हैं, प्रतिवादी चुनाव के वादों को लागू करने के लिए दबाव क्यों नहीं बनाते हैं?
-केंद्र सरकार पीपुल्स एक्ट 1952 की धारा 123 के संशोधन को कब लाएगी...?
अदालत ने "वसुदेवनल्लूर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र" की स्थिति, जो कि एक आरक्षतित सीट है, को बदलने की लिए दायर एक याचिका पर उक्त टिप्पणियां कीं।
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